Page 14 - Vishwa_April_22
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सामादरक एवं नैदतक कथन’, ‘ऐदतहादसक महान-ग्रथं के रूप में रामायण’तथा‘अनवुािकेसवरूपकेदवषयम’ेंशीषकजा 9अधयायरों में दवभादरत दकया ह।ै इस तरह ‘रामचररतमानस’ के महतव का दवश्लेषणकरतेहुएउ्हरोंनेयगु-ससंकृदत,भावपक्ष,कलापक्ष,भाषा- शलैीआदिसभीदवषयरोंपरदवचारदकयाह।ैअपनीभदूमकाके प्राककथन में बाराद्नकोव ने दलखा ह,ै “भारत में वयापक लोकदप्रयता प्रापत करते हुए तलु सीिास ने रामायण (सोलहवीं सिी), मनोरंरन या पठन(मात्)केदलएनहींदलखा।उनकेिशेवासीदवरेताओंद्ारा धलू-धसूररतथेऔरउ्हरोंनेअपनेकावयकेद्ाराअपनेिशेकीरक्षा के दलए अपवू जा (मौदलक) मागजा प्रिशनजा की चषे टा की।” (प्राककथन, बाराद्नकोव, प.ृ क)
भदू मका को िखे ने से प्रतीत होता है दक बाराद्नकोव को भारत के इदतहास और ससं कृ दत का दकतना गहरा अधययन था। वे तैमरू के आकमण,लटूपाटऔरहतयाओंकावणनजाकरतेहुएउसकीतलुना रमनजा रादससटरों से करते ह।ैं वे दलखते ह,ैं “दिलली की ओर बढ़ते हुए उसनेपीछेखडंहररोंऔररलतेहुएशहररोंऔरगाँवरोंकेअदतररकत कुछनछोड़ा।वहदवशषेतयाइसबातपरगदवतजा थादकदिललीके पास (नीच)े एक समय उसने एक लाख बंदियरों के कतल की आज्ञा इस कारण िी दक उनकी चौकीिारी में उसकी बड़ी शदकत (सेना) लग रही थी। भारत की रारधानी दिलली शहर पर क्रा कर, उसने उसे अपनीबबजारसेनाद्ारापाँचदिनरोंतकलटूारानेकेदलएछोड़दिया। तैमरू के बबजार कायजा की समानता का कोई उिाहरण ज्ञात नहीं ह।ै हमारे समयमेंकेवलरमनजा रादससटराक्षसउनसेआगेबढ़े।”(मानसकी (रूसी)भदूमका,तलुसीिासकायगु,प.ृ3)
‘मानस’ का अनवु ाि करते समय उनकी दृदषट अनसु धं ानपरक रही ह।ैतलुसीिासकेसमयिशेपरअकबरकाशासनथा।वाराद्नकोव ने दलखा है दक तलु सीिास, अकबर से मात् 10 साल बड़े थे। अकबर केशासनकीप्रशसंाकरतेहुएबाराद्नकोवनेिोनोससंकृदतयरोंका एक-िसूरेकोप्रभादवतकरनेकादरकदकयाह।ैबाराद्नकोवने दलखाहैदकतलुसीिासनेरामकेदवरोधीकेशसत्रोंकावणनजाकरते हुएप्राय:रारसीकीश्िावलीकाइसतेमालदकयाह।ै वेउिाहरण ितेेहुएदलखतेह,ैं“रामकीसभाकावणनजा करतेहुएतलुसीिासउसे ‘िरबार’ कहते ह।ैं रारसी के ‘िरबार’ श्ि का प्रयोग इस प्रसगं में तलुसीिासनेकईरगहदकयाह।ै उिाहरणकेदलएअपनीरामायण केदद्तीयकांडमेंतलुसीिासकहतेह,ैं“भईबदड़भीरभपूिरबारा।” (मानसकी(रूसी)भदूमका,वकतवय,प.ृ 5)इसीतरहवेदलखतेह,ैं “सवयंरामकोदर्हेंतलुसीिासदवश्वकासववोचचशासकदचदत्त करतेहैंऔरदर्हें‘वेि’,‘िवैीततव’कहतेहैंउनकोतलुसीिास भारतमेंअतयंतवयापकअरबीश्ि‘साहब’सेसबंोदधतकरतेह।ैं इस प्रकार प्रथम कांड के आरंभ में ही हम पढ़ते ह,ैं “सरल सबल सादहबरघरुार।ू”(मानसकी(रूसी)भदूमका,वकतवय,प.ृ5)
बाराद्नकोवकीसक्ूमअनसुधंानपरकदृदषटकाएकउिाहरण यहभीिदेखए।वेदलखतेह,ैं“अपनेकावयमेंतलुसीिासकमलके रूप का वयापक प्रयोग करते ह।ैं भारतीय कावय के इस अतयंत दप्रय पषु प की अदभवयदकत के दलए वह बहुत से पयाजायरों का उपयोग करते
ह।ैंतलुसीिासमेंकमलकेदलएअतयंतप्रयकुतश्िदनमनदलदखत ह-ैं सरोरुह, वाररर, कमल, कं र, पकं र, रलरात, सरोर, रारीव, पाथोर, अबं रु , नलेंि,ु अरदविं , रलर, बनरात, नीरर, वनर, पकं रुह,सरसीरुह,कैरव,तामरस,रलरुह,रलराया,अ्र,इिंीवर, नदलनी,कुवलय,पद्मइतयादि।”(मानसकी(रूसी)भदूमका,प.ृ 97)
बाराद्नकोवद्ारातलुसीकेरामायणकेअनवुािकेमहतवका आकलनकरतेहुएमरुलीधरश्ीवासतवनेदलखाह,ै“रबभारतके नवोदितसादहदतयकतलुसीआदिकेकावयकोसमारकीप्राचीन रूदढ़यरों का पोषक अनभु व करते हैं तब सवयं वाराद्नकोव मानस की मदहमाकोसवीकारकरतेह।ैं उनकायहमानस-प्रेमहमेंचदकतकर ितेाह।ैवाराद्नकोवमानसमेंप्रगदतशीलततवकाउललेखकरते ह।ैं ” (दह्िी के यरू ोपीय दवद्ान : वयदकततव और कृ दततव, प.ृ 174)
बाराद्नकोवनेलेदननग्रािओररयंटलइसंटीट्यटू तथालेदननग्राि दवश्वदवद्ालय में दह्िी के अलावा उि,जाू मराठी, परं ाबी और बां्ला भाषाओंके अधययनकीवयवसथाकी।इसतरहरूसमेंदह्िीसादहतय के अधययन को प्रवदतजात और प्रदतदषठत करने का श्ये बाराद्नकोव को ही ह।ै
सोदवयत सघं में वहाँ की अकािमी का सिसय दनवाजादचत होना गौरव का दवषय माना राता ह।ै डॉ. के सरीनारायण शकु ल के श्िरों म,ें “भारतीय दवद्ा-दवज्ञान के दलए की गई आप (उनकी) की सेवाओ ं के महतव को सवीकार करते हुए 1939 में आप (बाराद्नकोव) को सोदवयतसघं कीअकािमीकेदलएचनुकरआपकोसववोचचसममान का पि दिया गया।” (मानस की (रूसी) भदूमका, वकतवय, पषृठ-5) अपनी यो्यता के बलपर वे लेदननग्राि दवश्वदवद्ालय और अकािमी में प्राचय दवद्ा इदतहास के दह्ि-दत्बती दवभाग के अधयक्ष चनु े गए। महापंदडतराहुलसांकृतयायननेदलखाह,ै“भारतकीपरुानीभाषाओं मेंससंकृतऔरप्राकृतकेअदतररकतवेआधदुनकभाषाओ-ंदह्िी, उिजाूआदिकेभीउद्भटदवद्ानह.ैं..।दह्िीतोउनकीकृदतयरोंकेदलए सिाकृतज्ञरहगेी।”(उर्तृ,दविशेीदवद्ानरोंकादह्िीप्रेम,रगिीश प्रसाि बरनवाल ‘कु ्ि’, प.ृ 91)
भारतीय दवद्ा के दवषय में उनके ज्ञान और उनकी सेवाओं कोिखेतेहुएतथासोदवयतसघंऔरभारतकीरनताकेबीच सांसकृदतक सबं ंध को मरबतू बनाने के दलए वहाँ की सरकार ने बाराद्नकोवकीभरपरू सराहनाकीऔर1945मेंउ्हें‘ऑडजारऑर लेदनन’रैसेमहतवपणूजानागररकसममानसेदवभदूषतदकया।उनके प्रयतनरोंसेहीप्राचयदवद्ाससंथानकेअतंगजातनतूनभारतीयकक्ष की सथापना हुई थी।
सेंट पीटसजाबगजा दवश्वदवद्ालय से लगभग पचास दकलोमीटर िरू बाराद्नकोव का गाँव कोमारोव है रहाँ उनकी समादध ह।ै उनकी समादधपरउनकादप्रयिोहाअदंकतह–ै “भलोभलाईपैलहदह,ंलहै दनचाईनीच/सधुासरादहयेअमरतागरलसरादहयेमीच।”
‘रामचररतमानस’केरूसीकावयानवुािकरनेसेपवूजाबाराद्नकोव नेलललूलालकृत‘प्रेमसागर’कारूसीभाषामेंअनवुािदकया था। प्रेमचिं की रचनाओ ं से भी वे कारी प्रभादवत थे और उ्हरोंने 1915 की ‘सरसवती’ में प्रकादशत प्रेमचिं की कहानी ‘सौत’ का
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विशिवा / Áअप्रैल 2022






















































































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