Page 19 - VishwaApril2021.html
P. 19

वजनके हम ऋणी हैं
वहन्ी सावहत्य के पहलदे इवतहासकार : गासाां ् तासी
   डॉ. अमरनाथ
लरेखक कलकत्ा रिशिरिद्ालय के पूिति प्ोफेसर एिं रिन्िी रिभागाधयक्ष िै। समपक्क–ईई-164/402, सरेकटर-2, सालटलरेक, कोलकाता-700091 ईमरेल: amarnath.cu@gmail.com मो: 9433009898
चवकत करने िाला त्थ् है वक ‘इसतिार द ल वलतरेत्रु ऐदं ईु ऐ ऐदं सु तानी’ रीषक्श से वहनदीसावहत्कापहलाइवतहासवलखनेिालेगासा्शदँ तासी(JosephHeliodore Sagesse Vertu Garcin De Tassy) कभी भारत नहीं आए थिे। िे फ्ांस में वहनदसु तानी के प्रोफे सर थिे। फ्ांस में रहकर ही उनहोंने वहनदसु तानी की वरक्षा भी ग्हि की थिी। िहाँ रहकर उनहोंने फ्ें च में वहनदी सावहत् का पहला इवतहास तो वलखा ही, िह उस सदी का सिसे ज्ादा समधिृ इवतहास ग्थिं भी ह।ै उनका इवतहास तीन वजलदों में है जो क्रमर: 1839, 1847 और 1871 में प्रकावरत हुआ। इस पसु तक कीपहलीऔरदसूरीवजलदेंफ्ांसकेराजकी्मद्ुिाल्में्पीथिींऔरलंदन तथिापेररसमेंविक्रीकेवलएरखीगईथिीं।दसूराससंकरिभीपेररससेही1871में प्रकावरतहुआथिा।इसकीविरालताकाअनमुानइसीत्थ्सेवक्ाजासकता हैवक1871केससंकरिकीपहलीवजलदमें1223,दसूरीवजलदमें1200और तीसरी वजलद में 801 कवि्ों और लेखकों का वििरि ह।ै
वहनदी में वलखा ग्ा वहनदी सावहत् का प्रथिम इवतहास वरिवसहं सेंगर कृ त ‘वरिवसहं सरोज’ है जो 1877 में प्रकावरत हुआ थिा, तथिा अग्ं ेजी में वलखा ग्ा वहनदी सावहत् का प्रथिम इवतहास सर जॉज्श अब्ाहम वग््स्शन कृत ‘द मॉ्न्श िना्शक्लु र वल्टरेचर ऑफ वहनदसु तान’ है जो 1889 में प्रकावरत हुआ थिा। इस तरह वनवि्शिाद रूप से तासी का ्ह ग्थिं वकसी भी भाषा में वलखा ग्ा वहनदी सावहत् का प्रथिम इवतहास ह।ै
इतना ही नहीं, अपने ग्थिं में गासा्श दँ तासी (25.1.1794- 2.9.1878) ने वजस ित्तृसग्ंहरलैीकोअपना्ाहैआगेचलकरवरिवसहंसेंगरऔरजॉज्शवग््स्शनने भी उसी रलै ी को अपना्ा।
्ॉ. सईदा सरु ैय्ा हुसैन ने तासी की वलखी गई 155 कृ वत्ों का वजक्र वक्ा ह।ै उनके काम को तीन वहससों में िाँ्टा जा सकता ह।ै एक तो वहनदसु तानी सावहत् के िारेमेंउनकाफ्ेंचमेंवलखाग्ासावहत्,दसूरा,उनकेद्ाराकीगईवहनदसुतानीकी सावहवत्ककृवत्ोंकासकंलनऔरसपंादनवजसमेंिलीदकनीकीकाव्-कृवत्ों कासपंादनभीरावमलह,ैऔरतीसरा,वहनदसुतानीकीमहतिपिू्शकृवत्ोंकाफ्ेंच में अनिु ाद, वजसमें मीर अममन की मरहूर कृ वत ‘िाग-ओ-िहार’, सर सै्द अहमद खाँ की पसु तक ‘असरारुस सनादीद’ का अनिु ाद भी रावमल ह।ै
गासाांदतासीकीवहनदसुतानीऔरवहनदिीमेंवलखीगईप्रमखु पसुतकोंमें ‘लेओत्रू ऐदंसुतानीऐल्रू उिरज’(वहनदसुतानीलेखकऔरउनकीरचनाए)ँ, ‘ल लॉग अ ल वलतरेत्रू ऐदं सु तानी द 1850 अ 1869’ (1850 से 1869 तक वहनदसुतानीभाषाऔरसावहत्),‘रुवदमाँदललॉगऐदंईु’(वहनदईुभाषाकेप्राथिवमक वसधिांत), ‘रुवदमाँ द ल लॉग ऐदं सु तानी’ (वहनदसु तानी भाषा के प्राथिवमक वसधिांत) आवद महतिपिू ्श ह।ै
गासाां द तासी का जनम 25 जनिरी 1794 को फ्ांस के मारसेली (Marseille) में हुआ थिा। ‘गासाां’ उनके वपता का सरनेम थिा और तासी उनकी माँ का। उनका पररिार वमस्र मलू का थिा और वपता का एक अच्ा खासा व्िसा् थिा। वकनतु तासी की रुवच पढ़ने- वलखने में अविक थिी। आरंभ में उनहोंने अरिी का अध््न वक्ा और उसके िाद उनकी रुवच परू ि की भाषाओंके अध््न की ओर हो गई। अध््न के वलए िे 1817 में पेररस चले गए। िहाँ चार िष्श रहकर उनहोंने प्रख्ात
 अप्रैल 2021 / विशिवा
17
























































































   17   18   19   20   21