Page 21 - Vishwa January 2024
P. 21

जक यह समपणू शि भारतीय साजहतय का प्रजतजनजधतव करता ह।ै आ्य यह जक जहनदी साजहतय की जवकास या‍ता में जवम्मों के साथ इजतहास जलखनाहोगा।इनहेंदरजकनारकरनायगुीन-सवंेदनासेछलावाहोगा। आधजुनकजहनदीसाजहतयकीजवकास-या‍तातभीसमपणूशिहोगीिब जलंगगत,िाजतगत,समप्रदायगत,सवंेदनागतयहाँतकजकसस्ंकृजतगत भदे-भावकोभीदरजकनारकरसाजहतयकाइजतहासजलखािाएगा।
आधजुनकजहनदीसाजहतयपरिबहमदृजष्टिालतेह,ैंचचाशिकरते हैंया‘आधजुनकजहनदीसाजहतयकाइजतहास’जलखनेकीबातकरते हैं तो यह जनजश्चत है जक मधयकाल और आजदकाल की ओर दृजष्ट ले ही िानी होगी। जव्षे रूप से मधयकाल की ओर कयोंजक यही आधजुनककालकीपीज‍ठकाहैऔरइसजलएइसकालजव्षे परपनु: जवचारकरना,पनुरावलोकनकरनाअजतआवश्यकह।ैयहीकारणहै जक ‘जहनदी साजहतय का इजतहास’ के पनु लदेखन की माँग वषमों से की िारहीह।ै आिजहनदीसाजहतयकीजवकासया‍तापरजवचारकरते हुए स्‍ती-जवम्शि के सदं भशि म,ें दजलत-जवम्शि के सदं भशि म,ें आजदवासी औरजकननर-जवम्शिकेसदंभशिमेंस्वानभुजूतऔरसहानभुजूतकेबीच लडाई की दृजष्ट तयागकर जम‍तवत जवचार करना भी आवश्यक ह।ै जवम्मोंकेिनमऔरजवकासमेंदोनोंहीकीमहत्वपणूशिभजूमकाह।ै
साजहतय की जवकास या‍ता में सामाजिक, सांस्कृ जतक, रािनैजतक और आजथशिक जस्थजतयाँ उसके िनम और कलेवर को प्रभाजवत करती ह,ैअत:साजहतयकीजवकासया‍तामें‘यगु’महतवपणूशिभजूमका जनभाताह।ैस्‍ती-जवम्शिकेसदंभशिमेंभीइसेभलूनानहींचाजहए। स्‍तीवादी-आदंोलनअमरेरकामेंसन्1848सेपरवानचढ़ताहैऔर 1960 से उतकषशि पाने लगता है और 1970 के आस-पास ही अमरे रका कानारीवादी-आदंोलनभटकावकाज्कारहोिाताह।ै‘यौनसखु के प्रश्न’ महत्वपणू शि हो उ‍ठते हैं और ‘जस्‍तयों की यौन स्वतं‍तता’ को हीउनकीमजुकतमानजलयािाताह।ै इसतरहसहीमाँगोंकोलेकर उ‍ठाएकसहीआदंोलनभटकावकाज्कारहोिाताह।ैदसूरी ओर भारतवषशि ही नहीं सपं णू शि एज्या में इस नारीवादी सघं षशि का िनम औरिागरुकतातबहुआिबलोकतांज‍तकअजधकारोंकेप्रजतचतेना िागतृ हुई। यही विह है जक भारतवषशि के सदं भशि में िब 19वीं और 20वींसदीमेंस्वद्ेीसामतंी्ासकोंऔरजवद्ेीजब्रजट््ासन वयवस्था के जवरुद्ध सघं षशि परवान चढ़ता है तभी स्‍ती-पराधीनता के जवरुद्धनविागरणकालसेचलीआरहीसघं षशिकीचतेनाभीआदंोलन कास्वरूपग्रहणकरतीह।ै पजंितारमाबाई,साजव‍तीबाईफूलेिैसी मजहला और रािा राममोहन राय (1772 – 1833), स्वामी जववेकानंद (1863-1902), दयानंद सरस्वती (1824-1883), के्वचद्रं सेन (1838-1884),दवेेनद्रनाथटैगोर(1817-1905),रवीनद्रनाथटैगोर (1861-1941), भारतेनदु हररश्चनद्र (1950-1985), महावीर प्रसाद जद्वेदी(1864-1938),िैसे‘स्‍ती-पराधीनताकेजवरोधी’रहेजचतंक औरआदंोलनकताशिओंकेप्रयतनअब‘आधीआबादी’कीचतेना कास्वरबनिातीह।ैलेखनमेंस्‍तीअपनीउपजस्थजतमिबतूीसे दिशिकरतीह।ैवहींवैजश्वकस्तरपरचलरहेनारीवादीआदंोलनोंका प्रभावभीभारतवषशिकीआधी-आबादीकेआदंोलनपरपडताह।ै अमरेरकाके‘BraBurning’‘नारीवादीआदंोलनकेबादधीरे-धीरे
जस्थजतयाँ बदली, दृजष्टकोण भी बदले परनतु आि भी अमरे रका की इस ‘Women’s Liv’ का प्रभाव अनेक नारीवाजदयों पर दखे ा िा सकता ह।ैकृष्णासोबती(1925-2019),अमतृाप्रीतम(1919-2005), रमजणकागपुता(1930-2019),मननुभिंारी(1931-2021),मदृलुा गगशि(1938),रािीस‍ठे (1935),प्रभाखतेान(1942-2008),म‍तैेयी पष्ु पा (1944), नाजसरा ्माशि (1948) आजद, इस तरह अब भारतवषशि मेंस्‍ती-स्वरअपनीपहचानबनाचकुाह।ै
जकनत,ु िब हम जवकास या‍ता की बात जकसी द्े , साजहतय या आजथशिक प्रसगं में करते हैं तब समपणू शि िनता, िन-समाि इसके के नद्र मेंहोताह।ै जवज्ष्टऔरसामानयमेंजवभािननहींजकयािासकता। इसजलए ‘जहनदी-साजहतय का इजतहास’ में प्रजसद्ध -स्थाजपत, महान रचनाकारों के साथ-साथ गैर प्रजसद्ध रचनाकारों को भी ्ाजमल करना होगायहअजतगभंीरसमस्याह।ैिॉ.नजलनजवलोचन्माशिएवम्िॉ. नामवर जसहं िी ने हम्े ा इस ओर बल जदया है जक–‘इजतहास के जनमाशिण में जवज्ष्टों की अपक्षे ा गौणों का योगदान अजधक होता ह।ै ’ छायावादकोहीलीजिए–प्रसाद,पतं,जनराला,महादवेी–केइतर अनय रचनाकारों के नाम हम जकतना याद रखते ह?ै यही हाल वतशिमान मेंभीह।ैपज‍तकाओंम,ेंजव्षेांकोंमेंजकतनेहीलेखक-लेजखकाए,ँ महत्वपणू शि रचनाएँ सामने होती हैं परनतु उनहें या उनके रचजयता को हम साजहतय- की जवकास-या‍ता में नोजटस भी नहीं करते। अतः इस जस्थजत पर लगता है जक ‘हिनदरी स्हितय िें गौरों क् इहति्स’ अबअलगसेजलखािानाचाजहए।कयोंजकचाहे‘आधजुनकजहनदी साजहतय का इजतहास’ हो या जक ‘जहनदी साजहतय के सौ वषमों का इजतहास’इनहेंतोहाजसएपरहीरखागयाह।ै ममताकाजलयािीद्ारा सपंाजदतपस्ुतक‘मजहलालेखनकेसौवष’शिइसीतरहकीएकया‍ता चरणह।ै रािेनद्रबालाघोष(बंगमजहला)सेलेकरअलकासरावगी तकउनहोंनेजवधागतस्वरूपसेस्‍ती-लेखनकोसमटेनेकीकोज्् की ह।ै बहुत जवधाएँ और रचनाकार िो चजचतशि और प्रजतजष्‍ठत नहीं ह,ैं छूटी हैं और इस तरह यहाँ भी ‘हाजसए की लकीर’ खींच ही दी गई,परंतुसमुनरािेिीकेबादममताकाजलयािीकायहप्रयासभी सराहनीयह।ै इसीतरहदजलत,आजदवासी,जकननरमजहलारचनाकारों के प्रमखु एवम् गौण हस्ताक्षरों की ऐजतहाजसक जलजपबद्धता ‘जहनदी साजहतयकाइजतहास’केआधजुनकस्वरूपकोसमद्धृ औरपणूशिकर पाएगी। और, िब जनरपेक्ष इजतहासकार की दृजष्ट से इनका मलू यांकन होगा, मखु यधारा में इनको स्थान जमलेगा तब िनता की जचत्तवजृ त्त काअथशि‘आधीआबादी’कीजचत्तवजृत्तनहोकर‘परूीआबादी’की जचत्तवजृ त्त होगी।
दसूरीसमस्याहै‘खेिेब्जरी’–िोइजतहासलेखनकेसाथ नयाय नहीं कर पाता और साजहतय की जवकास या‍ता को बरुी तरह प्रभाजवत करती ह।ै जवचारधारा या जसद्धांत जव्षे के प्रजत प्रजतबद्धता से रचनाकार का मलू यांकन करना इजतहासकार का कायशि नहीं ह;ै यह कायशि पा‍ठकों और आलोचकों पर छोडा िाना चाजहए कयोंजक साजहतय की जवकास या‍ता में साजहजतयक योगदान महत्वपणू शि है अनय सबकु छ गौण।
आधजुनकजहनदीसाजहतयऔरस्‍तीजवम्शिकेसदंभशिमेंतीसरा
 जनवरी 2024 / ववशववा
19


























































































   19   20   21   22   23