Page 23 - Vishwa_April_22
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हीदवदसमतरहराता।उसमेंअनदगनतकथाएँगँथुीहुईह।ैंवेकया ह?ैं प्रतयेककथाकाकयाअथजाहैऔरकयायहरहसय?लोकातीत और धादमकजा अथषों से परे उस कथा के वणनजा में ही सैकड़रों प्रसगं और दृषटांतभाव-बर् ह।ैं कोई एक घटना दवशषे कयरों और दकसी दवशषे सथल पर ही कैसे घदटत हो? केवल दवद्ता भर काम न आयेगी। दरतना मैं रामायण को पढ़ता उतना ही भयभीत हो उठता। कया मरे े अग्रररन इन सब बातरों से अनदभज्ञ थे? इन सबके ‘कयरों’ से कया मैं अपने प्रयतन से हाथ धो लँ?ू मनैं े अपने दपतारी से पदवत् प्रदतज्ञा की थी।उसेतोड़िनेापापहोगा।मरेेहृियकोएकटीसनेमाथा।मझुे लगा दक एक अदनवायजा बाधयता प्रेररत कर रही है ‘रामायण दलखो, तमुरीवनकेउचचतमउतकषजाकोअनभुवकरोगे।’
शायि भगवान ने मझु े गढ़ा तो सांचे में भावना का अदतररकत सवंेिनऔरकलपना-शदकतकाचरमअविानभरदिया।मैंदनतांत साधारण सी बात को दवचारता और सोचता रह राता। रीवन रीने में इनबातरोंनेबहुतिखुदिया।िभुाजावनासेकहागयाएकश्ियारान- बझूकररोरसेकहागयाअसतयमझुेकोधसेपागलकरितेाथा।इस कारणलोगमझुेबरुाभीसमझते।दक्तुमरेीयहीिबुजालता,कदवता- रचना के समय एक वरिान बन राती। मनैं े इनमें से कु छ प्रवदृ त्तयरों कोआिशवजाािीरूपमेंसथादपतदकया।तेराचीरारूमेंमनैंे‘एकवीरा’ और‘वासतंी’कासरृनदकया।परुाणवैरग्रथंमालाकेअतंगजातएक उप्यास‘वेिवती’मेंमनैंेएकऔरप्रवदृत्तकोआिशवजाादिताप्रिान कीऔरअतं मेंअपनीरामायणके‘भरत’कोमनैंेइनसबप्रवदृत्तयरों कासाररूपबनाकरगढ़ा।औरएकबातअनकहीरहगई।मरेा सवभावहैदकमैंसोचाकरताहूँऔरदनषरलसोचताहू।ँ दक्तुयही दचतंनरबउचचसतरीयहोताहैतोबहुतसेदछपेचररत्,नईकथाएँ और नए भावाथषों का र्म होता ह।ै
मरेेभीतरएकसपषटअनभु दूतहुईदकप्रभुश्ीरामचद्रं नेमझु ेप्रेररत दकया है दक मैं रामायण दलखने बैठ राऊँ । शायि प्रभु को लगा दक
मैंएकदवशषे अनभुवमेंसेनहींगरु राहूँउ्हरोंनेमरेीपतनीकारीवन लेदलया,दरससेमैंदवरहकीपीड़ाअनभुवकरसकंू।सोठीकही ह,ै मनैं े अपनी रामायण-रचना प्रारंभ की। बालकाणड के 2000 में से 1600 पि दलखे और आगे दलखना छू ट गया, रबदक हर काणड के मलूरूपसे2000पिअनमुादनतथे।1961मेंनौकरीसेअवकाश ग्रहण दकया तब तक आध्रं सरसवती की सेवा,पसु तकरों की दबकी और तेलगु-ुभाषीप्रांतमेंप्रतयेकसथानपरदिएगएसैकड़रोंअदभनंिनरोंने मझुेरोटी-पानीकीदच्तासेमकुतकरदिया।एकप्रात:वायुमेंसपषट श्ि मखु ररत हुए—“रामायण दलखो, पनु : लेखनी उठाओ!” ये श्ि मनैं े सनु े।अदृश्य आिशे था। यर्ु काणड अदलदखत था। यर्ु काणड के 2000 पि चार-पाँच महीनरों में दलखे गए।
अबमैंअपनेभाषणके अदंतमसथलपरआगयाहू।ँ मरेेदपता की आतमा को, यदि वह अभी तक परमातमा में समादहत नहीं हुई ह,ैतोसतंोषकीप्रादपतहोगीऔरवहश्ीरामचद्रंरीकेवरिान- सवरूपपरमानंिकीअनभु दूतकरेगी।दरतनेसमयतकमैंउनकीकथा दलखतारहा,श्ीरामनेरोमरेीसहायताकीवहप्रभतू थी।महानकायजा समापत हुआ उनकी मदहमा अदनरूदपत ह।ै
वे सब वयदकत दर्हरोंने मरेी दकशोरावसथा से लेकर अब तक ‘रामायणकलप-वक्षृम’ुकेप्रदतअपनीसामथयाजानसुाररोकुछभी दकया ह,ै इस कलपवक्षृ की छाया में दवश्ाम करें। न केवल इस कलपवक्षृ की छाया म,ें बदलक प्रभु के गरुड़ातमन रथ की शीतल छाया म,ें दरसके पखं रों की परत पर परत आतमततव से सपं रू रत ह,ै दरसके नयनरों में मरकतमदण रड़े हैं दरनके बीच में अद्न-दशखा िीपत ह।ै
िमारेदिे अतंतःपररणतिोंआतमरूप
तापसेसशं द्धु ,उरव्शगामी
कयोंहक िम िैं अवकाश-तंत्वीय।
(इस लेख के हलए पुसतक ‘ज््नपरीठ पुरसक्र, सपं ्दक-हबशन ‍टंिन,
भ्रतरीय ज््नपरीठ प्क्शन’ की सि्यत् लरी गई िरै।)
  एक छो‍टी कदवतपा
कभी-कभी हाथरों से दनकल कयरों राती है श्िरोंकीिवेी?
इससे पहले
दक कदवता के राल में बाँधदलयाराए, गायब हो राती हैवह
क्षणभंगुर
  िेवलना चौबे
िंपक्क : selinachaubey@gmail.com
उड़तेहुए
ऊँ ची घास के ऊपर से
रैसे ताररक रू लरों कीहलकीखशुबू लपुत हो राती है क्षण-भर म,ें
हवा के बहते झरोंकरों में
 Áअप्रैल 2022 / विशिवा
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