Page 20 - Vishwa January 2024
P. 20

हीनउतरतेहोंपरनतुउसओरसाथशिकपहलतोकरतेहीहैंिो जहनदी साजहतय की जवकास या‍ता की ओर िाती ह।ै परनतु जिस तरह ‘िनता’ का अजभप्राय आचायशि ्कु ल ने मजहलाओ ं को ‘हाजसए’ में रखकरजलखा,उसीराहपरअनयसाजहतयइजतहासकारभीचलतेरह।े श्ीमदभागवदगीताके9वेंअधयायके32वेंश्लोकमेंकहागया–
पराधीन सपनेहु सखु नाप्ह ॥"
पराधीनतामा‍तदजैहक,भौजतक,यासामाजिकनहींहोतीबजलक मानजसक, भी होती ह।ै स्‍ती-जवम्शि ऐसी सोच के जवरुद्ध ही सघं षशि है िो उसकीप्रजतभाको,पहचानकोनज़रअदंािकरधीरे-धीरेउसेहाजसए परढकेलदनेाचाहताहैजपतसृत्ताकसमािकेइसमहीनषडयं‍तके इलज़ाम से जहनदी साजहतय के परुु ष इजतहासकार बरी नहीं हो सकते।
“मिाँ प्ह पाथगा वयपाप्श्तय येऽप्प ्यःु पापयोनयः।
प्््रियोवैशया्तथाशद्रूा्तेऽप्पयाप्नतपरांरप्तमि।्।” स्वाधीनताआदंोलनकेदौरमेंमहातमागांधी,नेतािीसभुाषचनद्र
(हेअिशिनु!स्‍ती,वैश्य्द्रू तथापापयोजन,चारिालआजदिो कोईभीहों,वेभीमरेे्रणहोकरपरमगजतकोहीप्रापतहोतेह)ैं
बोससरीखेनेताओ,ंऔरसजुम‍तानंदनपतं,सयूशिकांतज‍तपा‍ठीजनराला, महादवेीवमाशििैसेरचनाकारोंनेमजहलाओंकीबराबरीकीभागीदारी के बगैर रािनैजतक, सामाजिक एवम् सांस्कृ जतक आिादी एवं जनमाशिण कोअसभंवबतायाथा।कालांतरमेंयहप्रमाजणतभीहुआपरनतु
श्ीमदभ् गवतगीता में तो स्वयं भगवान श्ी कृष्ण ने ‘स्‍ती को
परमगजतकेयो्यमानाहैयाजनईश्वरतव-प्राजपतकीसवनोचचजस्थजत
केयो्य,ईश्वरतवयानीज्ञानप्राजपतकीसवनोचचजस्थजतकेयो्य साजहतय-इजतहासलेखनकेक्षे‍तमेंइसकाकोईसतंोषिनकप्रभाव कयोंजकज्ञानप्राजपतहीमजुकतह।ैपरनतुआचायशिरामचनद्र्कुलिीदखेनेकोनहींजमलता।जहनदीसाजहतयकाइजतहाससमप्रदायों,भखूिंों
एवं अनय सभी जहनदी साजहतय के इजतहासकारों ने इन जस्‍तयों को अपने इजतहास परमपरा में स्थान दने े यो्य भी नहीं माना।
आधजुनकजहनदीसाजहतयपरबातहोरहीहैतोजफरएकबार
आचायशि रामचनद्र ्कु ल िी की ओर मडु ना ही होगा। आचायशि ्कु ल
नेआधजुनककालसवंत्1900से1980जलयाहैअथाशित्सन्1843
से 1923 तक | इसके अतं गशित उनहोंने गद्य और पद्य दोनों की दोनों
धाराओंपरजवचारजकयाहैऔरयहींकहाजनयोंपरजवचारकरतेहुए
उनहोंने बंग िहिल् यानी र्जेनद्रब्ल् घोष की चचाशि की है जिनकी
‘दलुाईवाली’कहानी-1907में‘सरस्वती’पज‍तकामेंछपीभाग8, एकलमबीलडाई।1972मेंभारतवषशिमेंराष्ट्रीयस्तरपरकाननून सखंया5.म।ेंमजहलाओंकेउतपीडनकेजखलाफइसीबंगालकीजलंगकेआधारपरभदे-भावप्रजतबंजधतहोगया।और,तबिब धरतीसेलैंजगकसमानताकीघोरसमथशिकरुकरैय्सख्ितिुसरैनस्‍ती-लेखनकोअलगसेदखेनेकाप्रश्नउ‍ठातबयहतकशिजदया नेलघुकथाए,ँउपनयास,कजवताए,ँवयं्यऔरजनबंधभीजलखा। गयाजक“अनभुजूततोएकहोतीह,ैअतःसाजहतयभीएकहोताह।ै”
येउदशिूऔरअग्रंेिीमेंभीजलखतीथीं–इनके‘मोतीचरू’उपनयास कापहलाभागसन्1904मेंप्रकाज्तहुआऔरदसूरा1922म।ें जहनदी की िानी मानी उपनयास लेजखका आश्पूर्रा देिरी का लेखन काल भी 1922 से ही ्रूु होता है (1909-1995)। ‘उचछृंखल’ उपनयास की लेजखका श्ररीिहत देिरी का रचनाकाल भी यही है इनका असली नाम हनरूपि् देिरी था (1883-1951)। असजमया लेजखका नहलनब्ल्देिरीका‘सधंयासरु’भी1928मेंप्रकाज्तहुआ। ्कुलिीकेआधजुनककालकीसमय-सीमामेंहीमरा‍ठीलेजखका हिभ्िररी हशरूरकर असल नाम ि्लतरी बेडेकर–(1905-2001) भीजलखरहीथीं।प्रजसद्धकवजयज‍तNightingaleofIndia कहलानेवाली, सरोहजनरी न्यडू (1879-1949) की रचनातमकता का उदय और जवकास का कालखरि भी यही ह।ै परनतु आचायशि ्कु ल की कलम से आधजुनक काल के अजंतम अनचु छेद में भी इनमें से जकसी का जिक कहीं नहीं ह।ै यहीं आकर और प्रबद्धु परुु ष साजहतयकारों,इजतहासकारोंकीऐसीदृजष्टदखेकरतलुसीदासिीकी यह पंजकत यजद आ िाती ह–ै
“ढोर, रँवार, शद्रू , पशु नारी ये सब ताड़न के अप्धकारी!!”
अगरऐसाहीहैतोआितकमजहलालेखनसाजहतय-इजतहासमें हाजसएपरकयोंह?ै
परकाया प्रवे् लेखक मा‍त का गणु ह।ै इसमें मजहला और परुु ष का जवभािन मझु े भी स्वीकार नहीं है परंत–ु “िाके पैर न फटे जबवाई सो कया िाने पीर पराई” यह प्रजतरोधी स्वर भी इसजलए उ‍ठा कयोंजक अभी तक ‘साजहतय इजतहासकार’ का धयान इस ओर नहीं गया था। “जहनदीसाजहतयकाआधाइजतहास”जलखकरसमुनरािेनेइसकमी कोपरूाकरनेकाप्रयतनजकयाह।ै परनतुयहपयाशिपतनहींह।ै यही जस्थजत-दजलत साजहतय, आजदवासी साजहतय और अब जकननर साजहतय केसाथहोनाह।ैदजलतसाजहतयकासौनदयशि्ास्‍तजलखािाचकुाह।ै आनेवाले समय में आजदवासी साजहतय का सौनदयशि्ास्‍त और जकननर साजहतय का सौनदयशि्ास्‍त भी जलखा िाएगा।
इजतहास लेखन चाहे वह जकसी भी द्े का हो या जक साजहतय का िोजखम भरा काम ह।ै इजतहासकार अगर जकसी दृजष्ट जव्षे से ग्रजसतहोगातोसमयकेसाथ,िनताऔरउसकीजचत्तवजृत्तकेसाथ नयाय नहीं कर पाएगा। साजहतय-इजतहासकार के जलए आलोचक की भाँजत तटस्थ और जनरपेक्ष होना आवश्यक ह।ै जहनदी साजहतय का
औरवहींजस्‍तयोंकेपक्षमेंबाबातलुसीदासिीकीहीयहप्रतयेककालपनुमलशिूयांकनकीमांगकरताह।ैआधजुनककालमें पजंकतभीजक– छायावादकेसदंभशिमें‘गौणकजवयों’केमलूयांकनकाप्रश्नभीउ‍ठाया “कतप्वप्धसप्ृजनाररजरमिाप्ह, गयाथा।जहनदीसाजहतयकेसदंभशिमेंयहसमस्यागभंीरइसजलएभीहै
और बोजलयों, राि दरबारों, िाजतगत आधारों के ऊपर जलखा गया परनतु मजहला लेखन के आधार पर इजतहास का जवभािन कहीं नहीं हैऔरनाहीसाजहतयइजतहासकेपस्ुतकोंमेंउनहेंउजचतस्थानही प्रापत ह।ै
आधजुनकजहनदीसाजहतयकेपररप्रेक्यमेंिबहम‘स्‍ती-जवम्’शि का मद्ु ा उ‍ठाते हैं तो, 1792, 1848, 1946, 1960, 1966, 1970 औरअतंत:1972तककीएकलंबीया‍ताआतीहै|पणूशिकाननूी समानता के अजधकार से लेकर मजहलाओ ं की यौन स्वतं‍तता तक की
 18
विशिवा / जनिरी 2024







































































   18   19   20   21   22