Page 8 - Vishwa January 2024
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जवशेष आलेख
 सारािगत्ईश्वरकावास-स्थानह।ैईश्वरसबकाअधयक्षह।ैवही आतम रूप में सबके भीतर ह।ै इस प्रकार की प्रतीजत मनष्ु य को प्रेम की िोरी में बाँधती ह।ै यह जवश्वास सचचा हो तो इस पर िीवन में अमलहोनाचाजहए।आतमाकीएकताकीबातकहने-सनुनेकेजलए हीरहीतोवहवयथशिह।ै
यहाँपरआकरभारतीयिीवनकीगाडीदलदलमेंफँसगई। ऊँ चे ज्ञान के क्षे‍त में जिस बात को सतय समझा और माना गया,
धमशिकेअथशिकोबहुत-कुछबजुद्धमलूकप्रतयक्षगमयबनानाचाहा। ‘महाभारत’ के अतं में अपनी भिु ा उ‍ठाकर वयासिी ने यही सारां् बताया जक धमशि ही अथशि और काम की िड ह,ै धमशि ही जनतय ह,ै उसका आश्यलेनाचाजहए।वयासिीकीवहउ‍ठीहुईभिुाआितक उसीप्रकारधमशिकीओरसकंेतकररहीह,ैजिसप्रकारचबंुककी सईूउत्तरीध्वुकीओरसकंेतकरतीह।ैवयासिीनेबजुद्धमलूकधमशि की वयाखया करते हुए चातवु शिरयशि के भाव पर भी प्रका् िाला। चार
्ंजितपाः समदजशशिनः
वासुदेवशरण अग्रवाल
(भारतीयता के श्ेष्ठ और वररष्ठ अधयेता)
गांधीिी ने थोडे से समय में भारतवषशि की छु आछू त की समस्या का पसदं करके ्ारीररक श्म की मजहमा बताई। ‘गीता’ में उनहोंने ब्राह्मण िोहलढूँढ़जनकाला,उसकीदा्जशिनकपष्ृ‍ठभजूमह।ैइसद्ेकीऔर्द्रूकेथोथेभदेोंकाजतरस्कारकरनेवालायहजवचारप्रकट समाि-वयवस्थामेंजनस्सदंहेअनेकप्रकारकेभदेह।ैंउनमेंिाजतभदे,जकया:िोसमझदारह,ैवहसमद्शीहोताह,ैयहजवद्ान्ब्राह्मण भाषाभदे,धमभशिदे—येतीनप्रकारकेभदेमखुय ह,ैयहश्वपच्द्रूह,ैयहप्ुह—ैइसप्रकार ह;ैंपरंतुइनसबभदेोंसेऊपरउ‍ठकरभारतकी
 दा्जशिनकजवचारधारानेप्राजणमा‍तमेंरमेहुए
एकतवपरबहुतबलजदयाह।ैआतमाकोही
सबकु छ मानकर ्रीर का जनराकरण करनेवाले
द्नशि का यही फल हो सकता ह।ै ईश्वर एक ह,ै
वह सवशि‍त, सवशि-वयापक ह,ै घट-घट में रम रहा
ह,ैसबकेहृदयोंमेंबै‍ठाहुआह—ैइसप्रकारकी
प्रतीजतभारतीयसस्ंकृजतकीआतमाह।ैप्रतयेक
द्नशिनेजवचारोंकीभलूभलुैयोंमेंसेअपनामागशि
ढूँढ़तेहुएअजंतमटेकआतमाकीइसीएकताऔर
सववशि यापकता पर प्रापत की। भारत की राष्ट्रीय
(1904-1966)
कीभदे-बजुद्धउसमेंनहींहोतीह।ैगीताकायह स‍तू—‘पजंिताःसमदज्नशिः’,सक्षंेपमेंभारतीय समझदारी या ज्ञान के जववेक को बतानेवाला स‍तू ह।ै जकसी भी पथं या मतवादी की जहममत इस बात को काटकर नई बात कहने की नहीं हुई, आचार में चाहे इससे जितना बच जनकलने कीकोज््होतीरहीहो।वयासिीनेभारतीय ज्ञानकोबहुतहीगाढ़ेसमयमेंसतंजुलतकरने काप्रयतनजकया।उनहोंनेधमशिकीबजुद्धमलूक वयाखयाकी—
धारणाद्धमि!गा इतयाहुःधमिमोधारयप्तरिजाः।
दा्जशिनकआखँवेदांतद्नशिहैऔरउसआखँ िोधारणकरनेवालातत्वह,ैवहधमशि
कासारातेिइसीबातपरअवलंजबतहैजकआतमाचतैनयमयह,ै ह।ैधमशिसमािको,प्रिाओंकोधारणकरताह।ैधारणकरनेका
वहअननमय्रीरसेपथृक्सबप्राजणयोंमेंएकह,ैवहीअजंतम अजभप्राययहहैजकसमािकेआचारऔरनीजतधमशिकोजगरनेनहीं
मलूयवानतत्वह।ै्वै,वैष्णव,आजस्तक,भागवत,भकत,ज्ञानी,दतेा।परलोकयादवेी-दवेताओंकेजवश्वासयापिूाकोवयासिी
योगी सबका आतमा के जवषय में ऊपर जलखा जवचार ही ह।ै यह ने धमशि नहीं कहा। मानयताओ ं के पचडे भी धमशि नहीं ह।ैं वयासिी ने
उसेवयवहारमेंलातेहुएसौझझंटखडेजकएगए।अमलीिीवनमेंवणमोंमेंमानेिानेवालेऊँच-नीचकेभदेऔरिनमिातबडपपनको ऊँच-नीच,छुआछूतकीमोटीदीवारेंखडीहोगईंऔरयेभदे इतने उनहोंनेअचछानहींसमझा।पहलेतो‘गीता’मेंहीगणु औरकममोंके
तीखेथेजकआिकानागररकउनहेंसोचकरजसहरउ‍ठताह।ैजफरभी जवश्वातमाकोमाननेवालीिोप्रतीजतथी,वहसमय-समयपरप्रकट होती ही रही और कभी-कभी तो वह म्ाल के रूप में समाि का मागशि-प्रद्नशि करने में समथशि हुई। कृ ष्ण इस द्े के अचछे जवचारकों में
सारथीबनेऔरयज्ञमेंअजतजथयोंकेपैरधोनेकेकामकोअपनेजलए िालताह।ैअिगरनेप्रश्नजकया,“हेरािन,्ब्राह्मणकौनह?ै” विशिवा / जनिरी 2024
का भाव नहीं ह,ै बजलक चारों वणमों के समाहार या मले से िनम जगने िाते ह,ैं िो जबना लाग-लपेट के सचची-सीधी बात कह सकते लेनेवाली उस समाि-वयवस्था का वणनशि ह,ै जिसमें वणमों के गणु और थे।उनहोंनेअपनीजमसालसेसमािकेहरेकअगंकेसाथमलेिोलकमशिहीबँटवारेकाहतेुबनतेह।ैंदसूरीबातयहहैजकआचार-प्रधान कामागशिअपनायाथा।्वालोंऔरअहीरोंकेसाथवेखबूखलुकरिीवनकीओरअनयजकतनेहीस्थानोंपरवयासनेजव्षेबलजदया खलेेथे।स्वयंगायोंकोदहुनेऔरपालनेकाकामजकया,रथहाँककर ह।ैनागरािऔरयजुधजष्‍ठरकासवंादइसजवषयमेंजनजश्चतप्रका्
अनसुारचारवणमोंमेंसमािकेबँटवारेकाप्रजतपादनजकयागयाह—ै
चातवुगाणययंमियासषृटंरणुकमिप्गावभारशः।
यहाँ जकसी भी वणशि को आगे-पीछे कहने या उनमें तारतमय करने
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