Page 36 - Vishwa January 2024
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 जहनदी संसथपाओं की ्तन-गपाथपा-2
जहनदी सपाजहतय सममेलन प्रयपाग
डॉ. अमरनाथ
लेखक कलकत्ा सवशवसवद्ालय के पूवगा प्रोफेसर एवं सिनदी सवभागाधयक् िै। समपक्क–ईई-164/402, सेकटर-2, सालटलेक, कोलकाता-700091 ईमेल: amarnath.cu@gmail.com मो. 9433009898
 नागरी प्रचाररणी सभा का्ी ने ही अपने उद्श्े यों को मतू शि रूप दने े के जलएजहनदीसाजहतयसममलेनकाग‍ठनजकयाथाऔरग‍ठनकेजनजमत्त बै‍ठकभी1मई1910कोसभाकेपररसरमेंहीहुईथी।सममलेन केग‍ठनकेबादउसकापहलासममलेनभी,जिसेबादमेंअजधव्ेन कहा िाने लगा, नागरी प्रचाररणी सभा के पररसर में ही 10 अकटूबर 1910 को मदनमोहन मालवीय के सभापजततव में हुआ था। अगला सममले न प्रयाग में करने का प्रस्ताव भी इसी में पास हुआ था। इतना ही नहीं, सममले न के उद्श्े यों में भी सबसे पहला उद्श्े य रखा गया था, “द्े वयापी वयवहारों और कायमों में सहिता लाने के जलए राष्ट्रजलजप दवेनागरीऔरराष्ट्रभाषाजहनदीकाप्रचारकरना।”
सभा नागरी जलजप का राष्ट्र वयापी प्रचार चाहती थी िो उस समय द्े की पहली िरूरत थी। उन जदनों कचहररयों में फारसी जलजप का बोलबाला था। जहनदी, उदशिू और जहनदस्ु तानी का जववाद अभी थमा नहीं था। सर सैयद अहमद खाँ िैसे प्रभाव्ाली मजु स्लम नेता कचहररयों में उदशिू और फारसी जलजप को बनाए रखने में सफल हो गये थे। ऐसे माहौल में बनारस के ही रािा ज्वप्रसाद जसतारेजहदं नेजहनदी-उदशिूकेजववादमेंनपडकरसझू-बझू सेकामजलयाऔर कचहररयोंमेंदवेनागरीकेइस्तेमालपरहीसारािोरलगाया।उनहें लगताथाजकअसलझगडाजलजपकाहीह।ै कचहररयोंकीभाषाके स्वरूपकेमामलेमेंवे“आमफहमऔरखासपसदं भाषा”केपक्षधर थे। अकारण नहीं है जक िब नागरी प्रचाररणी सभा के ग‍ठन का जनणयशि का्ीकेतीननौिवानों(बाबूश्यामसदंुरदास,रामनारायणजमश्और ज्वकुमारजसहं)नेजलयातोउसकीअधयक्षताकेजलएउनहेंसवाशिजधक उपयकुतरािाज्वप्रसादजसतारेजहदंहीलगेऔरवेउनहींकेपास गए,जकनतुजसतारेजहदं केकुछजवरोजधयोंकेएतरािकेकारणजववाद सेबचनेकेजलएकवींसकॉलेिकेज्क्षकप.ंलक्मी्कंरजमश्को अधयक्ष बनाया गया था।
भाषा के स्वरूप को लेकर भी सभा का दृजष्टकोण पयाशिपत उदार औरइसद्ेकीप्रकृजतकेअनकुूलथा।पहलेहीसममलेनमेंअपना अधयक्षीय वकतवय दते े हुए मालवीय िी ने कहा था।
“सजिनो! ऊँ चे पद पर प्रजतजष्‍ठत जकतने ही अग्रं ेिी अफसरों ने मझुसेपछूाथाजकजहनदीकयाह?ै इसप्रानतकीभाषातोजहनदस्ुतानी ह।ैमैंयहप्रश्नसनुकरदगंरहगया।समझानेसेिबउनहोंनेस्वीकार नहीं जकया तब मनैं े कहा जक जिस भाषा को आप जहनदस्ु तानी कहते ह,ैंवहीजहनदीह।ै”(प्रथमसममलेनकेअधयक्षीयवकतवयसे)
तलखी में ही मालवीयिी ने िो बात कही है वही उस समय की भीसचचाईथीऔरआिकीभी।आिभीसजंवधानकेअनसुार
जहनदी भारत की रािभाषा िरूर है जकनतु िनभाषा जहनदस्ु तानी ही ह।ै प्रेमचदं की भाषा मझु े आि भी िनभाषा के सबसे करीब लगती ह।ै ्लोबलाइिे्न से पहले जफलमें िब आम िनता के जलए बनती थीं तो जहनदस्ु तानी में ही बनती थीं, जहनदी या उदशिू में नहीं। आि िब मलटीपलेकस में जफलमें जदखायी िाने लगीं और उनके द्कशि ों का वगशि बदलगयातोजफलमोंकीभाषाभीउसीके अनरूु पबदलगईहं ।ै इसी तरहमनैंेउदशिूसगंीतयाजहनदीसगंीतनहींसनुाह,ैजहनदस्ुतानीसगंीत िरूरसनुाहैजिसेसमद्धृकरनेवालेउस्तादअलाउद्ीनखाँभीहैऔर पजंितरजव्कंरभी।
मालवीय िी ने अपने वयाखयान में िािशि जग्रयसशिन का जिक बडे आदर के साथ एकाजधक बार जकया ह।ै उनहोंने अपने समथशिन में जग्रयसशिनकोउद्धतृ जकयाह।ै जनस्संदहे भाषाकेक्षे‍तमेंजग्रयसशिनकाकायशि मीलकापतथरहैजकनतुउनकीकईस्थापनाएंजववादास्पदह।ैं यहाँ तक जक आचायशि महावीरप्रसाद जद्वेदी ने जग्रयसशिन की भाषा नीजत का जवरोध करते हुए जलखा ह,ै “इस द्े की सरकार के द्ारा जनयत जकए गए िॉकटरजग्रयसशिननेयहाँकीभाषाओंकीनापिोखकरकेसयंकुतप्रानत की भाषा को चार भागों में बाँट जदया ह-ै माधयजमक पहाडी, पजचिमी जहनदी, पवू शी जहनदी, जबहारी। आप का यह बाँट-चटंू वैज्ञाजनक कहा िाता है और इसी के अनसु ार आप की जलखी हुई भाषा जवषयक ररपोटशि में बडे- बडे वयाखयानों, जववरणों और जववेचनों के अनंतर इन चारों भागोंकेभदे समझाएगएह।ैं परभदे केइतनेबडेभकतिॉकटरजग्रयसशिन ने भी प्रानत में जहनदस्ु तानी नाम की एक भी भाषा को प्रधानता नहीं दी।” (उद्धतृ , महावीरप्रसाद जद्वेदी और जहनदी नविागरण, पष्ृ ‍ठ 235)
जकनतु प्रयाग में हुए अजधवे्न के बाद से ही सममले न की बागिोर नागरीप्रचाररणीसभाकेनीजत-जनधाशिरकोंकेहाथसेजनकलकरपरूी तरहरािषशिपरुुषोत्तमदासटरिनकेहाथमेंआगई।सममलेनकेग‍ठन के समय से लेकर िीवन भर रािजषशि टरिन ही उसके प्रधान म‍तं ी बने रह।ेिाजहरह,ैसममलेनकेनीजत-जनधाशिरणऔरकायशिपद्धजतमेंटरिन िीकीहीकेनद्रीयभजूमकारही।7फरवरी1951कोमिुफफरनगर ‘सहृुदसघं’के17वेंवाजषकशिोतसवकेअवसरपरटरिनिीनेकहा था– “जहनदी के पक्ष को सबल करने के उद्श्े य से ही मनैं े कांग्रेस िैसी सस्ं था में प्रवे् जकया, कयोंजक मरे े हृदय पर जहनदी का ही प्रभाव सबसे अजधक था और मनैं े उसे ही अपने िीवन का सबसे महान व्त बनाया।” अकारण ही नहीं उनहें “जहनदी साजहतय सममले न का प्राण” कहा िाता था।
रािजषशि टरिन स्वभाव से भी उदार जहनदतु व के जहमायती नहीं थे। उनहोंनेचमडेकाितूापहननाछोडजदयाथा,वषमोंतकअननछोडकर
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विशिवा / जनिरी 2024




















































































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