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शाश्वती
 भारत क्या है ?
(भ्रत हकसरी शिर य् र्जय क् न्ि निीं िरै। भ्रत एक हिच्र िरै, एक दशरान िरै, एक उचच भ्ि िरै हिसकी इस दुहनय् को ििेश् ज़ररत रिेगरी। यहद िि अपने को भ्रतरीय ि्नते िैं तो ििें उस िरैच्ररक ऊं च्ई को ििन करन् िोग्, उस िरैहश्क करुण् के आचरण द््र् हिश् को प्रेरण् देनरी िोगरी। भ्रतकेििराकोररोलतरीदोक्लियरीरचन्एंइसब्रश्श्तरीिेंप्रसतुतिैं।–स.ं)
1. अरुण यि िधुिय देश
जयशकंरप्रसाद
अरुि्हमिमु्दरे हमारा। जहाँ पहुचँ अनजान वक्षवतज को
2. हकसको निन करँ ?
रामधारमीरसहं रदनकर
तझुको्ातेरेनदीर,वगरर,िनकोनमनकरूँ,मैं?
मरेेप्ारेदरे !दहे ्ामनकोनमनकरूँ मैं? वकसकोनमनकरूँ मैंभारत?वकसकोनमनकरूँ मैं?
भूकेमानवचत्परअवंकतवत्भजु,्हीक्ातूहै? नरके नभश्चरिकीदृढ़कलपनानहींक्ातूहै? भदे ों का ज्ाता, वनगढ़ू ताओं का वचर ज्ानी है मरेे प्ारे दरे ! नहीं तू पतथिर ह,ै पानी है जड़ताओंमेंव्पेवकसीचतेनकोनमनकरूँमैं?
भारत नहीं सथिान का िाचक, गिु विरषे नर का है एकदरे कानहीं,रील्हभमू्ंलभरकाहै जहाँकहींएकताअखवं्त,जहाँप्रेमकासिरहै दरे -दरे में िहाँ खड़ा भारत जीवित भासकर है वनवखलविश्वकोजनमभवूम-िदंनकोनमनकरूँमैं!
खवं्तहै्हमहीरलै से,सररतासेसागरसे पर, जि भी दो हाथि वनकल वमलते आ द्ीपांतर से ति खाई को पा्ट रनू् में महामोद मचता है दो द्ीपों के िीच सेतु ्ह भारत ही रचता है मगंलम््हमहासेत-ुिंिनकोनमनकरूँमैं!
दोहृद्के तारजहाँभीजोजनजोड़रहेहैं वमत्-भाि की ओर विश्व की गवत को मोड़ रहे हैं घोल रहे हैं जो जीिन-सररता में प्रेम-रसा्न खोर रहे हैं दरे -दरे के िीच मदँु े िाता्न आतमिंिु कहकर ऐसे जन-जन को नमन करूँ मैं !
उठे जहाँ भी घोष रांवत का, भारत, सिर तेरा है िम्श-दीप हो वजसके भी कर में िह नर तेरा है तेरा है िह िीर, सत् पर जो अड़ने आता है वकसी न्ा् के वलए प्राि अवप्शत करने जाता है मानिताकेइसलला्ट-िदंनकोनमनकरूँमैं!
  वमलता
एक सहारा।
 कंु भ
ऊँ घते रहते
से पखं
पसारे
ले उषा ढुलकाती सखु
लहरें ्टकरातीं
पाकर जहाँ सिेरे
अनंत की वकनारा।।
हमे
भरती
मवदर
जग कर रजनी भर तारा।।
सरस तामरस गभ्श विभा पर नाच रही तरुवरखा मनोहर। व््टका जीिन हरर्ाली पर मगंल कंुकुम सारा।।
लघु सरु िनु
रीतल मल् समीर सहारे। उड़ते खग वजस ओर महँु वकए समझ नीड़ वनज प्ारा।।
िरसाती आखँ ों के िादल िनते जहाँ भरे करुिा जल।
मरे े। जि
 अप्रैल 2021 / विशिवा
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