Page 18 - Vishwa January 2024
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जवशेष आलेख
आधुजनक जहनदी सपाजहतय और ‘स‍ती जवमशशि’
डॉ. कंचन शमागा
सि-आचायगा, सिनदी सवभाग, मसणपुर सवशवसवद्ालय, कांचरीपुर, इमफ़ाल-795003 फोन : 9612826587/9434308852 ईमेल-swarnmuktasharma@gmail.com
(डॉ. सुरने द्रनाथ सतवारी सवसभन्न रूपों में ससमसत और सवशवा से ्जुड़े रिे िैं। ‘्जागृसत’ नाम से पूरे गत वरगा चली सिनदी सासितय पररचय शंखला के अधययन और संसक्प्तीकरण का काम आपने अतयंत मनोयोग से संभाला। और सभी वयाखयानों का संसक्प्तीकरण ‘सवशवा’ के सलए उपलबध करवाया। इस दौरान सिनदी सासितय में मसिलाओं के योगदान वाले आलेख ने उनिें बिुत प्रभासवत सकया स्जसे उनिोंने सवद्ान वकता से आग्रि करके समसुचत ्वरूप में तैयार करवायासकसवशवाकेपा्ठकउसेसमपूणगारूपमेंपढ़सकें।मसिलाओंकेसशकतीकरणकेसलएसिनदीसासितयमेंउनकेयोगदानकोरेखासंकतकरनेवाला यि आलेख िम समपूणगा रूप से यिाँ दे रिे िैं। आशा िै पा्ठक इससे असधकासधक लाभासनवत िोंगे। –सं.)
बाद यह जवचार करना आवश्यक हो िाता है जक जहनदी साजहतय के पष्ृ‍ठोंसे‘स्‍ती-जवम्’शिजफसलकरहाजसएपरकयोंह?ैदसूरायहजक –‘स्‍ती-जवम्’शि जिन जबनदओु ं पर खडा है कया उनके बीि भी जहनदी साजहतय के इजतहास के गभशि में ह?ैं
 आधजुनकजहनदीसाजहतयऔरस्‍तीजवम्शिकीमहतवपणूशिपीज‍ठकाके ह,ैयहस्पष्टहीह।ैसमपणूशि‘जहनदीसाजहतयकाइजतहास’िो424 रूपमेंमैं‘साजहतय–इजतहास’केपननोंकोदखेतीहू।ँआििबयहपष्ृ‍ठोंकीह,ैउसमेंउनहोंनेकुलपाँचस्‍तीरचनाकारोंकोिगहदीह–ै जवद्ानोंद्ारामानजलयागयाहैजकआधजुनकालकेबीिभजकतकाल अदंाल;पष्ृ‍ठ86.
में ही पड चकु े थ,े तब वजैश्वक स्तर पर स्‍ती जवम्शि के 174 वषनो1
जहनदी साजहतय का इजतहास मखु यतः आजदकाल से प्रारंभ माना
िाता ह।ै इसमें मतभदे नहीं ह।ै जहनदी साजहतय का इजतहास इस बात
का प्रमाण भी है जक जहनदी साजहतय का कलेवर भारतीय साजहतय की
जमट्ीसेबनाह।ैआजदकालऔरभजकतकालहीनहींआधजुनककाल
और जहनदी साजहतय का समकालीन दौर भी इसका प्रमाण ह।ै वैसे तो
जहनदीसाजहतयकेइजतहासलेखनकेप्रारंजभकप्रयासजवदजे्योंद्ारा
जकएगएथे।उनकाउद्श्ेयभारतीयसाजहतयऔरसस्ंकृजतकोअपनी 1700(पवूशिमधयकाल)औरसवंत्1700-1900(उत्तरमधयकाल) तरहसेदखेनाथा।इसजलएजग्रयसशिनिैसेजवद्ानकाउपजनवे्वादीजनजश्चतजकयाह।ै दृजष्टकोण(‘मािशिनवनाशिकयलूरजलटरेचरऑफनादनशिशिजहनदस्ुतान’(सन् कृष्णभजकत्ाखापरचचाशिकरतेहुएउनहोंनेभजकतन-अंद्ल 1889)मेंसाफदृजष्टगोचरहोताह।ैउनहोंनेकालजवभािनकेजलए– कीबातकीहैमा‍तचारपजंकतयोंमें(पष्ृ‍ठ86.जहनदीसाजहतयका
1. कमपनी के ्ासन में जहनदस्ु तान (सन् 1800-1857) इजतहास) मझु े लगता है इसमें भी उनहनें े आदरभाव प्रकट नहीं जकया
2.जवकटोररयाकीछ‍तछाया/के्ासनमेंजहनदस्ुतान(सन्ह।ैउनके्बददजेखए–“दजक्षणमेंअदंालइसीप्रकारकीएकप्रजसद्ध 1857-1887)िैसेनामोंकाप्रयोगजकया। भजकतनहोगईहैंजिनकािनमसवंत्773मेंहुआथा....अदंालएक मरेाअजभप्रायसाजहतयइजतहासलेखनकेदृजष्टकोणसेह।ैदभुाशि्यस्थलपरकहतीहै‘अबमैंपणूशियौवनकोप्रापतहूँऔरस्वामीकृष्ण
से जिस जहनदी साजहतय के इजतहास को सबसे अजधक प्रामाजणक माना
िाता है और पढ़ा िाता है उसके लेखक आचायशि रामचद्रं ्कु ल िी
परभीएकांगीदृजष्टकोण,पक्षपातीलेखनकाआरोपलगचकुाह।ै
इसका सबसे बडा कारण है अपनी प्रजतज्ञा के जवरुद्ध उनका लेखन।
्कु ल िी स्वयं कहते हैं “िब जक प्रतयेक द्े का साजहतय वहाँ की
िनता की जचत्तवजृ त्त का संजचत प्रजतजबमब होता ह,ै तब यह जनजश्चत
है जक िनता की जचत्तवजृ त्त के पररवतशिन के साथ-साथ साजहतय के स्वरूपमेंभीपररवतशिनहोताचलािाताह।ैआजदसेअतंतकइनहींअपनायाऔरसत्आचरणसेदसूरोंकोभीराहजदखाई।उनहेंकश्मीरी जचत्तवजृत्तयोंकीपरंपराकोपरखतेहुएसाजहतयपरमपराकेसाथउनका सस्ंकृजतका‘कबीर’तककहागयाह।ैइनकेकावयमेंजवरजकत सामिं स्य जदखाना ही ‘साजहतय का इजतहास’ कहलाता ह।ै ” –और और भजकत का अपवू शि मले ह।ै इसी परमपरा का जवकास 15वीं-16वीं अपने साजहतय-इजतहास में ्कु ल िी ने ‘िनता’ का अथशि कया जलया ्ताबदी में हबबा खातनू (यसू फू ्ाह चक की प्रजतभा्ाली पतनी)
मीराबाई; पष्ृ ‍ठ 101.
बंगमजहला; पष्ृ ‍ठ 275.
श्ीमतीमहादवेीवमाशि;पष्ृ‍ठ388.
श्ीमती सभु द्राकु मारी चौहान; पष्ृ ‍ठ 389.
कमोबे् यही हालत सभी जहनदी साजहतय के इजतहास की ह।ै
इससे थोडी अलग ‘जमश्बंध-ु जवनोद’ की जस्थजत ह।ै यद्यजप स्वयं इन बंधओु ं ने इसे ‘इजतहास’ नहीं माना, परनतु वे स्वयं जलखते ह-ैं "हमारे जवचार में प्राय: सभी मखु य एवम् अमखु य कजवयों के नाम तथा उनके ग्रथंोंकेकथनसेएकतोइजतहासमेंपणूतशिाआतीह,ैदसूरेजहनदी भरिार का गौरव प्रकट होता ह।ै ” आचायशि ्कु ल ने अपने ‘जहनदी साजहतयकाइजतहास’मेंभजकतकालकीसमय-सीमासवंत्1375-
के अजतररकत और जकसी को अपना पजत नहीं बना सकती।’इस भाव कीउपासनायजदकुछजदनचलेतोउसमेंगह्य‍ु औररहस्यकीप्रवजृत्त होहीिायगी।”2औरइसीसभंावनाकेकारण्कुलिीनेअदंाल पर अजधक नहीं कहा। इसी समय 14वीं ्ती में लललद्यद भी हुई कश्मीर की धरती पर जिनकी रचनाओ ं में परमसत्ता की सवशिवयापतता की पररकलपना से पररपणू शि रहस्यवादी अजभवयजकत जमलती ह।ै
ललद्यद (1320-1392) ने मानव-कलयाण को धमशि मानकर
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विशिवा / जनिरी 2024


































































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