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दवदशष‍ट शंखलपा – ज्पान्ीठ ्ुरसकपार 1970
 तरेलुगु सपादहतयकपार दवश्वनपाथ सतयनपारपायण
— प्रसतुवत : दीपक पाणडेय
भारतीयज्ञानपीठका1970वषजाकासादहतयपरुसकारतेलगुुभाषाकेओरसवीऔर शासत्ीयता-सपं ्न सादहतयकार श्ी दवश्वनाथ सतयनारायण को उनके महाकावय रामायण कलपवक्षृ मु के दलए प्रिान दकया गया था।
दवश्वनाथसतयनारायणबहुमखुीप्रदतभासपं्नसादहतयकारथे।उ्हरोंनेकदव, उप्यासकार, कहानीकार, नाटककार, समालोचक के रूप में सौ से अदधक ग्रथं रों के रचना की। प्राचीन सप्रं िायरों में उनका दवकास हुआ, दरर भी वतजामान यगु के प्रभाव से अलग रह।े वे प्राचीन ससं कृ दत के दचह्न वणाजाश्म, धमजा, गरुु -भदकत तथा अ्य प्राचीन सप्रं िायरों का प्रदतपािन करने वाले कलाकार थे।
सादहतयमेंअपनेदसर्ांतरोंऔरदवश्वासरोंकोदनभयजाताकेसाथपाठकरोंकेसामने रखकर उसमें सरलता और यश प्रापत करनेवाले सादहतयकार थे। उ्हरोंने राषरिीय आिं ोलन में भाग लेकर कारावास की सरा भी भोगी, अतः राषरि-सेवक भी थे। आध्रं वादसयरों ने ‘कदव-सम्राट’ उपादध िके र उनका उदचत सममान दकया।
दवश्वनाथ सतयनारायण का महाकावय ‘रामायण कलपवक्षृ म’ु बालमीकी रामायण की भाँदत प्रौढ़ एवं पररमादरजात रचना है दरसके प्रणयन में कदव को लगभगा 30 वषषों का समय लगा। इस महाकावय का कथानक छह खणडरों या काणडरों में दवभकत ह।ै काणडरों के नाम बालमीकी रामायण के नाम पर ही हैं के वल उत्तरकाणड नहीं ह।ै
कदव दवश्वनाथ ने अ्या्य सत्ोतरों से रामकथा के दवदवध पक्षरों का गहन अधययन दकया। उ्हरोंने अपनी रामकथा को नवीन आयामरों और मौदलक उद्भावनाओं के साथ पाठकरों के सममखु प्रसततु दकया है रो सहृिय पाठकरों को अपनी ओर खींचता ह।ै वसत-ु दव्यास,पात्-दृदषटऔररस-सतंलुनकीभाँदतभाषाभीप्रोढ़,पररमादरजातऔरप्रसगंोदचत ह।ै आदि-कदववालमीदककीवाणीकीरमणीयताकभी-कभीदवश्वनाथकोपरवशबना ितेीह।ैयहीनहीं,तेलगुुसादहतयकीहरारवषषोंकीपरंपराकाभीलाभउठानेकेदलए सतयनारायणकभी-कभीलालादयतहोरातेह।ैंकहेंन्यभटिकीप्रस्नकथामाधरुीसेवे अपने रामकथा को रमणीय बनाना चाहते हैं तो कभी पोत्ना की भदकत भावना का समरण करापलु दकतऔरभावकु बनरातेह।ैं कहींभवभदूतकीभाव-दवभदूतसेवेप्रभादवतहो राते हैं तो कभी अनघजा राघव के असाधारण श्ि सौषठव को अपने कावय में प्रदतदषठत करने का प्रयास करते ह।ैं
िरीिन पररचय
  ववश्वनाथ ितयनारायण िराठी ववश्वकोश
दवश्वनाथ सतयनारायण का र्म आध्रं प्रिशे के कृ षणा दरले के न्िनरू गाँव में 6 (6 अकटटूबर, 1895–18 अकटटूबर, 1976) अकटूबर, 1895 को हुआ। उनके दपता का नाम शोभनाद्री और माँ का नाम पावजाती था। उ्हरोंनेअपनेपवूजाररोंसेपैतकृ सपंदत्तकेरूपमेंकेवलईश्वर-भदकतदमलीऔरइसीसबंल को लेकर वे रीवन में आगे बढ़ते रह।े बचपन में दवश्वनाथ के दपता चाहते थे दक उनका बेटा अग्रं ेरी पढ़कर अचछी नौकरी हादसल करे दरससे पररवार की गरीबी िरू हो सके । इसी कारण उनका िादखला गाँव से 40 दकलोमीटर िरू मछलीपटिनम के अग्रं ेरी सकू ल
िहायक वनदेशक, केंद्ीय वहनदी वनदेशालय, वशक्षा
िंत्रालय, भारत िरकार, वेसट बलॉक-7, आर
के पुरि, नयी वदलली, िो. +91-8929408999 में कराया गया। सकू ल में तेलगु ु के प्रदसर् कदव चले लपलली वेंकट शासत्ी ने दवश्वनाथ E-mail: dkp410@gmail.com
सतयनारायणकीप्रदतभाकोपहचानदलयाऔरअपनेसाद्नधयऔरप्रोतसाहनसेगभंीर
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