Page 24 - Vishwa_April_22
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गीत/ग़ज़ल/कदवतपा /
  इब्पाहीम अश्क की कुछ ग़ज़लें
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िखेातोकोईऔरथासोचातोकोईऔर रबआके दमलाऔरथाचाहातोकोईऔर उसशख़सके चहेरेमेंकईरंगछुपेथे चपुथातोकोईऔरथाबोलातोकोईऔर िो-चार क़िम पर ही बिलते हुए िखे ा ठहरातोकोईऔरथागज़ु रातोकोईऔर तमु रानकेभीउसकोनपहचानसकोगे अनराने में वो और है राना तो कोई और उलझनमेंहूँखोिँूदकउसेपालँूकरूँ कया खोने पे वो कु छ और है पाया तो कोई और िश्ु मनभीहैहमराज़भीअरं ानभीहैवो
कया ‘अश्क’ ने समझा उसे वो था तो कोई और
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दतरीज़मींसेउठेंगेतोआसमाँहरोंगे हमऐसेलोगज़मानेमेंदररकहाँहरोंगे चलेगएतोपकुारेगीहरसिाहमको नरानेदकतनीज़बानरोंसेहमबयाँहरोंगे लहूलहूके दसवाकुछनिखे पाओगे
हमारे नक़श-ए-क़िम इस क़िर अयाँ हरोंगे समटे लीदरएभीगेहुएहरइकपलको दबखरगएरोयेमोतीतोराएगाँहरोंगे
उचाट दिल का दठकाना दकसी को कया मालमू हम अपने आप से दबछड़े तो दरर कहाँ हरोंगे
हैं अपनी मौर के बहते हुए समिंु र हम तमाम िश्त-ए-रनु ँू में रवाँ-िवाँ हरोंगे
ये बजम-ए-यार है क़ु बाजान राइए इस पर सनुाहै‘अश्क’यहाँदिलसभीरवाँहरोंगे
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शीशे का आिमी हूँ दमरी दज़िं गी है कया पतथरहैंसबके हाथमेंमझु कोकमीहैकया अबशहरमेंवोरूलसेचहेरेनहींरहे
कै सी लगी है आग ये बसती हुई है कया मैंरलरहाहूँऔरकोईिखेतानहीं
आखँ ेंहैंसबके पासमगरबेबसीहैकया तमु िोसतहोतोमझु सेज़रािश्ुमनीकरो कु छ तदल़ियाँ न हरों तो भला िोसती है कया
(21 जुलाई 1951-16 जनवरी 2022)
शायर, अवभनेता, गीतकार, पत्रकार
ऐगदिशजा-ए-तलाशनमदंज़लनरासता
मरे ा रनु ँू है कया दमरी आवारगी है कया
़िशु होके हरफ़रेबज़मानेकाखादलया येदिलहीरानताहैदकदिलपरबनीहैकया िो बोल दिल के हैं रो हर इक दिल को छू सकें ऐ‘अश्क’वनाजाशरे हैंकयाशाइरीहैकया
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रात भर त्हा रहा दिन भर अकेला मैं ही था शहर की आबादियरों में अपने रैसा मैं ही था मैंहीिररयामैंहीतफ़ू ाँमैंहीथाहरमौरभी मैंही़ििु कोपीगयासदियरोंसेपयासामैंहीथा दकसदलएकतराकेराताहैमसुादफ़रिमतोले आरसखूापेड़हूँकलतेरासायामैंहीथा दकतनेरजबरोंकीदनराली़िशुबएुँथींमरेेपास कोईउनकाचाहनेवालानहींथामैंहीथा
िरू ही से चाहने वाले दमले हर मोड़ पर फ़ासलेसारेदमटानेकोतड़पतामैंहीथा मरेीआहटसनुनेवालादिलनथािदुनयाके पास रासते में ‘अश्क’ बे-मक़सि रो भटका मैं ही था
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िदुनयालटुीतोिरू सेतकताहीरहगया
आखँ रोंमेंघरके ख़वाबकानक़शाहीरहगया उसके बिनकालोचथािररयाकीमौरमें सादहल से मैं बहाव को तकता ही रह गया
िदुनया बहुत क़रीब से उठ कर चली गई
बैठा मैं अपने घर में अकेला ही रह गया वोअपनाअकसभलू के रानेलगातोमैं आवाज़िेकेउसकोबलुाताहीरहगया
हमराह उस के सारी बहारें चली गई ं मरेीज़बाँपेरूलकाचचाजाहीरहगया कुछइसअिासेआके दमलाहमसे‘अश्क’वो आखँ रोंमेंरजबहोके सरापाहीरहगया
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विशिवा / Áअप्रैल 2022





































































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