Page 16 - Vishwa_April_22
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कहपानी
  डॉ. रंजना अरगड़े
दरंगल बरेलस
शायि शाम होने को हुई होगी। या ढलती िोपहर। कमरे में मोटे परिे डले हुए थे इसीदलए पतानहींचलरहाथादकबाहरकौन-सासमयचलरहाह।ै हुताशनीअपनेमेंडूबी-सी कोईदकताबपढ़रहीथी।वहखिु यहबतानहींपातीदकवहदकताबपढ़रहीहैया अपनेकोभीतरसेपढ़रहीह।ै यादररअपनाबीताहुआसमयअपनेभीतरआरभी गज़ु रता हुआ िखे रही ह।ै पर हाँ, रह-रह कर वह दकताब को उसके वतजामान मे टटोल लेती थी। वह डाइदनंग टेबलु पर बैठी थी। रब खाने -पीने का काम नहीं होता था तब यह उसका अपना रीदडंग टेबलु भी बन राता था। कई-कई बार तो ऐसा भी हुआ है दक उसका सामान रैला रहता और खाने का समय हो राता तब बड़ी परेशानी हो राती। परवहअपनीदकताबरों,कागज़रोंऔरलैपटॉपकोवहींिीवारसेदटकाकररखितेी और अपनी थाली वहीं रमा लेती। पर अब तो वे िो ही हैं तो यह एक रूटीन हो गया था दक वह अपना सामान समटे े और खाना खाए। अब हड़बड़ी नहीं रही। आना-राना अब लगभग बंि था पर अभी उसके भीतर का आना-राना लगा ही रहता था। दकतनी बार मोहनरी ने उसे टोका होगा दक वह अपने राइदटंग टेबलु पर कयरों नहीं पढ़ने- दलखने का काम करती। लेदकन वह भी कया करे? रसोई के ठीक सामने, एक तरह से उसकी दनगरानी में काम करते हुए वह अपने को सवाजादधक सरु दक्षत पाती थी। शायि दकएदटव भी।रसोईउसकेदलएबाहरऔरभीतरकासदंध-सथलथा।रहाँवहखिु तोहोतीही थी पर उससे बाहर रो कोई ह,ै रो कुछ ह,ै घर -बाहर का, वह भी वहीं होता था। लेदकन यह उसका साम्राजय नहीं था पर माँ के गभजा रैसी सरु दक्षत रगह थी, रहाँ वह रब तक होती थी सबकी नज़ररों से बच कर रह सकती थी, कयरोंदक आते-राते सबको दिखाई भी पड़ती रहती थी। सबकी नज़ररों की ज़ि में रहते हुए भी दकसी के धयान में न होना, उसकी दृदषट में सरु क्षा का सबसे अचछा तरीका था। वहाँ वह कु छ भी कर सकती थी। दरर उसे वहाँहोनेकेदलएदकसीकोकोईरवाबनहींिनेापड़ता।बैठकमेंतोयरोंभीजयािािरे बैठानहींरासकता,आने-रानेवालेलगेरहतेहैंऔरदररवहकोईमहेमानतोहैनहीं रोबैठकमेंबैठे।बसटीवीिखेनेदरतनीिरे...बेडरूममेंतोरातसोनेऔरसबुह उठनेतकहीरहारासकताह।ै छतपरजयािािरे के दलएचलीगईतोसबठीकहै न,िखेनेकेदलएमोहनरीआहीरातेथे।पहलेकभीकिाचबंटीभीआहीराता था।उसेहमशेाहीबहुतकुछकहनाहोताथा।कैसीिदुनयारचाईथीउसनेअपनी।इस उम्रमेंहरकोईरचताहैअपनीएकअलगिदुनया।हुताशनीकोयहसोचकरहसँीआ रातीहैदकअबवहदरसउम्रमेंहैतबहरएकअपनीिदुनयासेदघरराताह।ै बंटी की उम्र में िीवारें तक आसमान में घलु राने को उतावली रहती थीं और अब िरवारे दखडदकयाँ कब िीवाररों में बिलने लगती हैं पता नहीं चलता। एक दिन आप अचानक अपने को दघरा पाते हैं अपने ही रीवन से रहाँ दकसी की भी उपदसथदत खलल होती ह।ै
घटंीबरी।मोहनरीनेिरवाराखोला।हुताशनीकेकानिरवाज़ेपरराखड़ेहुए। अभी वह पहचान पाती दक कौन है मोहनरी आए और इशारे से जयािा श्िरों से कम यहसचूनािीकीपड़ोसीआएह।ैंऔरहुताशनीकोइशारादकयादकबाहरआए। हुताशनी ने मोहनरी को कई सवालरों वाली मद्रु ा में िखे ा दक इस समय कयरों। अपने को सभंालतेहुएऔरसामादरकताकीफ्ेममेंदरटकरतेहुएवहबाहरआई।सामनेरहने वालीशाहनीआईथी।नमसतेकालेनिनेहुआ।हुताशनीनेिखेादकवहबाहरराने
(पूव्व वहंदी ववभागाधयक्ष गुजरात ववश्वववद्ालय)
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विशिवा / Áअप्रैल 2022



























































































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