Page 9 - Vishwa January 2024
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यजुधजष्‍ठरनेउत्तरजदया,“हेनागराि!सतय,दान,क्षमा,्ील, सहृदयता,तप,दया(घणृाकाअभाव)जिसमेंजदखाईपडे,वही ब्राह्मण ह।ै ”
नागरािकोइससेसतंोषनहींहुआ।उसनेयजुधजष्‍ठरकी स्ं यरजहत सममजत िानने के जलए प्रश्न का महँु जफर खोला।
चाहतेहो?जकसनीयतसे‘हटो-बचो’करतेहो?”2 “ज्ञातहोताह,ैतमुहारा्रीरतोगगंािलह,ैउसमेंिोसयूशिकी
परछाईंपडरहीह,ैवहमझु चांिालकीमडैयाकीिलमेंपडनेवाली परछाईंसेअवश्यजभननह।ै”
“तमु हारे पास सोने का घट ह,ै मरे े पास के वल जमट्ी की हाँडी उसनेकहा,“हेयजुधजष्‍ठर,लोकमेंचातवुशिरयशिकाप्रमाणमानाह।ैमालमूहोताह,ैदोनोंमेंदोजभननतरहकेआका्ह।ैं”
िाता ह।ै यजद जकसी ्द्रू में आपके कहे हुए सतय, दान, कोध, “घट-घट में बसनेवाला िो आतमरूप सहिानंद ज्ञान का समद्रु सहृदयता,अजहसंा,दयाआजदगणुहोंतोकयावहब्राह्मणहोिाएगा?”ह,ैउसमेंभीतमुहाराब्राह्मण-चांिालकाभदे-भ्मअभीतकनहीं
यजुधजष्‍ठरनेउत्तरजदया,“्द्रू मेंयजदआचारकेयेलक्षणहों जमटा?”
तोवह्द्रू नहींरहा।ब्राह्मणमेंयजदयेलक्षणनहोंतोवहब्राह्मण नहीं।हेनागराि,जिसमेंचरर‍त(वत्तृ)ह,ैवहीब्राह्मणह।ै जिसमें चरर‍त नहीं ह,ै वही ्द्रू ह।ै ”
“मैं कौन हू,ँ िानते हो? िागते-सोते इस दहे में से जिस जनमलशि चतैनयकीजकरणेंफूटतीरहतीह,ैंब्रह्मासेलेकररेंगनेवालीचींटीतक के ्रीर में रमता हुआ िो इस िगत् की साखी भरता ह,ै वही मैं हू।ँ ”
नागरािनेतकशिमेंधमरशिािकोपनुःचाँपतेहुएकहा,“यजदतमुहारे
मतसेचरर‍तसेहीब्राह्मणहोताह,ैतबतोजबनाचरर‍तयाकमशिके
िाजतवयथशिहोिातीह।ै” ्कंरकेबादआनेवालेजसद्धोंनेभदे-भ्म-ना्कपरंपरापर
प्रश्नमामलूीनहींह।ैयहिाजत-पाँजतकेवक्षृपरसदा-सदाबहुतिोरजदया।मजुनरामजसहंकेपाहुडदोहेमेंछुआछूतकेबाह्य‍ उ‍ठनेवालाबडाकुलहाडाह।ै इसकँटीलेप्रश्नसेभीयजुधजष्‍ठरज‍ठ‍ठके आचारकोआतमाकीदृजष्टसेजनरथशिककहागयाह—ै
नहीं। उनहोंने उसी धीरता और साहस से उत्तर जदया, “हे नागराि, यहाँ
िात-पाँतहैहीकहाँ?कौनसीवहिाजतह,ैजिसमेंवणशिकासकंर
नहींहुआ?वणमोंकीआपसीजमलावटकेकारणमरेीसममजतमेंिाजत
की‍ठीकपहचानकीबातउ‍ठानाबेकारह।ै इसजलएिोतत्वद्शी
ह,ैं उनके मत में ्ील ही मखु य ह।ै िनम के बाद वणमों के िात कमशि आजदसस्ंकारभीयजदजकएिाए,ँपरअगरजकसीमेंचरर‍तनहींहुआ,कोपष्ुटजकया।सरोरुहपादकहतेह—ैं“ब्राह्मणब्रह्माकेमखुसेपैदा तोमैंतोउसेवणसशिकंरकीहालतमेंपडाहीसमझगँूा।इसीजलएहेहुएथे,िबहुएथे,तबहुएथ।ेइससमयतोसबकीउतपजत्तएक-सी नागराि,मनैंेपहलेहीयहकहाजकजिसवयजकतमेंजनखराहुआह।ैयजदकहोसस्ंकारदकेर,तोसबकोब्राह्मणकयोंनहींहोिाने
चरर‍त (सस्ं कृ त वत्तृ ) ह,ै वही ब्राह्मण ह।ै ” (िनपिरा, अजगर पिरा, अ. 180। शलोक 20-37)1
भारत की जवश्वातमा को प्रकट करनेवाले ये ्बद वयास की नतूनधम-शिवयाखयाकेअतंगशितथे।भगवान्बद्धु औरमहावीरनेअपने िीवनऔरउपद्े सेइससतयकाप्रचारजकयाऔरजवश्वकोजट भारतीय िनता ने उसका समथशिन जकया और उसे िीवन में ग्रहण जकया। परंतु यह राष्ट्रीय कोढ़ जनमलशिू नहीं हुआ।
दते े?” (श्ी हिारीप्रसाद जद्वेदी, कबीर, प.ृ 133)। अनेक जसद्ध सतं स्वयं ्द्रू वगशि में उतपनन होकर पिू ा को प्रापत हुए।
जसद्धों की परंपरा को नाथों ने 12वीं-15वीं ्ती तक आगे बढ़ाया।गोरखनाथआजदनाथोंनेिाजतकीअपेक्षाआचारऔर चरर‍तपरबहुतिोरजदया।समािमेंभगंीयाचहूडावहीह,ैिो िननेंजद्रय और स्वाद-इजं द्रय के जवषय में लंपट ह—ै
यंद्री का लड़बड़ा प्जभया का फू हड़ा।
अष्टम्ताबदीमेंभगवान््कंराचायशिनेवेदांत-ज्ञानकोराष्ट्र
कादा्जशिनकदृजष्टकोणहीबनाजदया।सबभतूोंमेंआतमतत्वकी पद्रंहवीं्तीमेंरामानंदऔरकबीरनेजहनद-ूसमािकीइसवाणी एकताकीपहचानहीवेदांतकाफलह।ै्कंरके्ारीररकभाष्यकोिोरसेदोहराया।उनहोंनेज्ञानऔरअनभुवकोिात-पाँतकी में अप्द्रू ाजधकरण नामक िो प्रकरण ह,ै वह उनके जलए क्षमय नहीं हदबंदी से ऊपर रखकर उस क्षे‍त की नागररकता का अजधकार सबके कहािासकता।लेजकनमालाबारसेछुआछूतकेगहरेसस्ंकारजलयेजलएखोलजदया।जफरतोचतैनय,रैदास,नानक,नामदवेआजदअनेक हुए िब वह उत्तरापथ में आए, तब उनके िीवन में एक धकका लगा। सतं ों ने इसे एक रािमागशि ही बना जदया और उनके उपद्े ों को जहनदू उत्तरापथकेज्ञानकीअजधष्‍ठा‍तीका्ीपरुीह।ै्कंरउसीका्ीपरुी समािनेबहुत-कुछस्वीकारजकया। मेंआएऔरसामनेसेआतेहुएमहेतर-महेतरानीकोदखेकर‘हटो- 19वीं्तीमेंभारतवषशिमेंएकनएयगुकास‍तूपातहुआ।सब बचो’ करने लग।े उनहें वेदांत ज्ञान भलू गया। यह बात का्ी के धममों से ऊपर राष्ट्रीयता धमशि का उदय होने लगा। धमशि के भीतर से ज्ञानाजधदवेताज्वबदाशिश्तनहींकरसके।उसीचांिालकेमहँुसेअभीतकिोसमाि-सधुारकेआदंोलनथे,अबवेराष्ट्रीयताकी उनहोंने्कंरकोिपटा— ्जकतऔरयजुकतमत्तालेकरसमािकेसामनेआनेलगे।स्वामी
“हे श्ेष्‍ठ ब्राह्मण, अपने जमट्ी के ्रीर से मरे े इस जमट्ी के ्रीर दयानंद ने धमशि और राष्ट्रीयता, दोनों के भीतर से भारत की प्राचीन कोहटानाचाहतेहोयाअपनीआतमाकोमरेीआतमासेदरूकरना उदारवाणीकीघोषणाकीऔरजहनदूसमािसेस्पष्ट्बदोंमेंकहा
“इसप्रकारकीजस्थरबजुद्धयजदहैतोगरुु बन,चांिालअथवा ब्राह्मणकीभदे-बजुद्धछोड।”
कासुसमिाप्हकरहुँकोअचंउं।
छोपुअछोपुभप्णप्वकोबंचउं।। “जकसकाधयानकरूँ,जकसकोपिूँ,ूजकसकोछूतऔरजकसको
अछूतमानँ?ू”
सहियानी जसद्धों ने (8वीं ्ती-12वीं ्ती) भी इसी जवचारधारा
रोरषकहैतेपतगाप्षचहूड़ा॥
 जनवरी 2024 / ववशववा
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