Page 10 - Vishwa January 2024
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जक अछू तपन जहनदू धमशि और समाि का कलंक ह,ै यह मलै उस पर बाहर से चढ़ा ह,ै उसकी जनिी सस्ं कृ जत में इसके जलए कोई स्थान नहींह।ै यहछुआछूतकीिडपरप्रबलकु‍ठाराघातहुआऔरउसके ्ास्‍तीयअनमुोदनकीिडेंजहलगई।ं्ास्‍त-प्रमाणसेअस्पश्ृयताका समथशिन करनेवालों के हाथ से अखाडा िाता रहा और उनकी जहममत टूट गई। यह एक बडी कांजत थी, िो नवीन होते हुए भी प्राचीनता की्जकतसेसचंाजलतथी।
लेजकन वास्तजवक सामाजिक आचार में अस्पश्ृ यता का गढ़ बना ही रह गया। इस क्षे‍त में महातमा गांधी ने उसे उखाडा। उनहोंने कहा जक अस्पश्ृ यता स्वयंजसद्ध कलंक है और यह जहनदू समाि का कोढ़ ह।ै िोकलंकयाअनयायह,ैउसेबरुाजसद्धकरनेकेजलए्ास्‍त-प्रमाण की िरूरत नहीं। िो समाि का कोढ़ ह,ै उसे हटाए जबना समाि स्वस्थ नहीं बन सकता। अस्पश्ृ यों पर दया करके अस्पश्ृ यता के रोग कोहटानेकाप्रश्ननहींह।ै अछूतपनकीबातमानकरजहनदूसमािने िो पाप जकया ह,ै उसका प्रायजश्चत्त करने के जलए स्वयं जहनदओु ं को इसकलंककोजमटानाआवश्यकह।ै यहजबलकुलनयादृजष्टकोण था।राष्ट्रीयताकेआदंोलनकीसफलताहीइसबातपरजनभरशिथीजक पहलेछुआछूतकोजमटाजदयािाए।गांधीिीकायहदृजष्टकोणइतना साफ था और इसके पीछे उनके िीवन का इतना बल था जक राष्ट्र को इसे समझते और अपनाते हुए बहुत जदककत नहीं हुई और लगभग पचीसवषशिकेसमयमेंराष्ट्रीयधरातलपरपहुचँकरअस्पश्ृयताको हटा जदया गया। इस समय िो छुआछूत बच गई ह,ै वह परास्त और लजजितह।ै वहमरीहुईला्ह।ै उसकाप्राणजनकलचकुाहैऔर अब समाि को इस ्व को भी अपने भीतर से जनकाल फें कना ह।ै जिससमयसन्1920मेंगांधीिीकायहआदंोलनआरंभहुआ था,ऐसािानपडताथाजकउत्तरभारतसेतोयहकलंकसभंवतः हटिाएगा,परदजक्षणमेंगांधीिीकीबातअनसनुीरहिाएगी।पर गांधीिीनेजिसआदंोलनकेरथ-चकसेअस्पश्ृयता-जनवारणको बाँधजदयाथा,वहउत्तर-दजक्षण,परूब-पजश्चममेंसवशि‍तएकिैसेवेग और्जकतसेफैलाऔरअपनीजवियके साथछुआछूतके गढ़को धरा्ायी बनाता गया। स्वराजय प्राजपत के जलए अस्पश्ृ यता को हटाने कीबातगांधीिीकीमौजलकदनेथी।इसकलंककोजमटानेकेजलए धमशियापरलोककासहारानढूँढ़उनहोंनेइसीपजृथवीकेिीवनकी आवश्यकता के साथ इसे जमला जदया।
गांधीिीकीवाणीभारतीयजवश्वातमाकीवाणीह।ैयहभारत केप्राचीनसवशिब्रह्ममययाई्ावास्यदृजष्टकोणकीपरूीजवियकही िासकतीह।ैआिजवचारोंकेधरातलपरभारतअस्पश्ृयताके महापापकीदासताऔरकलंकसेमकुतहोगयाह।ैउसकीइसमजुकत मेंएकबडालाभभीजदखाईपडताह।ैभारतकीजस्थजतअतंरराष्ट्रीय नयायालयमें्द्धुहोगईह,ैउसकादृजष्टकोणसदाकेजलएजनखर गयाह।ैिहाँकाले-गोरे,ऊँच-नीचकेभदेोंमेंदसूरेराष्ट्र‍ठोकरेंखा रहेह,ैंवहाँभारतउससमस्याकोसदाकेजलएसलुझाकरसबके जलए आद्शि बन गया ह।ै आि सचचे मन से ‘पजं िताः समजद्शि नः’
केजचरंतनसतयकोदसूरोंसेकहािासकताह।ै
लेजकन जकसी भी ईमानदार आदमी से यह बात जछपी नहीं रह
सकती जक गांधीिी का काम अभी आधा ही हुआ है और आधा पडा ह।ै छुआछूत का रावण तो मर गया, पर उसका ्व अभी बीच मेंसडरहाह।ैउसगदंगीकोिीवनमेंसेहटाएजबनाहमाराकलयाण नहीं ह।ै अपने प्रयतनों को ज्जथल करने या आराम की साँस लेने कीअभीकोईबातनहींह।ै छुआछूतकेदानवका्वभीइतना बडाऔरइतनाउलझाहुआहैजकउसेपरूीतरहजनकालनेकेजलए बडासतकशिप्रयतनकरनापडेगा।अभीहमारेिगंलोंऔरगाँव-बस्ती मेंअजधकारोंसेवजंचतमानवोंके‍ठट्ठभरेहुएह।ैंउनहेंसामाजिक, आजथशिक और बौजद्धक स्वराजय की प्राजपत िब तक नहीं होती, तब तकहमारेजलएस्वयंइनवरदानोंकीप्राजपतस्वपनहीह।ै श्मपजव‍त ह,ै उपयोगी है और आवश्यक ह।ै ये तीन बडे जनयम अवाशिचीन िगत् ने श्म के जवषय में ढूँढ़ जनकाले ह।ैं इनको पहले हमें अपने िीवन के जलएअपनानाह।ैयजदहमश्मकीइसज‍तमजूतशिसेबचनाचाहगेंेतो यगु के जलए वयथशि हो िाएगँ ।े आगे आनेवाली िीवन-पद्धजत श्म के इसी ज‍तभिु पर आजश्त होगी। समाि का नया सगं ‍ठन श्म के आधार पर ही होगा। श्म का जनयम िहाँ लागू होगा, वहाँ छु आछू त का भदे नहीं रह सकता। श्म की पजव‍तता, उपयोजगता और आवश्यकता के दृजष्टकोण को स्वीकार करके ही गांधीिी ने स्वचछता और सफाई के कामों को वही प्रजतष्‍ठा दी, िो िीवन के अनय आवश्यक कामों को हमदतेेह।ैंजिसयज्ञकोगांधीिीने्रूु जकयाथा,वहअभीअधरूा ह,ै यह िानकर ही हमें आगे का कम जस्थर करना होगा।
स दं भ रा स चू री
सतयंदानंक्षमा्ीलमान्ृस्ंयंतपोघणृा। दृश्यनतेय‍तनागेनद्रसब्राह्मणइजतस्मतृः॥21॥ ्द्रूष्ेवजपचसतयंचदानमकोधएवच। आन्ृस्ंयमजहसंाचघणृाचवैयजुधजष्‍ठर॥23॥ ्द्रू ते ु यदभ् वेललक्म जद्िे तचच न जवद्यते।
न वै ्द्रू ो भवेचछू द्रो ब्राह्मणो न च ब्राह्मणः॥ 25॥ य‍तैतललक्यतेसपशिवत्तृंसब्राह्मणःस्मतृः। य‍तैतननभवेतसपशितं्द्रूजमजतजनजद्शिते॥्26॥
यजद ते वत्तृ तो रािन् ब्राह्मणः प्रसमीजक्षतः। वथृािाजतस्नदाऽऽयष्ुमनकृजतयाशिवननजवद्यते॥30॥ िाजतर‍तमहासपशिमनष्ुयतवेमहामते। सकंरातसवशिवणाशिनांदष्ुपरीक्येजतमेंमजतः॥31॥ य‍तोदानींमहासपशिसस्ंकृतंवत्तृजमष्यते। तंब्राह्मणमहंपवूशिमकुतवान्भिुगोत्तम॥37॥ अननमयादननमयमथवाचतैनयमवेचतैनयात।् जद्िवरदरूीकतशिजुमचछजसजकशिब्रजूहगचछगचछेजत॥मनीषापचंक॥
(‘कलपिक्कृ ’से)
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विशिवा / जनिरी 2024






















































































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