Page 31 - Vishwa_April_22
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संसमरण : रदलयपांवपालपा बपाग़ की यपाद
दस दशपाब्दयरों बपाद
(वरर्ठ लेखक और गज़लकार, जनि आज के पावकसतान िें, ववभाजन के बाद भारत िें वशक्षा-दीक्षा, अधयापन। योरप होते हुए कनाडा पहुँचे, िमप्रवत वपछले पांच दशक िे कनाडा िें)
हम दविशे रों में बसे हुए परं ाबी दह्िसु तान की आरािी की तहरीक से दकसी न दकसी तरह रड़ु े हुए हैं चाहे वह 1857 का गिर हो, भारत छोड़ोआ्िोलनहो,सभुाषच्द्रबोसकीआरािदहिं रौरहो,राटरों का अकाली मोचाजा और असहयोग आ्िोलन हो या रदलयांवाला बागकानरसहंाररहाहो।1946कीबातह।ैदपछलेिोसालरोंकी तरह मरे े दपतारी मझु े अपने गाँव पाछट ले राने के दलए आए। मनैं े अपने बचपन के ्यारह साल समिंु री के दनकट नदनहाल वाले गांव चक नंबर 138 री।बी। ररदसआणा में बताए। दपछले साल उ्हरोंने मझु े अपने रु रे रे भाई के पास एक हफता ठहरकर लाहौर दिखाया। खासतौरपरअनारकलीबारार।रावीपार,शहशंाहरहांगीरकी बारािरी,नरूरहांकामकबरा,महारारारणरीतदसहं कीसमादध, अरायब घर, दचदड़याघर, खास तौर पर “भदंगयरों की तोप।”
रहाँवेइससालमझुेअमतृसरलेगए।खालसाकालेरमें सौकर (रु टबाल) के राने माने दखलाड़ी थे, हॉल और दप्रंदसपल के कमरे में रिादरयाँ, तसवीरें आदि दिखाकर उ्हरोंने होसटल का वह कमरा भी दिखाया दरसमें ्यारह साल की उम्र से लेकर 23 साल की उम्र तक रह।े उसके बाि वे मझु े िरबार साहब ले गए।
रलुाईकामहीनाथा।प्रचडंगमजीथी।सगंमरमरपरचलतेहुए पैररलरहेथे।मरेीआखँेंिखुनेलगीथी।खरै,प्रसािकरवाकर मतथा टेका। अरायब घर तो दकसी ने िखे ने ही नहीं दिया। दपतारी लंगर छके दबना वहाँ से राना नहीं चाहते थे। हमने पररकमा कर लंगर छका। बाहर गरूु रामिास सराय की ओर दनकले। मरे े दपतारी नेसबसेपहलेमझु ेधपू काचश्मालेकरदिया।हमवहाँसेदविाहुए हीथेदकउनकासहपाठीकरतारदसहं वहाँआगया।वहशायियहीं आस-पास दकसी सरकारी िफतर में काम करता था।
दपतारी को िखे ते ही “भाई साहब आप?” कहकर उनसे दचपट गया। थोड़ी िरे बाि रब उनका आवगे थोड़ा कम हुआ तो उनका धयानमरेीओरगया।
“यहमरेाबेटाह,ैकुलवतं।मैंइसेरदलयांवालाबागदिखाने ले रा रहा था।”
मरे े दपतारी बोले। दरर वे बोले, “मनैं े इसे होसटल का वह कमरा दिखाया दरसमें हम रहते थे।”
“कयातमुनेइसेरदलयावालाबागकीघटनाकेबारेमेंबताया?”
“हाँ बताया। उस दिन मरे े साथ और मरे े बड़े भाई साहब -इसके तायारी के साथ बीती घटना भी बताई। आर मैं इसे वह रगह दिखाने के दलए लाया हू।ँ
वह13अप्रैल1919,बैसाखीवालेदिनकीबातह।ै उसदिन सकू ल (खालसा सकू ल) बंि था। हम ्यारह-्यारह, बारह-बारह साल
  नदीि परिार
के लड़के थे। हम, िो तीन कमररों के छात्रों ने दमलकर िरबार सादहब बैसाखी िखे ने का कायजाकम बनाया। हम वहाँ राने के दलए इकट्े हुए ही थे दक इसी िौरान तेरे तायारी आए और बोले–
कोई भी लड़का यहाँ से बाहर नहीं राएगा। बाहर सड़करों पर रौर घमू रही ह।ै अगर कोई यहाँ से दहला या बाहर गया तो रान लोदकउसेरौदरयरोंकेहाथरोंदपटनापड़ेगा।उ्हेंदकसीकोिखेते हीगोलीसेभनू िने ेकाआिशे ह।ै मनैं ेयहबातसकूलके गेटपर लोगरोंसेसनुकरआयाहू।ँ
“कया हम ...?”
“दबलकु ल नहीं।” हमबचचेथे।डरगए।चपुचापकमरेमेंबैठेरह।ेदररथोड़ीशाम
हुई तो गेट के साथ लगे सकूल के खले के मिै ान में राकर रुटबाल खले ने लगे। रब शाम थोड़ी गहराई तो हम िखे ते हैं दक भाई साहब- तेरे तायारी आ रहे ह।ैं न तो उनके दसर पर पगड़ी थी और न पैररों में रतू े। गंिगी से सनी उनकी कमीर शरीर से दचपकी थी। उनके पास से टटिी-पेशाब की बिबू आ रही थी।
रबहमनेपछूातोवेबोले,“मनैंेतमुलोगरोंकोबाहरनरानेकी दहिायत िके र खिु उतसकु तावश िरबार साहब न राकर रदलयाँवाला बाग की ओर चल पड़ा। वहाँ लोग हराररों की सखं या में इकट्े हुए थे। वहाँ दतल रखने की रगह नहीं थी। मैं दखसकते दखसकते सबसे पीछेचलागयारहाँमचं मदुश्कलसेहीदिखाईितेाथा।वहाँइतना
 दीवपानरों की बपात
कुलवनत नदीि परिार
प्राण मलु क के दलए दिए उन िीवानरों की बात करो धमजा, भषे पर डटे रहे उन िीवानरों की बात करो।
आज़ािीकेदलएखनूिोयहसभुाषकावािाथा, परूाअपनावचनदकयाउनिीवानरोंकीबातकरो।
गोली खाई, रांसी झलू े बना बनाके टोदलयां दकसी रलु म से डरे नहीं उन िीवानरों की बात करो।
मदंरलदरनकीआरािीथीसबकारारसमानहो दडगे नहीं इस मकसि से उन िीवानरों की बात करो।
िशेभकत,योर्ा,शहीितककभीदकसीनेकहानहीं वाणी-भषे-करममेंसचचेिीवानरोंकीबातकरें
 Áअप्रैल 2022 / विशिवा
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