Page 41 - Vishwa January 2024
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शंखलपा : भपारतीय इजतहपास की जवसमृत नपाजयकपाएँ (2)
संत सपोयरपाबपाई
डॉ. पवू ागा भारद्ा्ज
(स्ंककृतकीछात्राडॉ.पूवागाभारद्ा्जकेशोधकासवरयथा'अथवगावेदमेंभौसतकसं्ककृसतकाअनुशीलन'।पंसडतारमाबाईपरउनकीपु्तक'भयनािी खेद नािी' बिुत चसचगात रिी। प्रसशक्ण, पाठ्यचयागा, पाठ्यपु्तक सनमागाण, मूलयांकन, द्तावे्जीकरण, संपादन, अनुवाद एवं ्जेंडर, यौसनकता, सशक्ा आसद उनकी सदलच्पी और अनुभव के क्ेत्र िैं। वे 'रसचक्र' नामक समिू से Performative readings करती िैं। ्त्री ्वर पर कसें द्रत 'त्जगानी' नामक ई पसत्रका की संपादक भी िैं।)
सतंोंकीहमारीदजुनयामेंकमीनहींह।ैयेसतंअलगअलग क्षेतोंके हैंऔरअलगअलगधममोंके।औरहैंसबपरुु ष!मजहलाओं कादखलनहींहैइसक्षेतमेंऔरउनकादावाभीनहींहैइसपदवी पर। लेजकन कया यह इतना ही सपाट तरय ह?ै
भप्कतआदंोलनमिेंकईप्््रियोंके्वरमिौजदूह,ैंपरमिीराबाईके पढंरपरुिातेहैंऔरजवठोबाकीपररकमाकरतेह।ैंसमहूमेंभिन- अलावाशायदहीप्कसीअनयकेनामियाउनकीकृप्तसेहमिपररप्चत कीतशिन,जवठोबाकास्मरणऔरजचतंन-मननउनकीपिूाकीपद्धजत ह।ैंकमिसेकमिप्हनदीजरत्मिेंऐसाहीह।ैजबप्कभारतीयसमिाज ह।ैखासबातयहबताईिातीहैजकपढंरपरुकीयातामेंहरिाजतके कोप्वप्वधताको्वीकारकरनेवाला,उदारऔरनयायपणूगाबनाने लोगएकसाथ्ाजमलहोतेह।ैंलेजकनसोयराबाईऔरचोखामलेा केप्लएकप्वयोंकेसाथकवप्यप््रियोंनेप्नरंतरकामिप्कयाह।ैउनसजहतकईनीचीमानेिानेवालीिाजतकेकजवयोंनेअपनेअनभुवों प्व्मितृ कवप्यप््रियोंमिेंसेइसबारहमिसोयराबाईकोलेकरआपके कोजिसतरहबयानजकयाह,ैउससेअलगतस्वीरसामनेआतीह।ै सामिने आए ह।ैं
चजलएएकमजहलासतंसेमलुाकातकरतेहैंऔरवस्तजुस्थजत
कीपडतालकरतेह।ैंयहह–ैंसतंसोयराबाई।महाराष्ट्रकेपढंरपरु सोयराबाईकेजपताकानामकृष्णाथा।कमउम्रमेंहीसोयराबाई की,िोचद्रंभागानदीकेतटपरबसानगरह।ैउनकेपजतसतं काजववाहमगंलवेढाकेजनवासीचोखामलेासेहोगयाथा।अपनी चोखामलेाकीचचाशिकाफीहोतीह।ैऔरिैसाजकअकसरहोताहैसासमीराऔरननदजनमलशिासेउनकाअचछाररश्ताथािोजकखदु पजत, जपता या भाई की छाँव में जस्तयाँ गमु हो िाती है (या यह कहना कवजयती थीं। जवठोबा की भजकत ने उन सबके आपसी ररश्ते को और बेहतरहोगाजकगमु करदीिातीह)ैं,वैसाहीहुआसोयराबाईके मज़बतूीदीथी।गजृहणीकीभजूमकामेंसोयराबाईकीजदनचयाशिको साथ।वेखदुअपनाउललेख“चोजखयाचीमहारी”केरूपमेंकरतीदखेािासकताह।ैरोज़ानासाफ-सफाईकाकामकरके,ढोर-ढंगर ह।ैं उनकायहअभगं दजेखए–
वे वारकरी समप्रदाय की थीं जिसमें जवठोबा (जवट्ठल) की भजकत होतीह।ै जवठोबाकृष्णकाहीरूपह।ैं ‘वारकरी’का्ाजबदकअथशि माना िाता ह–ै पररकमा करने वाला। यह ‘वारी’ तथा ‘करी’ दो ्बदों से बना ह।ै ‘वारी’ यानी याता करना, पररकमा करना, फे रे लगाना।इससप्रंदायकातीथशिस्थलहैपढंरपरु।वारकरीबार-बार
ऐसा िान पडता है जक सोयराबाई के जलए घर और घर से बाहर के िीवन में बहुत फाँक नहीं थी। वे चोखा के गरुु सतं नामदवे और सतं िनाबाई के सपं कशि में आई।ं इससे उनकी कजवताई और जवठोबा के प्रजत भजकत दोनों में और गहराई आई। वे कभी अपने अभावग्रस्त िीवनकीज्कायतनहींकरतीह।ैं यजदचावलऔरदहीकाएक लकुमाभीबचाहोतोउसेवेअजतजथकीओरबढ़ादतेीह।ैं
उनकी जवठोबा पर बहुत आस्था थी। उनका मानना था जक एक जदन जवठोबा वैष्णव के वे् में आए और उनहीं का आ्ीवाशिद था जक वेगभवशितीहुई।ंइतनाहीनहीं,उनकोलगताहैजकिबचोखाऔर उनकीबहनजनमलशिासतसगंमेंिूबेहुएथेतोजवठोबानेहीआकर उनका प्रसव करवाया। सोयराबाई पाती हैं जक जनमलशि ा का रूप धरकर जवठोबा ने िचचा-बचचा दोनों को नहलाया, खाना बनाया और िचचा को जखलाया, घर की साफ-सफाई की, बचचे की दखे भाल की और महेमानोंकीआवभगतभीकी।येजकस्सेइ्ाराकरतेहैंजकऔरत
महार िाजत की थीं सोयराबाई। दजलत िीवन की हकीकत को वेसहिरूपसेबयानकरतीह।ैंउनकेअभगंमेंबच-ेखचु,ेबासी भोिन का जिक जमलता ह।ै उनका काल है 13वीं-14वीं सदी। वैसे उनकीिनम-मतृयुकापरूाऔरप्रामाजणकजववरणनहींजमलताह।ै इतना जनजवशिवाद है जक उनहोंने मराठी में काफी रचना की, लेजकन अभी उनकेकेवल62अभगंहीजमलतेह।ैं
की ला् उठाकर और िलावन की लकडी चीरकर िब चोखा घर आते हैं तो सोयराबाई पैर धोने के जलए गमशि पानी लाती ह।ैं पजत की थकान और भखू जमटाने का इतं ज़ाम करती ह।ैं
जनवरी 2024 / ववशववा
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