Page 27 - Vishwa January 2022
P. 27

काएकबहु्अचछानमनूारखाहुआथिा।झीलमेंलकड़ीकेडंडे गाड़धदएगएथिेऔरउनकेऊपरलकड़ीके्ख्ेबाँिकरउनपर झोंपधड़याँबनाईगईथिीं।इसघरऔरजमीनकेबीचमेंएकछोटा-सा पलतु बनाधदयागयाथिा।येधपछलेपतथिरकेयगतुवालेआदमी,जानवरों कीखालेंपहन्ेथिेऔरकभी-कभीसनकेमोटेकपड़ेभीपहन्े थिे।सनएकपौिाहैधजसके रेशोंसेकपड़ाबन्ाह।ै आजकलसन सेमहीनकपड़ेबनाएजा्ेह।ैंलेधकनउसजमानेकेसनकेपकड़े बहु् ही भद्े रहे होंगे।
येलोगइसी्रह्रककीकर्ेचलेगए;यहाँ्कधकउनहोंने ्ाँबे और काँसे के औजार बनाने शरूतु धकए। ्मतु हें मालमू है धक काँसा, ्ांबे और रांगे के मले से बन्ा है और इन दोनों से जयादा सख् हो्ा ह।ै वे सोने का इस्ेमाल करना भी जान्े थिे और इसके जेवर बनाकर इ्रा्े थिे।
हमें यह ठीक ्ो मालमू नहीं धक इन लोगों को हुए धक्ने धदन गजतुरेलेधकनअदंाजसेमालमूहो्ाहैधकदसहजारसालसेकम न हुए होंग।े अभी ्क ्ो हम लाखों बरसों की बा् कर रहे थिे, लेधकन िीरे-िीरे हम आजकल के जमाने के करीब आ्े जा्े ह।ैं नए पाषाण यगतु के आदधमयों में और आजकल के आदधमयों में एकाएक कोई्बदीलीनहींआगई।धफरभीहमउनके-सेनहींह।ैं जोकतुछ ्बदीधलयाँहुईंबहु्िीरे-िीरेहुईंऔरयहीप्रकृध्काधनयमह।ै ्रह-्रह की कौमें पैदा हुई ंऔर हर एक कौम के रहन-सहन का ढंग
अलगथिा।दधतुनयाकेअलग-अलगधहससोंकीआबोहवामेंबहु् फक्त थिा और आदधमयों को अपना रहन-सहन उसी के म्तु ाधबक बनाना पड़्ा थिा। इस ्रह लोगों में ्बदीधलयाँ हो्ी जा्ी थिीं। लेधकनइसबा्काधजक्हमआगेचलकरकरेंग।े
आजमैं्मतुसेधसफ्तएकबा्काधजक्औरकरूँगा।जबनया पतथिरकायगतु खतमहोरहाथिा्ोआदमीपरएकबड़ीआफ्आई। मैं्मतुसेपहलेहीकहचकतुाहूँधकउसजमानेमेंभमूधयसागरथिा ही नहीं। वहाँ चदं झीलें थिीं और इनहीं में लोग आबाद थिे। एकाएक यरूोपऔरअफ्ीकाकेबीचमेंधजरिारटरकेपासजमीनबहगईऔर अटलांधटक समद्रतु का पानी उस नीचे गढिे में भर आया। इस बाि में बहु्-से मद्त और और्ें जो वहाँ रह्े थिे डूब गए होंग।े भाग कर जा्े कहाँ? सैकड़ों मील ्क पानी के धसवा कतु छ नजर ही न आ्ा थिा। अटलांधटक सागर का पानी बराबर भर्ा गया और इ्ना भरा धक भमू धय सागर बन गया।
्मतुनेशायदपिाहोगा,कमसेकमसनतुा्ोहैही,धकधकसी जमानेमेंबड़ीभारीबािआईथिी।बाइधबलमेंइसकाधजक्हैऔर बाज ससं कृ ् की धक्ाबों में भी उसकी चचा्त आई ह।ै हम ्ो समझ्े हैं धक भमू धय सागर का भरना ही वह बाि होगी। यह इ्नी बड़ी आफ्थिीधकइससेबहु्थिोड़ेआदमीबचेहोंग।े औरउनहोंनेअपने बचचोंसेयहहालकहाहोगा।इसी्रहयहकहानीहम्कपहुचँी।
  िि
्मतुझकतुोयामैंझकतुँूपरएककोझकतुनापड़ेगा
यहअनठूीहीसदीहैधजनदगीबह्ीनदीहै पार करना भी कधठन है कम्त की गठरी लदी है
्मतु रुकोयामैंरुकँूपरएककोरुकनापड़ेगा ्मतुझकतुोयामैंझकतुँूपरएककोझकतुनापड़ेगा
जब अकेले ही चलोगे हाथि ्ब अपने मलोगे दरूरयाँबि्ीरहगेंीयाधकमधंजलकोछलोगे
्मतुबँिोयामैंबँिँूपरएककोबँिनापड़ेगा ्मतुझकतुोयामैंझकतुँूपरएककोझकतुनापड़ेगा!
कम-्तपथिपरपगबिा्ेसवग्तिर्ीकोबना्े मनजतु को िोखा धदया कयों सवग्त का सपना धदखाके
्मतु सिो या मैं सिँू पर एक को सिना पड़ेगा ्मतुझकतुोयामैंझकतुँूपरएककोझकतुनापड़ेगा
खड़ीहैंपथिपरचनतुौ्ीलेरहेरक्षकधफरौ्ी सतयसलूीपरचिाहैप्राणकीमाँगेमनौ्ी
्मतु उठो या मैं उठूँ पर एक को उठना पड़ेगा ्मतुझकतुोयामैंझकतुँूपरएककोझकतुनापड़ेगा
चनैधबनहैंनेह-लधड़याँटूट्ीसबंंिकधड़याँ धकस ्रह हो राग सरतु में अलग हैं सब की ढपधलयाँ
्मतुहटोयामैंहटूँपरएककोहटनापड़ेगा ्मतुझकतुोयामैंझकतुँूपरएककोझकतुनापड़ेगा
होरहींमककाररयाँहैंबिरहींदश्तुाररयाँहैं राष्ट्परसकंट्नाह;ैघणृाकीधचगंाररयाँहैं
्मतु डटो या मैं डटूँ पर एक को डटना पड़ेगा ्मतुझकतुोयामैंझकतुँूपरएककोझकतुनापड़ेगा
एक गीत
वनरंतर सवरिय कवव, लेिक, संयोजक, वशषिक, ववशवा के आजीवन सदसय, मरुरादाबाद; संपक्क mcdivakar@gmail.com
डॉ. महेश वदवाकर
 जनवरी 2022 / ववशववा
25


















































































   25   26   27   28   29