Page 12 - Vishwa_April_22
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दरनके हम ऋणी हैं : अलरेकसरेई ्ैत्ोदवच बपारपादनिकोव
रूसी में रपामचररत
‘रामचररतमानस’रैसेमहानग्रथं कारूसीभाषामेंपद्ानवुािऔरवहभीएकरूसी वयदकतद्ारा,रूसमेंरहतेहुए।कयायहमामलूीघटनाह?ैसाढ़ेिससाललगेथेइसके अनवुािम।ेंऔररबअनवुािकायजाचलरहाथाउसीिौरमेंदद्तीयदवश्वयर्ुशरूु होगया।दरतनीदवषमपररदसथदतमें‘रामचररतमानस’काअनवुािरूसीभाषामेंहुआ उतनीदवषमपररदसथदतमेंशायििदुनयामेंदकसीभीग्रंथकाअनवुािनहींहुआहोगा। अनवुाि-कायजामेंरोसहयोगसोदवयतसघं केकूरछदबवालेकमयदुनसटशासकसतादलन नेदकयाथावहभीहमेंचदकतकरताह।ैसतादलननेभीषणयर्ुकेिौरानहीअनवुािक बाराद्नकोव (Alexei Petrovich Barannikov, 21.03.1890-4.9.1952) को उनकीपरूीलाइब्रेीकेसाथकरादकसतानमेंएकगोपनीयऔरसरुदक्षतसथानपरपहुचँा दिया तादक वे दबना दकसी वयवधान के अपना काम कर सकें । सतादलन से रब लोगरों ने कहादकबाराद्नकोवतोकमयदुनसटरोंके दवरोधीहैंतोसतादलनकारवाबथादकइससे कया हुआ? वे िो िशे रों के बीच सेतु बनाने का महान काम कर रहे ह।ैं उनके काम में दकसी तरह का वयवधान नहीं आना चादहए। उनकी सरु क्षा बहुत ररूरी ह।ै
करादकसतान में रहते हुए वे असवसथ भी हो गए थे और उ्हरोंने अतयंत रु्णावसथा मेंअपनाकामपरूादकया।‘रामचररतमानस’कायहअनवुाि-कायजा1943मेंहीपरूाहो गयाथादक्तुप्रकादशतहुआ1948म।ें प्रकाशनकेबाियहअनदूितग्रथं वहाँइतना लोकदप्रय हुआ दक इसकी हराररों प्रदतयाँ रूसी पाठकरों द्ारा हाथरोंहाथ खरीि ली गई।ं
अपनेछंि-बर्अनवुािमेंबाराद्नकोवनेभारतीयकावयशासत्केदनयमरोंका यथासभंवपालनदकयाहैऔरयहधयानरखाहैदकउनकीमौदलकतापरकोईआचँन आने पाए और पाठकरों को भी भावाथजा को हृियंगम करने में दकसी तरह की असदुवधा न हो।आवश्यकतानसुारउ्हरोंनेयथासथानदटपपदणयाँभीिेिीह।ैं
रामदवलासशमाजानेबाराद्नकोवद्ारामानसकेरूसीअनवुािकीसमीक्षाअग्रंेरी में दलखी थी रो उस समय की पदत्का ‘सोदवयत दमत्’ मे प्रकादशत हुई थी। उस समीक्षा को पढ़कर बाराद्नकोव ने अपने ग्रथं की प्रदत अपना हसताक्षर करके रामदवलास री को उपहार सवरूप भरे ी थी। रामदवलास शमाजा ने इस घटना का दरक करते हुए दलखा ह,ै “आगरा आने पर कु छ दिन बाि मझु े बाराद्नकोव के हसताक्षर सदहत उस ग्रथं कीप्रदतदमली।यहरानकरमझुेप्रस््ताहुईदकउनकेअनवुािकीरोसमीक्षामनैंे दलखी थी, उसे उ्हरोंने पढ़ा था। इसके बाि ही उ्हरोंने उस ग्रथं की प्रदत मरे े कॉलेर के पते पर भरे ी थी। मैं इस बात से बहुत प्रभादवत था दक सोदवयत सघं में रब रीवन- मरण का सग्रं ाम दछड़ा हुआ था तब सतादलन ने बाराद्नकोव के दलए लेदननग्राि से िरू करादकसतान में ऐसी वयवसथा की थी दक वे अपने पसु तकालय के साथ वहाँ रहें और शाद्तसे‘रामचररतमानस’काअनवुािकरतेरह।ेंमनैंेअपनीसमीक्षामेंदलखाथादक सतादलन का यह काम दिखाता है दक वे मानव- ससं कृ दत के दलए लड़ रहे थे और इसमें बाराद्नकोव उनके सहयोगी थे। बहुत दिन बाि सोदवयत सघं में भारत-दवद्ा से सबं ंदधत एक पसु तक प्रकादशत हुई। भारत-दवद्ा के दलए सोदवयत सघं के नेताओ ं ने कया दकया इसका दववरण था। बाराद्नकोव का दरक के दबना तो भारत-दवद्ा का वणनजा हो नहीं सकता। बाराद्नकोव का उललेख था। अ्य नेताओ ं का उललेख भी था दक उ्हरोंने कै से भारत-दवद्ाकोप्रोतसाहनदिया।लेदकनसतादलननेतलुसीिासकीरामायणकाअनवुाि करने के दलए बाराद्नकोव को करादकसतान भरे ा था, इसका उललेख कहीं नहीं था।”
(अपनी धरती अपने लोग, िसरा भाग, प.ृ 44) ू
  ए. पी. बारावनिकोव (1890-1952)
डॉ. अिरनाथ
लेखक कलकत्ा ववश्वववद्ालय के पूव्व प्रोफेिरएवंवहनदीववभागाधयक्षहै।िमपक्क–ईई- 164/402, िेकटर-2, िालटलेक, कोलकाता- 700091 ईिेल: amarnath.cu@gmail. com िो. 9433009898
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विशिवा / Áअप्रैल 2022























































































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