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प्राच्विद विद्ान वसलिस्ते द सासी (Silverstre de Sacy) की
्त्-्ा्ा में रहकर अरिी, फारसी और तकु ती का अध््न वक्ा।
1822मेंतासीकीवन्वुतिउनकेवरक्षकवसलिस्तेकेकॉलेजमें
सवचि के पद पर हो ग्ी। उसी िष्श पेररस में एवर्ाव्टक सोसाइ्टी
की सथिापना हुई और उसकी ओर से रोि जन्शल प्रकावरत होने लगा।
तासीएवर्ाव्टकसोसाइ्टीकेससंथिापकसदस्ोंमेंथिे।रीघ्रही
उनकी वन्वु ति सोसाइ्टी के सहा्क सवचि एिं पसु तकाल्ाध्क्ष के
रूप में हो गई। उसके िाद उनहोंने परू ा जीिन एवर्ाव्टक सोसाइ्टी
को ही समवप्शत कर वद्ा और 1876 में एवर्ाव्टक सोसाइ्टी, पेररस
के प्रेसी्ें्ट िन गए। िे आजीिन एवर्ाव्टक सोसाइ्टी के जन्शल में वलखतेरह।ेइसदौरानउनहोंनेवहनदसुतानीकागभंीरअध््नवक्ा।औरउनमेंफ्ांसीवस्ोंकोमहँुकीखानीपड़ीथिी।परूीअठारहिींसदी
उनके गरुु वसलिस्ते द सासी वहनदसु तानी के महति को समझते थिे और िे अपने प्रवतभाराली वरष्् को प्रगवत के पथि पर आगे िढ़ता हुआ दखे ना चाहते थिे। उनहोंने फ्ांस की सरकार से वहनदसु तानी के अध््न के वलए एक च्े र सथिावपत करने का आग्ह वक्ा। उनही के प्र्ास से पेररस के “इसं ्टी्ट्््टू दसे लैंगिेज ए्ट वसविलाइजेरनस ओरर्न्टलस” में वहनदसु तानी का एक च्े र सथिावपत हुआ और उस च्े र पर 1828 में गासाां द तासी की वन्वु ति हुई। 1829 में तासी ने फ्ें च में ‘रुव्मसें द ल लैंगिे वहनदसू तानी’ नामक महतिपिू ्श व्ाकरि ग्थिं की रचना की वजससे उनकी ख्ावत िहुत दरू तक पहुचँ गई। 1830 में तासी िहाँ वहनदसु तानी के सथिाई प्रोफे सर हो गए।
आरंभमेंगासाांदतासीकीरुवचइसलामऔरअरिीसावहत् केअध््नमेंअविकथिीवकनतुिादमेंउनकीरुझानउद-्शूवहनदीकी ओर हो गई वजसे पहले ‘वहनदसु तानी’ कहा जाता थिा। उनहोंने अपने जीिनकािाकीसम्वहनदसुतानीकोपढ़ने,पढ़ाने,वलखनेऔर रोि करने में लगा्ा।
में विवभनन भारती् इलाके फ्ांसीवस्ों के हाथिों से वनकलकर अग्ं ेजों के हाथि में पहुचँ गए थि।े इन वसथिवत्ों के िािजदू एक फ्ांसीसी विद्ान ही वब्व्टर और भारती् सह्ोवग्ों के माध्म से वहनदी-वहनदसु तानी सावहत्ेवतहास के क्षेत् में प्रारंवभक का््श कर रहा थिा। फ्ांस में इतनी दरू िैठकर एक ऐसे सम् में तासी अपना ित्तृ -सग्ं ह तै्ार कर रहे थिे जि इस विष् पर सामग्ी एकवत्त करना वहनदसु तान में भी विद्ानों के वल्े दष्ु कर थिा।... तासी अपनी अनेक सीमाओ ं के िाद भी जो काम फ्ांस में िैठकर कर रहे थिे िही काम ्हाँ िैठकर अगले कई दरकों तक भारती् नहीं कर सके थिे।” (भाषा के तराजू पर िम्श का पासगं : गासाां द तासी, वहनदी सम् ्ा्ट काम)।
तासीनेिहुतहीगि्शकेसाथिअपनीपसुतकमेंसवूचतवक्ा हैवक,“वगलवक्रस्टनेवसफ्शतीसविद्ानोंकीसचूीदीहैवकनतुमरेे पास सामग्ी की कमी होने के िािजदू मनैं े के िल पहली ही वजलद में सात सौ पचास लेखकों और नौ सौ से भी अविक रचनाओं का उललेख वक्ा ह।ै ” (‘इसतिार द ला वलतरेत्रु ऐदं ईु ऐ ऐदं सु तानी’ का
गासाांदतासीएवर्ाऔर्रूोपकेकईप्रमखुप्राच्विद्ालक्मीसागरिाष्ि्पेद्ारावक्ाग्ा‘वहनदईुसावहत्काइवतहास’ ससं थिानो से भी जड़ु े थिे। िे पेररस के फ्ांसीसी इसं ्टी्ट्््टू , एवर्ाव्टक रीषक्श अनिु ाद, प्रकारक, वहनदसु तानी एके ्मी इलाहािाद, ससं करि, सोसाइ्टी(लंदन,कलकत्ता,मद्ास,िंिई),इपंीरर्लएके्मीऑफ 2003,पठिृ-3) साइसंेज,म्वूनख,रॉ्लएके्मी,वलसिनिरॉ्लसोसाइ्टी, इनसिकेिािजदूराजतंत्काअिंसमथि्शन,ईसाइ्तपरअिं कोपेनहगेेनऔरअलीगढ़इसं्टी्ट्््टूजैसेससंथिानोंकेसदस्थिे।आसथिाऔरिजु्शआुमानवसकताएकलेखककेरूपमेंतासीको तासीकोफ्ांसमें‘नाइ्टऑफदवलवज्नऑफऑनर’और‘स्टार कमजोरिनातीह।ैं वजसफ्ांसीसीक्रावनतकोदवुन्ाकीपहलीऔर
ऑफ द साउथि पोल’ जैसी उपावि्ों से निाजा ग्ा थिा।
अपने रोि ि आलोचनातमक का्यों के वलए तासी विरषे रूप से भारत में प्रकावरत होने िाली पसु तकों तथिा अग्ं ेजी पवत्काओ ं और समाचारपत्ोंकासहारालेतेथिे।िेप्रवतिष,्शसालभरतकप्रकावरत भारत से सिं ंवित सावहत् का अध््न करते थिे और िष्श के अतं में उसका आकलन करते हुए व्ाख्ान भी दते े थिे। ्े व्ाख्ान 1850 ई.सेलेकर1870ई.केिीचउनहोंनेवदएथिे।इनमेंवहनदसुतानीभाषा
इवतहास की सिा्शविक महतिपिू ्श जनक्रावनत के रूप में समरि वक्ा जाता है उसके प्रवत भी तासी की दृवटि नकारातमक है और इसी तरह भारत में हुए प्रथिम सिािीनता सग्ं ाम के प्रवत भी िे त्टसथि नहीं ह।ैं
आचा््शरामचद्ं रकुलनेभीइसलामकेप्रवततासीकेअवतररति आग्ह को रेखाँवकत वक्ा ह।ै िे वलखते ह,ैं “वहनदी-उद्शू का झगड़ा उठनेपरअपनेमजहिीररशतेकेख्ालसे(गासाांदतासीने)उद्शूका पक्षग्हिवक्ाऔरकहा-वहनदीमेंवहनदूिम्शकाआभासह–ै िह
कामहतितथिाउसकेसावहत्कासामान्पररच्होताथिा।इन वहनदूिम्शवजसकेमलू मेंितुपरसतीऔरउसकेआनषुवंगकवििान व्ाख्ानोंकाप्रमखुउद्शे््रूोपकेविद्ावथि्श्ोंमेंवहनदसुतानीभाषाह।ैंइसकेविपरीतउद्शूमेंइसलामीससंकृवतऔरआचारव्िहार और सावहत् के प्रवत रुवच पैदा करना होता थिा। का सचं ् ह।ै इसलाम भी सामी मत है और एके श्वरिाद उसका मलू
10 वदसिं र 1857 के अपने व्ाख्ान की ररुु आत तासी इन वसधिांत ह,ै इसवलए इसलामी तहजीि में ईसाई ्ा मसीही तहजीि की रबदोंमेंकरतेह,ैं“उत्तरभारतमेंजोभ्ािहघ्टनाएँइसिष्शहुईह,ैं विरषेताएँपाईजातीह।ैं विरषेकरउत्तरपवश्चमकेप्रानतोंम,ें्ेिेप्रानतहैंजहाँकीमखु्भाषा सिंत्1927केअपनेव्ाख्ानमेंगासाांदतासीनेसाफ
वहनदसु तानी है और जहाँ िह विरषे तौर पर विकवसत ह,ै उनकी िजह सेिहाँसावहवत्कका््शविलकुलठपहोचकुेथिेऔरइसवलएमैंजो िावषक्श व्ाख्ानदतेाहूँवजनमेंविगतिष्शकेउद्शूऔरवहनदीजिानों केप्रकारनोंऔरअखिारोंकावििरिहोताह,ैिहमैंनहींदेपा्ा। ्ह आपको ज्ात ह,ै वहनदसु तान की अग्ं ेजी हुकू मत के वखलाफ एक नईऔरजिरदसतिगाितकीररुुआतहोचकुीह।ै”(अनिुाद, वकरोर गौरि, मई 2015, tirchhispelling.wordpress.com/ गासाां द तासी/)
रीताँरु ने सही वलखा है वक, “वहनदसु तान में फ्ांसीवस्ों और अग्ं ेजों के िीच उपवनिेर की सथिापना को लेकर तीखे सघं ष्श हुए थिे
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विशिवा / Áअप्रैल 2021