Page 22 - Vishwa_April_22
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सादहतयकार बनने प्रेरणा िी। सकू ली दशक्षा के िौरान ही दवश्वनाथ रीनेतेलगु,ुअग्रंेरीऔरससंकृतभाषाओंकीअचछीरानकारीपा लीऔरइनभाषाओंकेसादहतयकागभंीरअधययनकरनेलगे, साथ ही साथ इन भाषाओ ं में सरृ न भी करने लगे। उनके सादहतय में प्रेम, सौंियजा, भदकत भावना की अदभवयदकत में रागातमकता और गीतातमकताकाअपवूजासामरंसयदिखाईितेाह।ै
कॉलेरमेंप्राधयापकपिपरदनयदुकतदमलीलेदकनसवतंत्प्रकृदत के होने के कारण सेवा की पाबंिी में वे अपने आपको बाँध नहीं सकेऔरकुछहीदिनरोंमेंनौकरीसेमकुतहोगए।कदवकेरूपमें प्रदसदर् और सथादपत हो राने के कारण रगह रगह उनका कदवता पाठ होता था। 1959 में उ्हें दवधान पररषि के नादमत दकए गए पर उ्हरोंने करीमनगर कॉलेर का दप्रंदसपल बनना पसिं दकया और िो वषषों तक उसी पि रह।े
वे िखे ने में गवजी, दतकतकं ठ और अहमम्य लगते थे, पर भीतर सेबड़ेदवनम्रथे।िहे सेिबुलेथे,परआचरणमेंउिार।1919से 1945तकआदथजाकअभावकेकारणउ्हरोंनेकईमसुीबतेंझलेीं,पर अपनेलेखनऔरकावयपाठसेरोभीधनकमायाउसेउ्हरोंनेखलु े हाथरों से उ्हें दिया रो कषट में थे। उनका रीवन िो सतयरों के दलए समदपजात था : कावय कला और लोकदहत।
कारदयत्ी प्रदतभा के कमठजा साधक दवश्वनाथ सतयनारायण में भावदयत्ीप्रदतभाकाभीभवयरूपदिखाईितेाह।ैसाथहीउनमें सरृनशीलताऔरसमीक्षातमकमनीषाकामदणकांचनसयंोगिखेने कोदमलताह।ैतेलगु,ुससंकृतऔरअगंरेरीसादहतयमेंउनकीगहरी रुदच का होना तो सवाभादवक ही था, पर आश्चयजा की बात यह है दक इन तीनरों भाषाओ ं के उतकृ षट सादहतय के वे अचछे समीक्षक थे। कादलिास के अदभज्ञान शांकु तल पर उनकी समालोचना सादहतय के दलए भी गौरव प्रिान करने वाली रचना ह।ै इसी प्रकार न्नय भटि, अललासादन पेद्ना, नाचन सोमना, नंदिदतममना आदि दवखयात तेलगु ु कदवयरों पर उनकी समालोचना पढ़ते समय पाठक का मन कहता है दक सतयनारायण सादहतय की अ्य दवधाओ ं को छोड़कर के वल समालोचना को अपनी लेखनी समदपजात करते तो आर तेलगु ु की सादहतय समालोचना का कु छ ही रूप हमारे सामने आता। लोग प्राय: कहते हैं दक कदवता का रस के वल वयाखयाकार रानता ह,ै कदव नहीं। पर दवश्वनाथ सतयनारायण ने इस उदकत को दनराधार दसर् दकया था।
रचन्एँ
दवश्वनाथ सतयनारायण ने सादहतय की दवदवध दवधाओ ं में सौ सेअदधकरचनाएँसादहतय-रगतकोिीह।ैं इनमें60उप्यास,29 कावय, 16 नाटक, 8 शतक एवं अनेक दवमशजा ग्र्थ शादमल ह।ैं
पुरसक्र
l 1964 में आध्रं दवश्व कला पररषि ने उ्हें " कालप्रपणू जा " से सममादनत दकया।
1970मेंउ्हेंआध्रं प्रिशे सरकारकेपरुसकारदवरेताकेरूप में सममादनत दकया गया।
1970मेंपद्मभषूणसममान
1971 में भारतीय ज्ञानपीठ सममान
अहभभ्षण के अंश
भारतीयज्ञानपीठपरुसकारअपजाणसमारोहकेिौरानदवश्वनाथ सतयनारायण द्ारा दिए गए अदभभाषण का सदं क्षपत रूप प्रसततु है :
मैं दवश्वनाथ सतयनारायण अपनी प्रशसं ा-प्रदतषठा और प्ररु ललता कोआपसबकेअतंसमेंदवरारमानकदवयरोंकेहषवोललदसतमनकी वांदछतकामना-पदूतजाकीघोषणामानताहू।ँयहप्रदतरलनआपके और मरे े िोनरों के दलए आनंिमय वरिान ह।ै
‘श्िओठरोंपरआयेऔरकदवतामेंततुलायें–यहपदंकतमझु पर लागू हो सकती ह।ै पालने से उतरते ही मैं तकु बंिी करने लगा था। अपने र्म के गाँव से चालीस मील िरू मछलीपटनम में मैं तीसरी श्ेणी में पढ़ता था। रब मरे े दपतारी मझु से वहां दमलने पधारे तो उ्हरोंने मझु े उसी तरह कदवता गढ़ते पाया। वे कोध से भर उठे। मरे े दपतातेलगुुकेदवद्ान्थे।महाभारतऔरभागवतउनकीउँगदुलयरों कीपोररोंपरथे।शायिउ्हेंलगादकयदिमझुेतकुबंिीकरनेकी धनु लग गई तो मैं भी एक दिन वैसा ही दभखारी कदव बन राऊँगा रैसे बहुधा उनके पास आया करते थे।
मनैंेदपतारीकेसममखु प्रदतज्ञाकीदकयदिमरेीक्षमताइस सतरकीहोपायी,तोमैंतेलगु ुरामायणकासरृ नकरूँगा।मनैं ेयह प्रदतज्ञा1913मेंकीथीऔर1934में‘रामायणकलपवक्षृ म’दलखना आरमभ दकया। मनैं े एक लाख पद् दलखे और उ्हें राड़ डाला और रला दिया। मरे े दलए ससं कृत भाषा का उतना ही ज्ञान प्रापत करनाअदनवायजाहोगयादरतनातेलगु-ुभाषामेंदवज्ञलेखकहोनेके नाते आवश्यक था। मनैं े ससं कृ त में रदचत कावय,नाटक और ससं कृ त- वयाकरण का अधययन दकया। मैं बहुलता से कदवता-रचना करता रहा और प्रकादशत होती रहीं और 1926 -27 में मनैं े अपने आपको समसामदयक दि्गर लेखकरों की अदग्रम पदंकत में खड़े पाया।
कयाअबमैंअपनीरामायणरचनाकरनेकीदसथदतमेंहू?ँ यह रानने के दलए मनैं े ‘बालमीकी’ की झांकी ली। इस महान कथा के प्राथदमक सवदेक्षण में मरे े सामने अनेक प्रश्न उपदसथत हुए। प्रशनरों का उत्तरखोरतेहुएमैंकईदवद्ानरोंकेपासपहुचँा।औरमझुेप्रकाश प्रापत हुआ। आदिकदव दरस परमानंि समादध में खो राते थे वह रस- तललीनताकीअवसथाह।ैप्रथमबारभरतमदुनने,तिपुरांतससंकृत वां्मय कोदविरों ने कहा है दक रस तललीनता रीव और आतमाकी वह तदड़त दवचछेि अवसथा है दरसमें रीव कामना और आसदकत
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l1938मेंआध्रंदवश्वदवद्ालयसममान‘वेदयपगंल’ुउप्यासकेसेउठकरअनभुवातीतअवसथामेंपहुचँराताह।ैकावयकाअदंतम दलए लक्य,पाठककोउसीरसानभुदूतकीपरमानंिअवसथामेंलेराना
1962मेंकेंद्रसादहतयअकािमीपरुसकार‘दवश्वनाथमधयकारल’ु ह।ैइसदलएरामायण-रचनाआरमभकरनेसेपवजामनैंेसबशासत्रोंका ू
के दलएदियागयाथा। दकंदचतज्ञानअदरजातदकया।परदरतनाहीमैंरामायणकोपढ़ताउतना विशिवा / Áअप्रैल 2022
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