Page 14 - Vishwa April 2020 Issue.html
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हासय-वयंगय
मदेरदे घर में ददेिता रहतदे हैं
ि ैं उठत ही टीिी को उठा िेता हूँ। हालांदक उसक पहल मैं अपना दिमाग़ ऑन कर िुका
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होता हूँ, पर मेरा दिमाग़ उननीसिीं सिी का मॉडल है, िीर-िीर लोड होता है। लोड होत-होत े
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झपकी मार लेता है और इसदलए सार दिन पतनी से उलाहन सुनता है। यह तो अचछा है दक
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हमारा टीिी बड़ा संसकारी है, ऑन-दडमांड मनोरंजन करता है। सिर संसकृदत रक्क भजन
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सुनाता है, दफर संसकृत में सुप्रभात काय्चक्रम िेता है। संसकृत भगिान और दिद्ान आसानी से
समझ लते हैं। उनहें दनबटान के बाि टीिी िेसी हो जाता है, तब तक मैं भी दनबट आता हूँ।
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यह मेरा दनतय कम्च है। आज संसकृत उद्ोदषका ने िनय कर दिया। उसन कहा - यत्र नाय्चसतु
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पूजयनते, रमनते तत्र िेिताः, जहा नारी का सममान होता है, िहाँ िेिता रहते हैं। कया मालूम
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कयों, मुझे लगता रहा दक मेर घर में भूत रहते हैं। मैं जहा िीजें रखता हूँ िहाँ से गायब हो जाती
धीर-धीर अनुभव हुआ हक हैं, कहीं और दमलती हैं। जेब में रखी दिललर यू ही रहती है, पर सार नोट गायब हो जात हैं।
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हवरशों म इतन भूत-हपशहाच नहीं इतन दिनों मुझे लगता रहा दक भूत को मेरा सेलफोन पसंि है या दफर सेलफोन को ही
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रहत। मोक्ष भहारत म हमलतहा है, सितः िलने की बीमारी है। मैं उसे िाज्चर पर लगा कर काम में लग जाता हूँ तो िह दबना
इसहलए मोक्षप्हाथथी वहीं भटकते िाज्च हुए कहीं और िला जाता है, कभी दकिन में दमलता है तो कभी िादशंग मशीन पर।
हैं। इस महामल म हहन्रू-मुह्लम दकतना भुलककड़ हो गया हूँ मैं, दजन क्ेत्रों में मुझे नहीं जाना िादहए िहाँ अपना सुराग छोड़
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आता हूँ। मन नहीं मानता दक मैं भुलककड़ हो गया हूँ, सेलफोन की अफरातफरी में िरूर
हवचहारधहारहा समहान है। घरलू भूत-प्रेतों का हाि है।
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बिपन में िािी ने समझाया िा गंिे लोगों के पीछ भूत-प्रेत पड़ जात हैं। इस डर के मार मैं
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रोज सिर नहा लेता िा। अमेररकनों को घर में ही भूत लग जान का भय सताता है, इसदलए जब
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से मैं अमेररका आया, रात को सोन से पहल नहान लगा। िीरे-िीरे अनुभि हुआ दक दििेशों
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में इतन भूत-दपशाि नहीं रहते। मोक् भारत में दमलता है, इसदलए मोक्प्रािसी िहीं भटकत हैं।
इस मामल में दहनिू-मुदसलम दििारिारा समान है। भूत, दजनन बन जात हैं, अचछा है दजनना
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नहीं बनत, नहीं तो आिमी के िो टुकड़ कर िेत। भूत और दजनन िोनों अपनी प्रजा को डरा कर
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रखते हैं। डर के मार लोग पुणय करने लग जात हैं, डर के मार लोग िम्च और मिहब की शरण
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तलाशत हैं। डरा कर नहीं रखो तो आिमी पुदलस और भगिान के आगे भी दसर नहीं झुकाता।
इचछा तो बहुत रही दक दिंिा भूत-प्रेतों को िेख आऊ पर संसि की िश्चक िीघा्च का पास
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नहीं बटोर सका। द्ारपाल ने मुझे समझाया, अगले िुनाि पररणाम के बाि िे सभी इसी माग्च
से आएँगे; पाँि साल में एक बार शपि लने तो ि िरूर आते हैं नहीं तो उनहें िेतन, भत्ा और
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पेंशन न दमले। तुम शपि के दिन आ जाना। मैं अब िुनाि का इंतिार कर रहा िा दक बस
एक बार पररष्कृत भूत-प्रेत िेख आऊ।
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भारतीय अनपढ़ हों या सुदशदक्त, िह भूत-प्रेत भगान के नींबू-दमिसी के टोन-टोटक
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जानता है, पर घर के भूत ढीठ होत हैं, ससते में नहीं भागत। मैंने भूत-प्रेत दिशेषज् दिदकतसक
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से मिि ली। िे मानय पद्धदत से करंट लगात हैं और भूत-प्रेत हों या न हों उनसे मुदक्त दिला िेत े
धर्मपवाल रहेंद्र जरैन हैं। कभी सरकारी या गैर-सरकारी भूत पीछ पड़ जाएँ तो िे गुप्त िान करने की सलाह िेत हैं।
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कवव और वयंगयकार, समपक्म : 1512-17 मेरी समसया सुन कर उनहोंने कहा दक आिमी कदि बन जाए तो भूत-प्रेत उसे िूर से ही साष्टांग
Anndale Drive, Toronto M2N2W7, कर लते हैं, छोट भूत-प्रेतों में िररष्ों को सममान िेन की परंपरा कायम है।
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Canada िोन : + 416 225 2415, कदि ही कदि का धयान रखते हैं, दफर तुलसी तो ठहर महाकदि। उनका कदित् ‘हनुमान
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ईमेल : dharmtoronto@gmail.com िालीसा’ जब टीिी पर आता है, मैं िॉलयूम बढ़ा िेता हूँ तादक घर के दकसी कोन में िुबकी
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12 विशिवा / Áअप्रैल 2020