Page 37 - Vishwa_April_22
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हो,सहसाअपनेवयदकतगतअहकंारकेकारणउसमेंदवश्वासकरना ब्िकरि?ेिोहीरासतेसभंवह।ैंयातोमनषुयअपनेकोईश्वरका प्रदतद््द्ीसमझनेलगेयावहसवयंकोहीईश्वरमाननाशरूु करि।े इन िोनो ही अवसथाओं में वह सचचा नादसतक नहीं बन सकता। पहली अवसथा में तो वह अपने प्रदतद््द्ी के अदसततव को नकारता हीनहींह।ैिसूरीअवसथामेंभीवहएकऐसीचतेनाकेअदसततव को मानता ह,ै रो पिदे के पीछे से प्रकृ दत की सभी गदतदवदधयरों का सचंालनकरतीह।ैमैंतोउससवजाशदकतमानपरमआतमाकेअदसततव सेहीइनकारकरताहू।ँयहअहकंारनहींह,ैदरसनेमझुेनादसतकताके दसर्ा्त को ग्रहण करने के दलए प्रेररत दकया। मैं न तो एक प्रदतद््द्ी हू,ँ न ही एक अवतार और न ही सवयं परमातमा। इस अदभयोग को असवीकार करने के दलए आइए तथयरों पर गौर करें। मरे े इन िोसतरों के अनसुार,दिललीबमकेसऔरलाहौरषडय्त्केसकेिौरानमझुेरो अनावश्यक यश दमला, शायि उस कारण मैं वथृ ादभमानी हो गया हू।ँ
मरेानादसतकतावािकोईअभीहालकीउतपदत्तनहींह।ैमनैंेतो ईश्वर पर दवश्वास करना तब छोड़ दिया था, रब मैं एक अप्रदसर् नौरवान था। कम से कम एक कालेर का दवद्ाथजी तो ऐसे दकसी अनदुचतअहकंारकोनहींपाल-पोससकता,रोउसेनादसतकताकी ओरलेराये।यद्दपमैंकुछअधयापकरोंकाचहतेाथातथाकुछ अ्यकोमैंअचछानहींलगताथा।परमैंकभीभीबहुतमहेनती अथवापढ़ाकूदवद्ाथजीनहींरहा।अहकंाररैसीभावनामेंरँसने का कोई मौका ही न दमल सका। मैं तो एक बहुत लजरालु सवभाव का लड़का था, दरसकी भदवषय के बारे में कु छ दनराशावािी प्रकृ दत थी। मरे े बाबा, दरनके प्रभाव में मैं बड़ा हुआ, एक रूदढ़वािी आयजा समारीह।ैं एकआयजासमारीऔरकुछभीहो,नादसतकनहींहोता। अपनीप्राथदमकदशक्षापरूीकरनेके बािमनैं ेडी0ए0वी0सकूल, लाहौर में प्रवेश दलया और परू े एक साल उसके छात्ावास में रहा। वहाँसबुहऔरशामकीप्राथजानाकेअदतररकतमेंघणटरोंगायत्ीमत्ं रपाकरताथा।उनदिनरोंमैंपरूाभकतथा।बािमेंमनैं ेअपनेदपता के साथ रहना शरूु दकया। रहाँ तक धादमकजा रूदढ़वादिता का प्रश्न ह,ै वह एक उिारवािी वयदकत ह।ैं उ्हीं की दशक्षा से मझु े सवत्त्ता के धयेय के दलए अपने रीवन को समदपतजा करने की प्रेरणा दमली। दक्तु वे नादसतक नहीं ह।ैं उनका ईश्वर में दृढ़ दवश्वास ह।ै वे मझु े प्रदतदिन परू ा-प्राथजाना के दलए प्रोतसादहत करते रहते थे। इस प्रकार से मरे ा पालन-पोषण हुआ। असहयोग आ्िोलन के दिनरों में राषरिीय कालेर में प्रवेश दलया। यहाँ आकर ही मनैं े सारी धादमकजा समसयाओ ं – यहाँ तक दक ईश्वर के अदसततव के बारे में उिारतापवू जाक सोचना, दवचारना तथा उसकी आलोचना करना शरूु दकया। पर अभी भी मैं पकका आदसतक था। उस समय तक मैं अपने लमबे बाल रखता था।यद्दपमझु ेकभी-भीदसकखयाअ्यधमषोंकीपौरादणकताऔर दसर्ा्तरोंमेंदवश्वासनहोसकाथा।दक्तुमरेीईश्वरकेअदसततवमें दृढ़ दनषठा थी। बाि में मैं काद्तकारी पाटजी से रड़ु ा। वहाँ दरस पहले नेतासेमरेासमपकजाहुआवेतोपककादवश्वासनहोतेहुएभीईश्वर के अदसततव को नकारने का साहस ही नहीं कर सकते थे। ईश्वर के बारेमेंमरेेहठपवूजाकपछूतेरहनेपरवेकहते,“रबइचछाहो,तब
परू ा कर दलया करो।” यह नादसतकता ह,ै दरसमें साहस का अभाव ह।ैिसूरेनेता,दरनकेमैंसमपकजामेंआया,पककेश्र्ालुआिरणीय कामरेड शची्द्र नाथ सा्याल आरकल काकोरी षडय्त् केस के दसलदसले में आरीवन कारवास भोग रहे ह।ैं उनकी पसु तक ‘ब्िी रीवन’ईश्वरकीमदहमाकाज़ोर-शोरसेगानह।ै उ्हरोंनेउसमेंईश्वर केऊपरप्रशसंाकेपषुपरहसयातमकवेिा्तकेकारणबरसायेह।ैं28 रनवरी, 1925 को परू े भारत में रो ‘दि ररवोलयशू नरी’ (काद्तकारी) पचाजा बाँटा गया था, वह उ्हीं के बौदर्क श्म का पररणाम ह।ै उसमें सवजाशदकतमानऔरउसकीलीलाएवंकायषोंकीप्रशसंाकीगयी ह।ैमरेाईश्वरकेप्रदतअदवश्वासकाभावकाद्तकारीिलमेंभी प्रसरुदटत नहीं हुआ था। काकोरी के सभी चार शहीिरों ने अपने अद्तम दिन भरन-प्राथजाना में गरु ारे थे। राम प्रसाि ‘दबदसमल’ एक रूदढ़वािी आयजा समारी थे। समारवाि तथा सामयवाि में अपने वहृ ि अधययन के बावरिू रारेन लाहड़ी उपदनषि एवं गीता के श्लोकरों के उचचारण की अपनी अदभलाषा को िबा न सके। मनैं े उन सब मे दसरजा एक ही वयदकत को िखे ा, रो कभी प्राथजाना नहीं करता था और कहता था, “िशजान शासत् मनषु य की िबु जालता अथवा ज्ञान के सीदमत होने के कारण उतप्न होता ह।ै वह भी आरीवन दनवाजासन की सरा भोग रहा ह।ै पर्तु उसने भी ईश्वर के अदसततव को नकारने की कभी दहममत नहीं की।
इस समय तक मैं के वल एक रोमांदटक आिशजावािी काद्तकारी था।अबतकहमिसूररोंकाअनसुरणकरतेथे।अबअपनेक्धरों पर दज़ममिे ारी उठाने का समय आया था। यह मरे े काद्तकारी रीवनकाएकदनणाजायकदब्िुथा।‘अधययन’कीपकुारमरेेमन के गदलयाररों में गँरू रही थी – दवरोदधयरों द्ारा रखे गये तकषों का सामना करने यो्य बनने के दलए अधययन करो। अपने मत के पक्ष मेंतकजा िने ेके दलएसक्षमहोनेके वासतेपढ़ो।मनैं ेपढ़नाशरूु कर दिया। इससे मरे े परु ाने दवचार व दवश्वास अिभ् तु रूप से पररषकृ त हुए। रोमांस की रगह गमभीर दवचाररों ने ली ली। न और अदधक रहसयवाि,नहीअ्धदवश्वास।यथाथजावािहमाराआधारबना।मझु े दवश्वकाद्तकेअनेकआिशषोंकेबारेमेंपढ़नेकाखबू मौकादमला। मनैं े अरारकतावािी नेता बाकु दनन को पढ़ा, कु छ सामयवाि के दपता माक्स को, दक्तु अदधक लेदनन, त्ातसकी, व अ्य लोगरों को पढ़ा, रो अपने िशे में सरलतापवू जाक काद्त लाये थे। ये सभी नादसतक थे। बाि में मझु े दनरलमब सवामी की पसु तक ‘सहर ज्ञान’ दमली। इसमें रहसयवािी नादसतकता थी। 1926 के अ्त तक मझु े इस बात का दवश्वास हो गया दक एक सवजाशदकतमान परम आतमा की बात, दरसने ब्हाणडकासरृन,दि्िशनजा औरसचंालनदकया,एककोरीबकवास ह।ै मनैं े अपने इस अदवश्वास को प्रिदशतजा दकया। मनैं े इस दवषय पर अपने िोसतरों से बहस की। मैं एक घोदषत नादसतक हो चकु ा था।
मई1927मेंमैंलाहौरमेंदगरफतारहुआ।रेलवेपदुलसहवालात मेंमझु ेएकमहीनाकाटनापड़ा।पदुलसअफ़सररोंनेमझु ेबतायादकमैं लखनऊमेंथा,रबवहाँकाकोरीिलकामकु िमाचलरहाथा,दक मनैं े उ्हें छु ड़ाने की दकसी योरना पर बात की थी, दक उनकी सहमदत पाने के बाि हमने कु छ बम प्रापत दकये थे, दक 1927 में िशहरा के
 Áअप्रैल 2022 / विशिवा
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