Page 49 - Vishwa_April_22
P. 49

मातभृाषाएँनहीं।तो‘दह्िी’भी‘ससंकृत’ह;ैऔररैसेकभीससंकृत भारत की राषरिभाषा थी, वैसे ही आर दह्िी भारत की राषरिभाषा ह।ै रो लोग भारत के इस सनातन भाषा-प्रवाह को समझने में असमथजा ह,ैं वे दवचारधारा-दवशषे से आकांत छद्म औपदनवेदशक ही 19वीं शता्िी के उत्तरार्जा में दह्िी का र्म हुआ बताते ह।ैं भारतेंिु बाबू हररश्चद्रं कीइसदटपपणीमेंइसकादनराकरणपहलेहीहोचकुाह–ै ‘दह्िी नये चाल में ढली।’ अथाजात् दह्िी ने नया बाना धारण दकया; वहकोईनयीया्यारीभाषानहींह।ै यहदह्िीवैसेहीहैरैसेगगंोत्ी सेगगंासागरतकमलू प्रवाहएकह;ैबीच-बीचमेंअनेकनाम-रूप केप्रवाहउसमेंआकरउसकाअगं होरातेह,ैंगगंाहीहोरातेह।ैं तातपयजा इतना ही दक दह्िी को भारत की भाषा-परंपरा से दवदचछ्न करकेनहींिखेनाचादहए।सवाधीनभारतकेसदंवधान-दनमाजाताओंने इसे ठीक तरह से समझा था, दरसका प्रमाण दह्िी के दवकास को दिशा िने े वाला अनचु छेि 351 (भाग-17) ह–ै
“सघं का कत्तवजा य होगा दक वह दह्िी भाषा का प्रसार बढ़ाये, उसकादवकासकरे,दरससेवहभारतकीसामादसकससं कृदतके सभी तत्वरों की अदभवयदति का माधयम बन सके और उसकी प्रकृदत में हसतक्षेप दकये दबना दह्िसु तानी में और आठवीं अनसु चू ी में दवदनदिषजा ट भारतकीअ्यभाषाओंमेंप्रयकुतरूप,शलैीऔरपिरोंकोआतमसात् करतेहुएऔररहाँआवश्यकयावांछनीयहोवहाँउसकेश्िभडंार के दलएमखु यतःससं कृतसेऔरगौणतःअ्यभाषाओंसेश्िग्रहण करते हुए उसकी समदृर् सदुनदश्चत करे।”
अकसर दह्िी को उत्तर भारत की भाषा अथाजात् दवधं याचल पवजात सेउत्तरकीभाषाकेरूपमेंिखेारातारहाह,ैरोठीकनहींह।ै उत्तरभारतीयमातभृाषाओंयाप्राकृतरोंकीप्रधानताभलेरहीह,ैपर दह्िीकीबाँहेंसभीमातभृाषाओंकेदलएसहरहीखलुीह;ैंरैसे दक उपररदलदखत अनचु छेि 351 में सपषटतः उदललदखत ह।ै दह्िी न तो केवल खड़ीबोली या कौरवी है और न ही केवल अ्य उतर भारतीयमातभृाषाओ;ंयथा–अवधी,ब्रआदिपरहीदनभरजाह।ै दह्िी की हज़ार वषषों की दवकास-यात्ा में इनकी भदूमका आधारभतू ह,ै परदह्िीके प्रासाि-दनमाजाणमेंससं कृत,पादल,सादहदतयकप्राकृतरों, अपभ्रशं तथा अ्या्य भाषाओ ं का भी यथेषट योग ह।ै इसी कारण सवाधीनता आिं ोलन के समय दह्िी अदखल भारतीय सवीकृ दत के साथ राषरिभाषा के रूप में मा्य हुई। दह्िी में भारतीय राषरिीयता का दववेकइसीसेपषुटहुआह।ै दह्िीभारतीयससंकृदतकीवाणीह।ै
दह्िी का एक दवदशषट रूप और भी ह,ै रो दवदवधतापणू जा ह।ै यह दवदशटि रूप दगरदमदटया प्रवासी भारतीयरों द्ारा सबं ंदधत िशे रों में अपनीमातभृाषा(अवधी/भोरपरुी/दह्िी)औरवहाँकीसथादनक/ आदधकाररक भाषा के साथ दकयोलीकरण की प्रदकया से दवकदसत है औरयहभीदह्िीहीह।ै इनमेंदररीबात,सरनामीदह्िी,मॉरीशस की दह्िी आदि ह।ैं
भारत का पाँच हज़ार वषषों का भाषायी इदतहास सौमनसय का अनठूाउिाहरणह।ै19वींशता्िीमेंहमारेऔपदनवेदशकशासकरों नेदनदहतसवाथषोंकीदसदर्केदलएइससौमनसयकोभगं दकयाऔर दह्िी-उिजाूकाद्द्ं खड़ादकया।मधयकालीनशासकरोंने़िासप्रयोरन
के दलए रेखता नाम की एक दमदश्त भाषा दवकदसत की थी, रो आगे चलकर उिजाू कही राने लगी। यरों दह्िी और उिजाू भाषावैज्ञादनक दृदषट से िो भाषाएँ नहीं ह,ैं पर उ्हें यतनपवू जाक अलग कर दिया गया। भले ही अब उिजाू को एक अलग भाषा मान दलया गया हो, पर दह्िी का उससे भी दवरोध नहीं ह।ै दह्िी अपने सवभाव और बनावट से ही सदहषणु और समावेशी भाषा ह।ै
यद्दपभाषाऔरदलदपकासबंंधअदभ्निखेाराताह,ैरैसे दह्िीभाषाकीदलदपिवेनागरीह;ैदक्तुयहसमझनाआवश्यकहै दक दलदप भाषा नहीं ह,ै वह प्रौद्ोदगकी ह।ै भाषा ससं कृ दत का सह- उतपाि ह,ै रबदक दलदप सभयता का। दलदप बनायी या रची रा सकती ह,ै पर भाषा नहीं; हाँ, वह अपने बोलने वालरों को ज़रूर गढ़ती-बनाती ह।ै यह अलग बात है दक बहुत-से लोग भाषा बनाने का भी िभं भरते िखे े राते ह।ैं कोई भी भाषा-समिु ाय अपनी भाषा के दलए उपयतिु दलदप दवकदसत करता है और प्रयोग में आते-आते, साहचयजा-सबं ंध से,भाषाऔरदलदपअदभ्नहोरातेह–ैं ‘दगराअरथरलवीदचसम कदहयत दभ्न न दभ्न।’ दलदप भाषा की पहचान ही बन राती ह।ै इसदलएअबदह्िीकोिवेनागरीसेपथृक्करनाअसभंवह।ैदकंतु एक सरग भाषा-समिु ाय को प्रौद्ोदगकी में होने वाले अद्तन दवकास को अपनी दलदप के दलए अदरजात करना चादहए; अ्यथा उसकी भाषा दपछड़ राती ह,ै असमथजा होने लगती ह।ै और दरर, प्रौद्ोदगकी का दपछड़ापन भाषा के साथ भी सबं र् हो राता ह।ै दह्िी के सबं ंध में हमें इस दसथदत का सामना करना पड़ा ह,ै और एक लंबे आतम-सघं षजा के बाि अब राकर उबरने की दसथदत आयी ह।ै
अपनी दह्िी से इस पररचय के बाि हमें उसके सादहदतयक रूप से भी पररदचत हो लेना चादहए। रब हम दह्िी के हज़ार वषजा के इदतहास पर दृदषटपात करेंगे तो सिु रू पदश्चम में रहाँ एक ओर अद्हमाण हैं तोधरु पवू जामेंदवद्ापदतह;ैं मरुभदूममेंचिं औरमीराँहैंतोपरं ाबमें नानकहैंऔरकाशीमेंकबीर;ब्रभदूममेंसरू िासऔररसखानहैं तोअवधमेंरायसीऔरतलुसीिासह।ैंयेसबदह्िीकेहीकदवह,ैं परयहाँतकभाषामेंआचं दलकवदैशषट्यहैऔरकोईभीकदवदकसी भाषा रूप दवशषे से अदनवायजातः बँधा हुआ नहीं ह;ै अपनी सहूदलयत सेउसनेअपनीकावयभाषातयकरलीह।ै अवधीमेंहीरायसीकी पद्मावतऔरतलुसीिासकेरामचररतमानसकीकावयभाषाकाठाट और दव्यास एक ही नहीं ह।ै हाँ, आगे चलकर कदवता की रीदत- नीदतभीदसथरहुईऔरकावयभाषाभी;ब्रप्रायःसमचू ेउत्तरभारत मेंमा्यकावयभाषाहुई,दरसमेंकेशव,दबहारी,भषूण,िवे,मदतराम, सेनापदत,पद्माकर,दद्रिवे,घनानंि,ठाकुरआदिकदवहुए।आचायजा दभखारीिास ने सपषट वयवसथा िी थी दक—
ब्रजभाषािते ब्रजवासिीनअनमुानो,
एते एते कहबनि की बानी िूँ सो जाहनए। इसीप्रकारएकबारदरर19वीं-20वींशता्िीकेसदंधदबंिु
पर कदवता और गद् की भाषा के रूप का द्द्ं बहुत थोड़े समय तक रहा; दरर दरस धड़ाके के साथ िोनरों के दलए ‘नये चाल की दह्िी’ को अपना दलया गया, वह दवश्व की कावयभाषा के इदतहास में अपवू जा ह।ै ये भाषाएँ यदि िो ्यारी भाषाएँ होतीं तो रो हुआ, वह
 Áअप्रैल 2022 / विशिवा
47






















































































   47   48   49   50   51