Page 8 - Vishwa January 2022
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शपाश्वती
 रहीम
(भाषा, संवाद और कववता मूलतः मौविक ही होते हैं। वलवित हो जाना तो प्रकारांतर से उसकी वववशता है। हमारा तो ववचार का आवदस्ोत ‘वेद’ वजसका अर्थ ही ज्ान होता है उसका एक नाम ‘श्रुवत’ भी है।
जीवन में लेिन सबसे कम होता है। जो होता है वह श्वण, वजज्ासा, संवाद और अंततः आचरण होता है। इसीवलए हमारा समसत प्राचीन वांगमय कववता में है वजसे सरलता से मरुिाग्र वकया जा सकता है। कयोंवक हम मानते हैं– शसत्र हार का और ज्ान सार का अरा्थत वजसके वलए आपको वकताबों के पास न जाना पड़े। मरुिाग्र ततकाल हाविर।
यह कावयमय मौविक ज्ान हमारे लोकजीवन में इस गहराई से पैठ गया वक कहावतों, मरुहावरों और लोकोककतयों में बदल गया। वववभन्न भाषाओँ और बोवलयों में बदलता हरुआ आज भी हमारी चेतना का एक अंग बना हरुआ है।
इसे हमारे रचनाकारों ने नाम वदया ‘नीवत’ वजसका ‘राजनीवत’ से कोई संबंध नहीं है। यह नीवत साव्थदेवशक और साव्थकावलक है। यही कारण है वक दरुवनया की वववभन्न भाषाओं में बहरुत सी सावहकतयक रचनाएँ इनहीं के ववचारों के आसपास बरुनी गई हैं।
हम प्रयत्न करेंगे वक इस सतमभ के अंतग्थत अपने पाठकों के वलए नीवत और लोक ज्ान का सहज, सरुलभ, सरल कावय रूप प्रसतरुत करें। -सं.)
 (1556-1627)
रहीम अकबर के सरं क्षक बैरम खां के पत्रतु थिे धजनका जनम 1556 में लाहौर में हुआ थिा। वे मधयकालीन साम्ं वादी ससं कृ ध् के कधव थिे। वे कधव के साथि-साथि एक अचछे सेनापध्, प्रशासक, आश्यदा्ा, दानवीर, कू टनीध्ज्, बहुभाषाधवद, कलाप्रेमी,जयोध्षकेज्ा्ावधवविानथिे।रहीमसांप्रदाधयकसदभ्ाव्थिासभी िमथों के प्रध् समादर भाव के सतयधनष्ठ सािक थिे। रहीम कलम और ्लवार के िनी और मानव प्रेम के सत्रू िार थिे।
इसलामिम्तकेअनयतुायीहो्ेहुएभीरहीमनेअपनीकावयरचनाविाराधहनदी साधहतय की जो सेवा की वह अदभ् ्तु ह।ै रहीम की कई रचनाएँ प्रधसद्ध हैं धजनहें उनहोंने अधिक्र दोहों के रूप में धलखा। रहीम के बारे में यह कहा जा्ा है धक वहिम्तसेमसतुलमानऔरससंकृध्सेशद्धतु भार्ीयथिे।
रिरीि के कु छ चुने िुए दोिे
एकै साधे सब सध,ै सब साधे सब जा्। रशहरन रलनू शहं सींशिबो, फनूलै फलै अघा्॥1॥
मखतुयधवचार,वस्,तु्थयकोमहत्वदनेाचाधहए।उसीसेसभीधसधद्धयाँहो्ीहैं जैसे पेड़ के मलू कर धयान रखने पर सव्ः ही फल, फूल और पत्ों की प्राधप् औरसभंालहोजा्ीह।ै
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कशह रहीर सपं श् सगे, बन् बहु् बहु री्। शबपश् कसौटी जे कसे, ्े ही साँिे री्॥ 2॥
ससंारकायहीसामानयवयवहारहैधकसखतु मेंसभीअपनापनप्रकटकर्ेहैं लेधकनजोसकंटकेसमयसाथिधनभा्ेहैंउनहेंहीसचचाधमत्रसमझनाचाधहए।
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कौन बड़ाई जलशध शरशल, गगं नार भो धीर।
के शह की रिभ्दु ा नशहं घटी, पर घर ग्े रहीर॥ 3॥
अपनीअधसम्ाकोबनाएरखनेमेंहीसममानह।ैसमद्रतुमेंधमलजानेसेगगंाका महत्व भी कम हो जा्ा ह।ै
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विशिवा / Áजनिरी 2022












































































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