Page 48 - Vishwa_April_22
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एक शुभ आरमभ : सूचनपा भी- झलक भी
अ्नी दहनदी की ्हचपान
डॉ. हनुिानप्रिाद शुकल
वहनदी के प्रोफेिर। िंप्रवत : िहातिा गांिी अंतररा्ट्रीय वहनदी ववश्वववद्ालय, विा्व, िहारा्ट्र (भारत) िें प्रवतकुलपवत
  आज़ािीकेअमतृमहोतसववषजामेंप्रवासीभारतीयरों,दवशषेतःयवुा वगजा, को दह्िी सादहतय की दवरासत से पररदचत कराने और उसके प्रदतअदभरुदचरगानेकीदिशामें‘अतंरराषरिीयदह्िीसदमदत’ने ‘रागदृत’कारोसकंलपदलयाह,ैवहसबप्रकारसेअदभनंिनीयह।ै यह उद्म इसदलए भी बहुत महत्व का है दक सवयं दह्िी सवाधीनता की प्रतीक और आतमगौरव की भाषा ह।ै
दह्िीभारतकीसमचूीभाषापरंपराकािायलेकरदवकदसत हुईभाषाह।ै अतःउसकीरड़ेंप्राचीनकालसेचलीआरहीभाषा परंपरामेंरैलीहुईह।ैंयहबातयदिहमारेधयानमेंरहगेीतो‘अपनी दह्िी की पहचान’ में हमसे चकू नहीं होगी। मरे ी समझ में भाषा ‘माँ’ ह;ै रैसे दक हमारी ‘रननी’, रैसे दक ‘धरती’ और रैसे दक हमारी ‘ससं कृ दत’। भाषा ‘माँ’ की तरह ही हमारा पोषण करती ह,ै हमें रगत् का बोध कराती ह,ै हमारा ससं कार करती ह;ै वह हमारी धात्ी ह।ै
भारत की भाषाओ ं के सबं ंध में हमें सवजाप्रथम सबसे प्रबल पवू जाग्रह कादनराकरणकरतेचलनाचादहए।यहपवूग्रजाह‘औपदनवदेशक’ह।ै औपदनवेदशक शदतियरों ने यह सथापना िी दक भारत एक दपछड़ा हुआ िशे है और रहा ह।ै तो, एक दपछड़े हुए िशे की भाषा और ससं कृदत का भी दपछड़ा होना सवाभादवक ह।ै भारतीय भाषाओं को उ्हरोंने ‘वनाजाकयलुर’घोदषतकरदतरसकृतदकया।उनकीदशक्षाप्रणालीमें िीदक्षत हम भारतीयरों ने दशक्षा के साथ-साथ इस अवधारणा को अगंीकारदकयाऔर,पररणामसवरूप,हीनता-ग्रदंथकेदशकारहुए।मैं इस अवधारणा का प्रदतवाि करता हूँ दक भारतीय भाषाएँ ‘वनाजाकयलु र’ ह,ैंअसभयसमिुायकीभाषाएँह।ैंइससिंभजामेंमैंआपकोभारत की उस समर्ृ भाषायी परंपरा का समरण कराना चाहता हू,ँ दरसमें वैदिक ऋचाएँ रची गयीं; उपदनषि् रचे गये; रामायण, महाभारत, रामचररतमानस और दवपलु पररमाण में लदलत और शासत्ीय सादहतय सदृरतहुआ;दरसमेंहज़ाररोंवषषोंकालोककाअनभुवसदंचतह।ै हमारीभाषापरंपरानवनाजाकयलुरहैऔरनहीअसभय;दकसीिसूरे कोअसभयसमझनेसेअदधकअसभयताआद़िरकोईिसूरीहो सकती है कया? यह असभयता के साथ-साथ बबजारता भी ह।ै रहाँ तक दकसीभाषाकीसामथयजाकाप्रश्नह,ैआधदुनकभाषादवज्ञानभीभाषा- भाषामेंअतंरकरनेकापक्षधरनहींहैंऔरसभीभाषाओंमेंसमान सभं ावनाएँ िखे ता ह।ै अतः औपदनवदे शक अवधारणा अवज्ञै ादनक भी ह।ैहमरानतेहैंदकभारतएकपरुातनऔरदवशालिशेह।ैपरूब और पदश्चम में उसकी सीमाएँ घटती-बढ़ती रही ह,ैं दकं तु उत्तर-िदक्षण में वह प्रायः दसथर रहा ह;ै रैसा दक कहा गया ह–ै
उत्तरं यतसमद्ु सय हिमाद्श्े ैव दहषिणम।् विशिवा / Áअप्रैल 2022
वषषं तद् भारतं नाम भारती य‍त सनतहतः।।
दहमालय के िदक्षण और समद्रु के उत्तर का रो भारत ह,ै वह
केवल भौगोदलक भारत नहीं ह;ै वह सांसकृदतक भारत ह।ै यह सांसकृदतक भारत ही बहृ त्तर भारत का आधार रहा ह,ै दरसका पररदवसतार िदक्षणपवू जा एदशया से पदश्चम एदशया तक रहा ह।ै समचू े भारतराषरिमेंसमग्रताकीचतेनावयाप्तरहीह,ैरोसांसकृदतकदभदत्त परहीअवदसथतह।ैसमग्रताकीयहचतेनाभारतकीभाषायीपरंपरा का अदभ्न अगं रही ह।ै िशे और काल िोनरों में ही वह ‘समग्रता में वैदवधय’ को अदभवयति करती रही ह।ै
‘अपनी दह्िी की पहचान’ के दलए, हमें भारत के भाषायी इदतहास के संिभजा में ‘समग्रता में वैदवधय’ को समझ लेना चादहए। भारत में िो प्रकार के भाषायी प्रवाह रहे ह–ैं प्राकृ त और ससं कृ त। यद्दप ये िोनरों नाम भाषा-दवशषे के अथजा में रूढ़ भी हुए ह;ैं दकं तु ये िो भाषायी प्रवदृ त्तयाँ भी ह।ैं प्राकृ त भाषा का नैसदगजाक रूप ह;ै सभी मातभृाषाएँइसकेअतंगजातह।ैंससंकृतमानक(मानकीकृत)भाषाह,ै रोदकसी-न-दकसीप्राकृतभाषाअथवामातभृाषाकेआधारपर बहृत्तरप्रयोरनरोंकीपदूतजाकेदलएउसभाषा-समिुायद्ारादवकदसत कीरातीहैऔरकालांतरमेंअपनीसामथयजाकेबलपरसमचू ेराषरिके दवदवध मातभृ ादषयरों की साझी भाषा के रूप में प्रदतदषठत हो राती ह।ै यहभाषानकेवलसादहदतयकअदभवयदकतकेदलए,बदलकदचतंन, दशक्षा, ज्ञान-दवज्ञान, प्रौद्ोदगकी, वादणजय आदि समसत प्रयोरनरों की दसदर्कासाधनबनरातीह।ै भाषाकेब्हांडमेंप्राकृतऔरससंकृत का सबं ंध धरती और आकाश रैसा होता ह;ै धरती का रल ही आकाशसेबािलबनकरबरसताह।ै कहनेकाअथजायहदकप्राकृत औरससंकृतमेंकोईद्द्ं नहींहोता,िोनरोंएक-िसूरेकेपरूकहोतेह;ैं बदलकपररपरूकहोतेह।ैं ‘समग्रता’और‘वैदवधय’मेंयहीपररपरूक सबं ंध होता ह।ै भारत के भाषायी इदतहास पर दृदषट डालने पर यह बातसहरसमझमेंआरातीह।ै ससंकृत,पादल,सादहदतयकप्राकृतें, अपभ्रशं औरअबदह्िी,इसीतरहदवकदसतहोनेवाली‘ससंकृत’ह;ैं इनमेंकेवलनामऔररूपकाअतंरह।ैिसूराऔरकोईअतंरयदिहै तोवह‘ससंकृत’होनेअथाजात्मानकीकरणकेअनपुातकाहोसकता ह।ै इसीअथजामें‘अपनीदह्िी’कोभीमैंहमारेसमयकी‘ससंकृत’ मानता हू।ँ भाषा-दवशषे के अथजा में ‘ससं कृ त’ नाम रूढ़ होने का कारण किादचत् ‘मानकीकरण का प्रथम प्रयास’ हो। पर ‘ससं कृ त’ नाम से खयात भाषा के भी अनेक रूप रहे ह;ैं वह सिवै एकरूप नहीं रही ह।ै भारतीयवैयाकरणरोंनेइसेअनेकत्सपटिदकयाह।ै इसीप्रकारपादल, सादहदतयक प्राकृ तें, अपभ्रशं आदि भी ‘ससं कृ त’ ही ह,ैं प्राकृ त अथाजात्
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