Page 42 - Vishwa_April_22
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महपादरेवी वमपाजा : अ्नरे समय सरे आगरे : ११५ वें रनमददन ्र दवशरेष
रपाग तुझको दूर रपानपा
अवदवत भारद्ाज
 दज़िंगीकीआपाधापीऔररोज़मराजाकीवयसततामेंदरसप्रकारसे
हमारेतमामदिनगज़ुररातेह,ैंऐसेमेंएकबारगीहमेंकोईवरहनहीं
दमलतीदकदकसीदिनदवशषे कोयािभीरखाराए।परमहािवेी
वमाजा,दरनकेर्मकेनामपरआरकीतारीख(26माच)जािज़जाह,ै एकसभ्रंांतऔरदशदक्षतपररवारसेसमब्धरखनेवालीमहािवेी भारतीय सादहतय का वह अदवसमरणीय वयदकततव ह,ैं दर्हें उनकी कीशािीतकरीबननौवषजाकीउम्रमेंहीकरिीगईथी,दरसकी 115वींवषगजाांठपरयािकरनाकईदृदषटयरोंसेप्रासदंगकह।ै समदृतकुछइनश्िरोंमेंवहिज़जाकरतीह:ैं
महािवेीकीरचनाओंकोउम्रकेअलग-अलगपड़ावरोंपरपढ़ते ‘बारातआईतोबाहरभागकरहमसबकेबीचखड़ेहोकरबारात हुएउनकेवयदकततवऔरसादहतयकोिीगईउनकीदवरासतपरिखेनेलगे।व्रतरखनेकोकहागयातोदमठाईकमरेमेंबैठकरखबू
नए पहलू से दवचार करने की आवश्यकता महससू रोमरेीदृदषटमेंदकसीभीरचनाकारके प्रासदंगकऔरकालातीतबनेरहनेका
बड़ा आधार ह।ै
प्रेमऔरवेिनाकीअमरगादयका केरूपमेंप्रचदलतकवदयत्ीकीरचनाएं समसामदयकसिंभषोंमेंसत्ी-अदधकाररोंको भीवाणीिनेेकाकायजाकरसकतीह,ैयह उनकी रचनाओ ं से ही पता चलता ह।ै ऐसा लगताहैदकसत्ीमदुकतकेतमामसघंषषों मेंमहािवेीकीपदंकतयरोंकोनारेकीतरह उपयोग दकया रा सकता ह।ै
‘तू न अपनी छाँि को अपने हलए कारा बनाना!
जागतझुकोदरूजाना!’
होने लगती ह,ै
दमठाई खाई। रात को सोते समय नाउन ने गोि में लेकर रे रे दिलवाए हरोंगे,हमेंकुछधयाननहींह।ै प्रातःआखँ खलुीतोकपड़ेमेंगाँठलगीिखेीतोउसे
खोलकर भाग गए।’ इसेमहािवेीकादवद्रोहीमनहीकहा
राएयाअदत-सवंेिनशीलहृिय,अपनेपदत केसाथवोकभीनहींरहींऔरवैवादहक रीवन के प्रदत उिासीन ही बनी रहीं।
कई अटकलें लगाई राती हैं दक महािवेीकुरूपथींऔरअपनेपदतको पसिंनहींथी।कारणरोभीरहाहो, पर हतप्रभ करने वाली बात यह थी दक उससमयमेंरबसमारमेंएकसत्ीके दववादहत होते हुए भी यँू पदत से अलग रहने कोएकअदभशापकीतरहिखेाराताथा, वैसेसमयमेंनकेवलमहािवेीनेयहकिम उठाया बदलक अपने रीवन को अपने ऊँ चे आिशषों और मलू यरों की कसौटी पर खरा
सत्ीवािी दवमशजा या रे दमदनजम आर
भले ही महानगरीय रीवन में बहुत ही आम
बात लगती है और दसत्यरों के अदधकाररों
की चचाजा दलदवगं रूम की बैठकरों और कॉरी हाउसरों की बहसरों का
एक रूटीन अगं लगता हो। आर मदहलाओ ं की सामादरक दसथदत
परसोचपानाऔरइसकेसिंभजामेंसदकयतादिखानासहरलगता उ्हरोंनेरीवनभरश्वेतवसत्पहना,तखतपरसोईंऔरकभीशीशा ह,ैपरकयाहमयेकलपनाकरसकतेहैंदक1920-30केिशकमेंनहींिखेा।’ वतजामानमहानगररोंसेकहींबहुतिरूकेकसबाईइलाकरोंमेंकोईसत्ी येतोहुईमहािवेीकेदनरीरीवनकेसघंषषोंकीगाथादरसने मदहला के अदधकाररों की बात को न के वल अपनी लेखनी में उठा
रही थी, बदलक सवयं अपनी दवचारधारा की एक रीवतं तसवीर थी।
महािवेीवमाजाकोउनकेवयदकततवकीदवदशषटताकेदलए हीआधदुनकसमयकीमीराकहागया।दरसतरहसेमीराअपने मधयकालीन समार में दवद्रोह और प्रदतरोध का प्रतीक थीं, कहीं- न-कहीं,महािवेीसवयंरीवनभरवयवसथाऔरसमारकेसथादपत मानिडंरोंसेलगातारसघंषजाकरतीरहींऔरइसीसघंषजानेउ्हेंअपने
उ्हेंबड़े-से-बड़ेचटिानरोंसेटकरानेकासाहसदिया,अगरदृदषटउनके बाह्य रीवन या कायजाक्षेत् की ओर डालें तो यहां भी कु छ बहुत बड़ी उपलद्धयाँउनकेसाथरड़ुीहुईह।ैं
[जनि: 26 िाच्व 1907, अविान:11 वितंबर 1987]
समयऔरसमारकीमखुयधारामेंदसरझकुाकरभड़ेरोंकीतरह चपुचापचलनेवालीदनयदतसेबचाकरएकदमसालकेरूपमें सथादपतकरदिया।
 रखते हुए दरया।
‘महािवे ी का रीवन तो एक स्ं यादसनी का ही रीवन बना रहा।
महािवेीकाकायजाक्षेत्लेखन,सपंािनऔरअधयापनसेरड़ुा रहा। छायावािी कदवता के दवसततृ आकाश में नीहार (1930), रदश्म (1932),नीररा(1933),सांधयगीत(1935),िीपदशखा(1942), अद्नरेखा(1990)रैसेमहािवेीकेकावयसग्रंहअपनीछायावािी
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विशिवा / Áअप्रैल 2022

































































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