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खोलकरकहा,“मैंसै्दअहमदखाँजैसेविख्ातमसुलमान “ग्े्टवब््टेनकीसाम्राज्ीको विद्ानकीतारीफमेंऔरज्ादानहींकहनाचाहता।उद्शूभाषाऔर दवेि, मसुलमानोंकेसाथिमरेाजोलगािहैिहकोईव्पीहुईिातनहीं ्हवनतांतसिाभाविकहैवकमैंसाम्राज्ीसेएकऐसाग्थिंसमवप्शत ह।ैमैंसमझताहूँवकमसुलमानलोगकुरानकोतोआसमानीवकतािकरनेकासममानप्राप्करनेकीप्राथि्शनाकरूँवजसकासिंंिभारतिष,्श मानतेहीह,ैंइजंीलकीवरक्षाकोभीअसिीकारनहींकरते,परवहनदूआपकेराजद्ंकेअतंग्शतआएहुएइसविसततृऔरसदंुरदरे,और लोगमवूत्शपजूकहोनेकेकारिइजंीलकीवरक्षाकोनहींमानते।” जोइतनाखरुहालकभीनहींथिावजतनावकिहइगंलैं्केआवश्त (उधितृ,वहनदीसावहत्काइवतहास,रामचद्ंरकुल,नागरीप्रचाररिीहोनेपरह,ैकेसावहत्केएकभागसेह।ै्हत्थ्सि्शमान्हैऔर सभा,िारािसी,सिंत्2035,पठिृ-296)। इसकेअवतररतिआिवुनकवहनदसुतानीलेखकइसकाप्रमािदतेेह,ैं
तासीकानजरर्ा्द्वपिादमेंउद्शूके प्रवतअविकउदारहो
ग्ा वकनतु आरंभ में िे वहनदईु और वहनदसु तानी को एक ही परंपरा में
रखकरदखेरहेथिे।उनहोंनेवलखाह,ै“जहाँतकदारव्शनकमहतिसे
सिंंिह,ै्हउसकीविरषेताहैऔर्हविरषेतावहनदसुतानीको व्वतिगतगिुोंकेकारिहीसभंित:अत्विकख्ावतप्राप्करली एकिहुतिड़ीहदतकउननतआतमाओंद्ारावद्ाग्ाअपनापनथिी।कृपालुसाम्राज्ीकीभाँवतगिुोंसेविभवूषतराजकुमारीकेमगंल प्रदानकरतीह।ैिहभारतिष्शकेिावमक्शसिुारोंकीभाषाह।ैवजसवसहंासनारूढ़होनेकासमाचारसनुकर,दरेिावस्ोंकोअपनीवप्र् प्रकार्रूोपकेईसाईसिुारकोंनेअपनेमतोंऔरिावमक्श उपदरेों सलुतानारवज्ाकोसमरिकरनापड़ा।िासतिम,ेंविक्टोरर्ारानी के समथि्शन के वलए जीवित भाषाएँ ग्हि कीं, उसी प्रकार भारत में में उनहोंने रवज्ा का तारुण् और उसके अलभ् गिु वफर पाए ह;ैं वहनदूऔरमसुलमानसप्रंदा्ोंकेगरुुओंनेअपनेवसधिाँतोंकेप्रचारऔरकेिल्हीिातउनकाउसदरेकेसाथिसिंंिऔरभीदृढ़िना केवलएसामान्त:वहनदसुतानीकाप्र्ोगवकय़ाह।ैऐसेगरुुओंमें सकतीहैवजसकेउनकाअिीनहोनाईश्वरेच्ाथिी।
किीर, नानक, दाद,ू िीरभान, िखतािर और अतं में अभी हाल के मसुलमानसिुारकोंमेंअहमदनामकएकसै्दह।ैंनकेिलउनकी रचना्ें वहनदसु तानी में ह,ैं िरन उनके अन्ु ा्ी जो प्राथि्शना करते ह,ैं िे जो भजन गाते ह,ैं िे भी उसी भाषा में ह।ैं ” (इसतिार द ला वलतरेत्रु ऐदं ईु ऐ ऐदं सु तानी, का लक्मीसागर िाष्ि्पे द्ारा वक्ा ग्ा ‘वहनदईु सावहत् का इवतहास’ रीषक्श अनिु ाद, पठिृ -4)
मैं हू,ँ अत्विक आदर सवहत, अत्ंततचु्औरअत्ंतआज्ाकारीदास
गासाां द तासी। पेररस, 15 अप्रैल 1839।” (‘इसतिार द ला वलतरेत्रु ऐदं ईु ऐ ऐदं सु तानी’ का लक्मीसागर िाष्ि्े द्ारा वक्ा ग्ा’ वहनदईु सावहत् का इवतहास’ रीषक्श अनिु ाद, प्रकारक, वहनदसु तानी एके ्मी इलाहािाद, ससं करि, 2003, पठिृ -1) गासाांदतासीका्हसमप्शिपढ़तेहुएमझु ेभारती्सावहत्कारों केसिवभमानपरगि्शकाअनभुिहोताहैवजनहोंनेअपनेसम्केविश्व केसिसेताकतिरमगुलसम्रा्टको“सतंनकोकहासीकरीसोंकाम। (कंु भनदास)” कहकर वतरसकृ त करने का साहस वक्ा और अजे् वब्व्टरसाम्राज्कोआिवुनककालमेंभी‘अिंरेनगरी’वलखकर
इस त्थ् का उललेख भी रकु ल जी ने अपने इवतहास में वक्ा
ह।ै उनहोंने तासी के एक व्ाख्ान के अरं को उधितृ वक्ा है वजसमें
तासीनेवहनदईुऔरवहनदसुतानीदोनोंकेविकासकीसाझापरंपराका
उललेखवक्ाह।ैतासीनेवलखाह,ै“उत्तरकेमसुलमानोंकीभाषा
्ानी, वहनदसु तानी उद्शू पवश्चमोत्तर प्रदरे (अि स्ं तिु प्रांत) की सरकारी
भाषावन्तकीगईह।ै्द्वपवहनदीभीउद्शूसेसाथिसाथिउसीतरह
िनीहैवजसतरहिहफारसीकेसाथिथिी।िात्हहैवकमसुलमान
िादराह सदा से एक वहनदी सेक्रे ्टरी, जो वहनदी निीस कहलाता थिा
औरएकफारसीसेक्रे्टरीजोफारसीनिीसकहतेथिे,रखाकरते
थिे, वजससे उनकी आज्ाएँ दोनों भाषाओ ं में वलखी जाए।ँ इस प्रकार
अग्ं ेज सरकार पवश्चमोत्तर प्रदरे में वहनदू जनता के वलए प्रा्: सरकारी
काननूोंकानागरीअक्षरोंमेंवहनदीअनिुादभीउद्शूकाननूीपसुतकोंके 1857केराष्ट्ी्विद्ोहपरभीतासीकीदृवटिसतंवुलतनहीं साथिदतेीह।ै”(वहनदीसावहत्काइवतहास,रामचद्ंरकुल,नागरीथिी।उनहोंनेनानासाहिको‘रतिवपपास’ुकहाहैऔरअग्ंेजोंका प्रचाररिी सभा, कारी, सिं त् 2035, पठिृ 296) साथि दने े के वलए गिावल्र के राजा वसवं ि्ा की भरपरू सराहना की
तासीनेअपनेइवतहासग्थिंकोवब््टेनकीसाम्राज्ीकोवजनह।ैजिवकदसूरीओरकाल्शमाकस्शनेमरेठकी्ािनीमेंघ्टीघ्टना रबदोंमेंसमवप्शतवक्ाहैउससेउनकीिजु्शआु मानवसकताप्रमावित पर15जलुाई1857को‘न््ूाक्श्ेलीवट्ब्नू’मेंिहुतहीसतंवुलत
होती ह।ै इतने प्रवतवठित विद्ान ि लेखक होने के िािजदू उनके भीतर आतम सममान के भाि का न होना चवकत करता ह।ै िे अपने कोवब््टेनकीसाम्राज्ीका“अत्ंततचु्औरअत्ंतआज्ाकारी दास” कहते हैं जिवक के खदु भी वब््टेन के नागररक नहीं ह।ैं उनका समप्शि इस तरह ह–ै
ढंग से और विसतार से वलखा ह।ै िे भी कभी भारत नहीं आए वकनतु उनहोंने 1857 के आनदोलन को ‘नेरनल ररिाल्रू न आफ़ॅ वहनदजू ए्ं मवुसलमस’कहाह।ै
‘इसतिार द ल वलतरे त्रु ऐदं ईु ऐ ं ऐदं सु तानी’ का पहली िार वहनदी अनिु ाद लक्मी सागर िाष्ि्पे ने ‘वहनदईु सावहत् का इवतहास’ नाम
वजसवब्व्टररासनके अतं ग्शतनतोल्टू काभ्हैऔरनतोदरे ी सरकारों के अत्ाचार ह,ैं उसका उनकी रचनाओ ं में ्रगान हुआ ह।ै वहनदसु तान के प्राचीन रासकों में एक मवहला ही थिी वजसने अपने
िहीकामभारतेनदुनेवक्ा।
तासी की दृवटि में वहनदसु तान का अग्ं ेजों के अिीन होना मात्
ईश्वरेच्ा थिी और उनकी वनगाह में भारत इतना खरु हाल कभी नहीं थिा। िे भले ही भारत कभी न आए हों, वकनतु इतना तो समझते ही थिे वक भारत अग्ं ेजों का गलु ाम ह।ै
 अप्रैल 2021 / विशिवा
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