Page 19 - Vishwa January 2024
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के गीजतकावयों में जमलता ह।ै िबब्ख्तून(1554-1609)जिनहें‘कश्मीरीबलुबलु’और
“The Last Independent Poet Queen Of Kashmir” कहा िाताहैउनहोंनेततक्ालीनिडसाजहजतयक-सामाजिकमलूयोंके जखलाफ आवाि उ‍ठाई थी। उनकी रचनाएँ आधयाजतमकता से लबरेि थी।वेकहतीह–ैं“आतमा,्रीर,ससंारसबक्षजणकह,ैंजवचारोंकी तरहमरेाछंद-बद्धपद्यअजवभकतसोच-जवचारकीमाँगकरताह,ै हेपरमातमामरेेगभंीरअपराधकोसमापतकरद।े”3हबबाखातनू
िि्देिरी इनमें सवशिप्रमखु लेजखका ह।ैं इनके “वचन सजं क्षपत - असमबद्ध पररचछेदों के रूप में हैं जिनके प्रतयेक पररचछेद का अतं ज्व के जकसी न जकसी स्थानीय नाम के साथ होता ह।ै 8
भजकतगीतों-कावयों,गद्योंकीरचनाकरनेवालीइनसाजहतय- साजधकाओं का नाम उललेख करना भी ्कु ल िी ने उजचत नहीं समझाह।ैइनमेंसेकुछज्वकीउपाजसकाहैंजकनतुअजधकां्श्ी कृष्णकेमाधयुशिभावकी|श्ीकृष्णकीमाधयुशिभावकीउपासना िरीर्ब्ई(रािस्थान)भीकरतीह।ैंआचायशि्कुलनेइनहेंकृष्णभकतों
आिादजवचारोंकीथीइसजलएवैवाजहकिीवनसफलनहींहुआ। में्यारहवेंस्थानपररखाह।ै9इसी13वींसदीमेंभजकतआदंोलनके
यहाँतककीपजतयसूफु्ाहनेउनकीचाररज‍तकपजव‍तताकीपरीक्षाप्रारंभमेंमहाराष्ट्रमें‘महानभुाव-समप्रदाय’एवम्’वारकरीसमप्रदाय’ लेनीचाहीतोहबबाखातनूनेआपमाजनतहोकरपहाडीसेछलांगकािनमहोताह।ै‘महानभुावसमप्रदाय’कीपरमपरािलदहीखतम
लगाकर िान दे दी। उनकी रचनाओं में वयजकतगत स‍तं ास और सामाजिकदखु-ददशिकीअजभवयजकतजमलतीह–ै
“O where is now the day’s delight?
I’ve waited long.
The golden wine cups of the night to him belong!”4
इसीतरहमनकोजझझंोडतीउनकीपजंकतयाँहैं–
“But love has melted me like snow
a waterfall as restless
as the summer streams I sleepless go”5
इसी कश्मीर से 16 वीं ्ती में (1620-1720) रूप भि्नरी केकावयपरकश्मीरी्जैवजमऔरइस्लाजमकसजूफजमकाप्रभाव जदखता ह।ै उनका आधयाजतमक जववके बहुत पररष्कृ त था।
“Selflessness is the sight of the selfless
bow down at the door of the selfless
the selfless are of the highest authority
the kings of the time and the wearers of the crest
and crown”6
रूपभवानीकामाननाथाजकअनभुजूतकेजलए,जसजद्धकेजलए आतमा का जवलयन आवश्यक ह।ै इस तरह रूप भवानी ने अपनी रचनाओ ं में ‘अहम् का जवसिशिन’, ‘जनववैयजकतकता का जसद्धांत’ भी सहिता पवू शिक रख जदया। उनहोंने कंु िजलनी िागरण को भी सामानय िन के जलए साधारण ्बदों में समझाया ह।ै अ‍ठारहवीं ्ताबदी में कवजय‍ती अररहनि्ल ने भी इस भजकत गीत परंपरा को आगे बढ़ाया। अररजनमाल ने प्रेम-सौनदयशि और वेदना के गीत जलख।े इनहोंने कश्मीरी भाषा को कु छ सनु दरतम गीत जदए जिनमें वैयजकतक और पारस्पररक भावनाओ ं का सहि प्रवाह ह।ै
उत्तर के बाद अब दजक्षण की ओर रुख करें तो 15वीं ्ताबदी में हीरािाकृष्णदवे राय(सन्1471-1529)के्ासनकालमेंभजकतन िोलल् हुई। यह कवजय‍ती नीची िाजत से थी। इनहोंने सहि-सरल तेलगू में ‘रामायण’ की रचना की, िो अतयजधक लोकजप्रय जसद्ध हुई।7
13वीं ्ताबदी से 16वीं ्ती के मधयकाल तक कननड भाषा
साजहतय के जवकास में सबसे अजधक काम ‘वीर-्वै मत’ के भकत
होगईजकनतुवारकरीसप्रं दाय’पललजवतहुई।इसमेंसभीिाजतयोंके सतंथे।पद-दजलतसमािकेसतंभीअपनीरचनाओंकीश्ेष्‍ठताके कारणमहत्वपणू शिस्थानरखतेथेजिनमेंएकजन्ब्ईद्सरीभीथीं। इनका नामोललेख भी ‘जहनदी साजहतय का इजतहास’ के पष्ृ ‍ठों पर नहीं ह।ै यहीजस्थजतहिजजक्,शरील्भट््ररक्,शहशप्रभ्,रेि्,रोि्, भ्रतरी हिश्र आजद सस्ं कृत-प्राकृत की कवजयज‍तयों के साथ-साथ त्जबेगि (कशिरीररी), ििदमब् (िर्ठरी) िैसी जवद्रोजहणी भारतीय भाषाओंकीरचनाकारोंकाह।ै आ्ययहजकफांसीसीकांजतके दौरान मजहला ररपजबलकन कलबों ने जिस आिादी, समानता और भ्ाततृ व का वयवहार जबना जकसी जलंग भदे के लागू करने की मांग की थी उनहें 13वीं ्ताबदी में वारकरी समप्रदाय ने अपने जसद्धांतों में और 14वीं ्ताबदी में ललद्यद ने अपनी रचनाओ ं में रख जदया था।
आचायशि रामचनद्र ्कु ल िी के कथन में तीन मखु य जबनदु ह–ैं
1.प्रतयेकद्े कासाजहतयवहाँकीिनताकीजचत्तवजृतका सजंचतप्रजतजबमबहोताह।ै
2. िनता की जचत्तवजृ त्त के पररवतशिन के साथ-साथ साजहतय के स्वरूप में भी पररवतशिन होता चला िाता ह।ै
3. इनहीं जचत्तवजृ त्तयों की परंपरा को परखते हुए साजहतय परमपरा के साथ सामिं स्य जदखाना ‘साजहतय का इजतहास’ कहलाता ह।ै
स्‍ती रचनाकारों के सबं ंध में ्कु ल िी ने स्वयं अपनी स्थापना का जनवहशि न नहीं जकया ह।ै ऐसा प्रतीत होता है िैसे स्‍ती-रचनाकारों को या कहें भजकतन रचनाकारों की अजभवयजकत को ्कु ल िी ने िनता की जचत्तवजृत्त का सजंचत प्रजतजबमब स्वीकार ही नहीं जकया ह।ै दसूरेइनभजकतनोंकीजचत्तवजृत्तकेपररवतशिनस्वरूपिोउनकेजलखे साजहजतयक-स्वरूप में पररवतशिन होता चला गया उसे भी ्कु लिी खाररि कर दते े ह।ैं इन स्‍ती-रचनाकारों का मानवधमशि को अपनाना या जफर ततकालीन िड-साजहजतयक, सामाजिक मलू यों के जवरुद्ध आवाि उ‍ठाना; ्कु लिी की दृजष्ट में नोजट् करने यो्य बात ही नहीं थी। इसजलए ्कु ल िी ने अपने ‘जहनदी साजहतय का इजतहास’ म,ें इन जचत्तवजृ त्तयों की परपरा को परखते हुए साजहतय परमपरा के साथ सामिं स्य जदखाने का कष्ट नहीं जकया। बीसवीं ्ताबदी के दसू रे-तीसरे द्क में तरह-तरह के इजतहास जलखे गए और मजहला
लेखकों ने जकया। इनहोंने गद्य में वचन-साजहतय को िनम जदया। इनमें दोसौसेअजधकलेखकथेजिनमेंअनेकमजहलाएँथी।अककलेखनकेअलगसेसकंलनभीप्रस्ततुजकएगए।जवधागतइजतहास
भी जलखा गया। ये सभी प्रयास इजतहास के मानदरिों पर खरे भले
 जनवरी 2024 / ववशववा
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