Page 13 - Vishwa_April_22
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रादहर ह,ै रामदवलास शमाजा का सकं े त सतादलन के उत्तरादधकारी ख्श्ु चवे की ओर ह।ै वे आगे दलखते ह,ै “ख्श्ु चवे सोदवयत सघं की कमयदुनसटपाटजीकेमहासदचवसतादलनकेरमानेमेंहीहुएथे।वे पाटजी के बड़े नेताओ ं में दगने राते थे। सतादलन के दवश्वासपात् थे। सतादलनकेवषगजााँठकेसमारोहमेंउ्हरोंनेकहा,‘सतादलनहमारेदपता के समान ह’ैं । लेदकन सतादलन के मरने के बाि यह सारी बातें भलू गए। सतादलन की आलोचना करने का अदधकार सबको है लेदकन ख्श्ुचवे सतादलनकेसमयकीसारीबातरोंकोउलटकरपेशकरनेलगे। यह बात गलत थी। बाराद्नकोव के काम में सतादलन का रो सहयोग था, उसे उ्हरोंने इदतहास से दमटा िने े की कोदशश की।” (अपनी धरती अपनेलोग,िसूराभाग,प.ृ44)
रामदवलास शमाजा ने दलखा ह,ै “मानवता के प्रदत तथा दवज्ञान और ससं कृ दत के प्रदत यह दकतना अगाध दवश्वास कहा राएगा दक इसकेअनवुािपरसोदवयतसघं मेंउसघड़ीमेंइतनासमयऔर साधन वयय दकया गया। रबदक वह अतयदधक खतरे का सामना कर रहा था और सोदवयत नागररकरों द्ारा बचाये गए प्रदत रूबल और श्म को रादससटवाि के दवरुर् यर्ु में वयय दकया रा रहा था, लेदकनकयातलुसीिासकीकृदतकायहअनवुािरादससटवािके दवरुर् सघं षजा का एक अगं नहीं था? इस तरह बाराद्नकोव के कदठन प्रयतनरों से भारतीय कावय का एक अमलू य ग्रथं सोदवयत रनता के समक्षआसका।”(उर्तृ,दविशेीदवद्ानरोंकादह्िीप्रेम,रगिीश प्रसाि बरनवाल ‘कु ्ि’, प.ृ 88)
यकू े न दसथत पोलताव दरला के रोलोतोनोसत नामक सथान पर एकदनधनजा बढ़ईपररवारमेंर्मेबाराद्नकोवकेदपताकानामपयोत् इवानोदवच बाराद्नकोव था दरनका दनधन 1914 में ही हो गया। अधययन में बाराद्नकोव की रुदच बचपन से ही थी। अभावरों से रझूतेहुएउ्हरोंने1910मेंरेमनादसयम(मदैरिक)कीपरीक्षाउत्तीणजा की।उनकेअधययनकेमागजामेंआदथजाकसमसयाओंसदहतिसूरी अनेक बाधाएं उपदसथत हुईंदक्तु बाराद्नकोव ने बड़े साहस के साथ उनका सामना दकया और दकयेर दवश्वदवद्ालय से 1914 में(मदगसतर)सनातकहुएऔरअपनेतीनसौपषृठरोंकेशोध-दनबंध “सलाव, दलथवु और रमनजा भाषाओ ं के धातु रूप” पर सवणजा पिक प्रापतदकया।सेंटपीटसजाबगजा(लदेननग्राि)दवश्वदवद्ालयसेएम.ए. करने के बाि वे चार वषजा तक समारा (कु दवशये ेर) दवश्वदवद्ालय में प्रोरे सर रहे और बाि में सेंट पीटसजाबगजा आ गए। बाराद्नकोव की रुदच आरंभ में ससं कृ त के अधययन की ओर अदधक थी और उ्हरोंने र.ई.श्चरेवातसकीतथास.र.ओलडनवगजारैसेदवद्ानरोंसेससंकृत की दशक्षा ली। उन दिनरों रूस के प्राचय दवद्ादविरों में ससं कृ त तथा प्राचीनभारतीयधम-जािशनजाकेअनशुीलनमेंअदधकरुदचथी।धीरे- धीरेबाराद्नकोवकीरुझानआधदुनकभारतीयभाषाओंकेअधययन की ओर हुई। भारत को रानने की उनमें ललक थी और उ्हें लगा दकआधदुनकभारतीयभाषाओंकोरानेदबनाआधदुनकभारतको नहीं समझा रा सकता ह।ै
1935 में बाराद्नकोव को भाषा-दवज्ञान आचायजा (डॉकटर ऑर दरलालॉरी) की उपादध से सममादनत दकया गया। 1936 में
बारान्निकोव की समानि
उ्हेंदवज्ञानअकािमी(अकािमीऑरसाइसं)कासिसयबनाकर सववोचचसोदवयतसममानसेदवभदूषतदकयागया।इससममानकी प्रादपत के बाि से वे ‘अकािदमक बाराद्नकोव’ के नाम से प्रदसर् हुए।
तलुसीिासके‘रामचररतमानस’केमहतवकाआकलनकरते हुएवेदलखतेह,ैं“तलुसीिासकीसमसतकृदतयरोंमेंसबसेअदधक लोकदप्रयरामचररतमानसयारामायणप्रतीतहोतीह।ैमधययगुीन भारतकेसवजाश्षेठकदवकेरूपमेंतलुसीिासकासममानइसकृदतके आधार पर ही आधाररत ह।ै इस कारण तलु सीिास की यह कृ दत रूसी भाषामेंअनवुािकेदलएचनुीगईह।ैइसकेअधययनसेहमकेवल इस कृ दत की सरजानातमक प्रदतभा से ही पररदचत नहीं होते, प्रतयतु सामा्यतया भारतीय ‘कलादसकल’ सादहतय की दवदशषटताओ ं से भी पररदचतहोतेह।ैं”(मानसकी(रूसी)भदूमका,वकतवय,पषृठ-16)
‘रामचररतमानस’काअनवुािकरनेकेसाथहीउ्हरोंनेउसकी रोलंबीऔरदवद्त्तापणूजाभदूमकादलखीहैवहअपनेआपमें एक महतवपणू जा आलोचनातमक ग्रंथ ह।ै डॉ. केसरीनारायण शकु ल ने“‘मानस’की(रूसी)भदूमका”शीषकजा सेइसकादह्िीअनवुाि दकयाह।ै दवद्ामदंिर,रानीकटरा,लखनऊसे1955मेंप्रकादशत 192पषृठकीइसदवसततृभदूमकाकेसाथअनवुािककेसरीनारायण शकु लनेभी87पषृठकीअपनीभदूमकारोड़िीह।ै इसमेंमहामदंडत राहुलसांकृतयायनकीभीिोपषृठकीभदूमकाह।ै
इसेबाराद्नकोवने‘तलुसीिासकायगु’,‘तलुसीिासऔर उनकी कारदयत्ी प्रदतभा’, ‘तलु सीिास के रामायण की प्रबंधातमकता’, ‘तलुसीिासकीकदवताकादवदशषटसवरूप’,‘तलुसीिासके िाशदजानकदवचार’,‘तलुसीिासकेधादमकजादवचार’,‘तलुसीिासके
  Áअप्रैल 2022 / विशिवा
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