Page 11 - Vishwa April 2020 Issue.html
P. 11

िाशिती

                                            जामुन का पदेड़




                े
          “सुनत  हो  आज  तुमहहारी  फहाइल         र् त को बड़ जोर का अंिड़ िला। सेक्रे टेररएट के  लॉन में जामुन का एक पेड़ दगर
                                                           े
                                      ें
          मुकममल  हो  गई।”  सुपररन्‍टेंड‍ट  ने   पड़ा। सुबह जब माली ने िेखा तो उसे मालूम हुआ दक पेड़ के  नीिे एक आिमी
          शहायर  के   बहाजू  को  हहलहाकर  कहहा।   िबा पड़ा है।
                                                                                                  ्च
                               ्द
          मगर शहायर कहा हहाथ सर थहा। आंखों           माली िौड़ा िौड़ा िपरासी के  पास गया, िपरासी िौड़ा िौड़ा कलक के  पास गया,
                                                                     ें
                                                                    ें
                                                     ्च
                                                                                      ें
                                                                                        ें
          की पुतहलयहा बेजहान थीं और चींह‍टयों    कलक िौड़ा िौड़ा सुपररनटडट के  पास गया। सुपररनटडट िौड़ा िौड़ा बाहर लॉन में
                     ँ
                                                                 े
                                                                               े
                                       ें
                                े
          की एक लंबी कतहार उसक मुँह म जहा        आया। दमनटों में ही दगर हुए पेड़ के  नीिे िब आिमी के  इि्च दगि्च मजमा इकट्ा हो गया।
                                                       े
                                                                                            ्च
          रही थी।                                    “बिारा जामुन का पेड़ दकतना फलिार िा।” एक कलक बोला।
                                                                                          ्च
                                                     “इसकी जामुन दकतनी रसीली होती िी।” िूसरा कलक बोला।
                                                                            े
                                                                                        े
                                                     “मैं फलों के  मौसम में झोली भरक ले जाता िा। मेर बचिे इसकी जामुनें दकतनी
                                                                       ्च
                                                                                 े
                                                                   े
                                                 खुशी से खात ि।” तीसर कलक का यह कहत हुए गला भर आया।
                                                           े
                                                             े
                                                     “मगर यह आिमी?” माली ने पेड़ के  नीिे िब आिमी की तरफ इशारा दकया।
                                                                                     े
                                                     “हा, यह आिमी” सुपररनटडट सोि में पड़ गया।
                                                       ँ
                                                                       ें
                                                                        ें
                                                     “पता नहीं दजंिा है दक मर गया।” एक िपरासी ने पूछा।
                                                                                                      े
                                                     “मर गया होगा। इतना भारी तना दजसकी पीठ पर दगरे, िह बि कै स सकता
                                                 है?” िूसरा िपरासी बोला।
                                                     “नहीं मैं दजंिा हूँ।” िब हुए आिमी ने बमुदशकल कराहत हुए कहा।
                                                                                            े
                                                                     े
                      कृष्ण चंदर                     “दजंिा है?” एक कलक ने हैरत से कहा।
                                                                    ्च
                           े
          कृषण चंदर वहन्दी और उद् क कहानीकार थे।  उन्हें सावहतय   “पेड़ को हटा कर इसे दनकाल लेना िादहए।” माली ने मशिरा दिया।
                          ्म

          एवं वशक्षा क्षेत्र में भारत सरकार द्ारा सन 1961 में पद् म   “मुदशकल मालूम होता है।” एक कादहल और मोटा िपरासी बोला।” पेड़ का
          भ्षण से सममावनत वकया िया था। उन्होने मुखयतः उद् में   तना बहुत भारी और िजनी है।”
                                            ्म
          वलखा वकन्तु भारत की सवतंत्रता क बाद वहन्दी में वलखना
                                े
                                                                                       ें
                                                                                         ें
                        े
                                 ँ
          शुरू कर वदया।  इन्होंन कई कहावनया, उपन्यास और रवडयो   “कया मुदशकल है?” माली बोला।” अगर सुपररनटडट साहब हुकम िें तो अभी
                                           े
                                                                                                  े
                                                                            ्च
          व विलमी ना्क वलखे।                     पंद्रह बीस माली, िपरासी और कलक जोर लगा के  पेड़ के  नीिे िब आिमी को
                                                           े
          कृषण चंदर  न  अपनी  रचनाओं  में  सामावजक,  राजनीवतक,   दनकाल सकत हैं।”
                  े
          धावम्मक ववसंिवतयों पर तीखा वयंगयातमक प्रहार वकया। उनकी   “माली ठीक कहता है।” बहुत से कलक एक साि बोल पड़।” लगाओ जोर
                                                                                                े
                                                                                 ्च
          कहावनयाँ अकसर मुहावरदार और सजीव होती थीं। उसमें   हम तयार हैं।”
                         े
                                                     ै
          वयंगय, ववनोद और ववचारों का समावेश भी उतना ही होता
                                                                                  ै
                                                                              े
                                             े
          था। कृषण चंदर का जन्म 23 नवंबर 1914 को (आज क)   एकिम बहुत से लोग पेड़ को काटन पर तयार हो गए।
                                                                  ें
                                                                 ें
          पावकसतान क वजीराबाद में हुआ था और उनका देहात 8   “ठहरो”, सुपररनटडट बोला– “मैं अंडर-सेक्रे टरी से मशिरा कर लूं।”
                  े
                                           ँ
                                  े
          माच्म 1977 को मुंबई में हुआ। उन्होंन 20 उपन्यास, 30   सु पररनटडट अंडर सेक्रे टरी के  पास गया। अंडर सेक्रे टरी दड्पटी सेक्रे टरी के  पास
                                                           ें
                                                          ें
                            े
          कहानी संकलन और दज्मनों रवडयो ना्क वलखे।   गया। दड्पटी सेक्रे टरी जिाइंट सेक्रे टरी के  पास गया। जिाइंट सेक्रे टरी िीफ सेक्रे टरी के
          आज प्रसतुत, उनकी कहानी ‘जामुन का पेड़’ एक हासय वयंगय   पास गया। िीफ सेक्रे टरी ने जाइंट सेक्रे टरी से क ु छ कहा। जिाइंट सेक्रे टरी ने दड्पटी
          रचना है वजसमें उन्होंन सरकारी महकमे और उनकी काय्मशैली
                       े
          पर करारा वयंि वकया है! ‘जामुन का पेड़’ नामक इस कहानी   सेक्रे टरी से कहा। दड्पटी सेक्रे टरी ने अंडर सेक्रे टरी से कहा। फाइल िलती रही। इसी
          को वलखे जान का ठीक ठीक समय तो ज्ात नहीं हो सका,   में आिा दिन गुजर गया।
                   े
                            े
                      े
          लेवकन यवद यह उनक वनधन क दस साल पहल भी वलखी िई   िोपहर को खान पर, िब हुए आिमी के  इि्च दगि्च बहुत भीड़ हो गई िी। लोग
                                      े
                                                                े
                                                                      े
          होिी, तो इस कहानी की उम्र करीब 70 साल बठती है। जरा   तरह-तरह की बातें कर रहे ि। क ु छ मनिले कलककों ने मामल को अपने हाि में लेना
                                       ै
                                                                                           े
                                                                     े
                       े
                                 े
          सोवचए कृषण चंदर न 70 साल पहल वजस लालफीताशाही
                                                                                                    े
                                                                     े
                                                                  ै
                                                                                                        ै
          को इस कहानी में बयान वकया है, कया वह आज भी वैसी   िाहा। िह हुक ू मत के  फसल का इंतजार दकए बगैर पेड़ को खुि से हटान की तयारी
                                                              े
                                                                        ें
                                                                      ें
                                                        े
          की वैसी नहीं है?                       कर रहे ि दक इतन में, सुपररनटडट फाइल दलए भागा भागा आया, बोला– हम लोग
                                                                                       अप्रैल 2020 / विशिवा   9
   6   7   8   9   10   11   12   13   14   15   16