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समपा्की्य
  सत्यमदे्व ज्यतदे
हमारीिरतीकेउत्तरीगोलाधि्शमेंदवुन्ाकीअविसखं्आिादीरहतीह।ै हैजिवकअवभमानीअपनेअवभमानमेंसिकाअपमानकरताह,ैकरुिा अविकतरनदीघा्टीसभ्ताएँइसकेसमरीतोष्िअचंलोंमेंविकवसतहुईंकेपथिसेविचवलतहोजाताहैऔरपापकेपथिपरअग्सरहोताह।ै क्ोंवक्हाँकीजलिा्ुमनष्ु्,कृवषएिंअन्जीिोंमेंवलएउप्तिु मलूतःसभीजीिएकहीह।ैंसभीकेदःुख-सखुएकहीह।ैंसभी थिी।आजविज्ानकेविकासकेकारिकहींभीजीिनकेवलएसवुििापिू्श
पररवसथिवत्ाँसवृजतकीजासकतीहैंलेवकनप्रारंवभककालमेंदवुन्ाके अवतगम,्शसखूेऔरअवतठं्ेअचंलोंमेंपररवसथिवत्ाँिहुतविषमथिीं और जीिन कवठन। ्ही कारि है वक नदी घा्टी सभ्ता िाले दरे ों की अपेक्षाअन्दरेोंमेंतलुनातमकरूपसेअध्ातमऔरदरन्शकाविकास कम हुआ। ्ही कारि है वक िहाँ प्रतीकों और वमथिकों का अभाि ह।ै भारतप्रकृवतकािरदान-प्राप्एकऐसाभभूागहैजहाँअध्ातम,दरन्श केविकासकीसवुििाएँथिीं।्हीकारिहैवक्हाँसामान्व्वतिभी प्रतीकों और वमथिकों में िोलता-सोचता ह।ै
अरोकवचह्नभारतकाराजकी्प्रतीकह।ैइसकोसारनाथिमेंवमली अरोक ला्ट से वल्ा ग्ा ह।ै मलू रूप से इसमें चार ररे हैं जो चारों वदराओ ं की ओर महँु वकए खड़े ह।ैं के िल तीन वसहं वदखाई दते े हैं और चौथिाव्पाहुआह,ैसामनेसेवदखाईनहींदतेाह।ैइसकेनीचेएकगोल आिार वखले हुए उल्टे ल्टके कमल के रूप में है वजस पर हाथिी, घोड़ा, एकसांड़औरएकवसहं िनेहैंजोदौड़तीहुईमद्ु ामेंह।ै हरपरुके िीच में एक िम्श चक्र िना हुआ ह।ै
काइसईश्वरी्सवृटिपरसमानअविकारह।ै्हसत्ह।ैइसेजाननेके िादनसल,िम्श,जावत,भाषा,ऊँच-नीचकेकृवत्मभदे समाप्होजातेह।ैं सचकेदोपक्षहोसकतेह।ैंएकभौवतकऔरदसूरामानवसक्ा आवतमक। भौवतक सच पदाथि्शगत होता है जो प्र्ोगराला में प्रमावित होताहैजिवकमानवसक्ाआवतमकसचहमारेअन्सभीकेसाथि व्िहार में आचररत होता ह।ै उसे प्र्ोगराला में नहीं िवलक ्ठी इवनद्् से समझा जाता ह।ै तभी कहते हैं ऋवष्ों के आश्म में ररे और िकरी
एकघा्टपानीपीतेह।ै
्ठी इवनद्् कविता का विष् ह।ै काननू और विज्ान की तरह
अवभिाकानहीं,जहाँवकसीभीइतरअथि्शकीसभंािनानहींरहतीऔर रहनी भी नहीं चावहए। कविता का काम अवभिा और सामान् भाषा से नहीं चलता। िह प्रतीकों, उपमाओ,ं रूपकों और वमथिकों में िात करती ह।ैसामान्व्वतिकीअवभिातमकभाषामें्ेनहींहोते।इनहेंिह्ातो भौवतक जगत की िासतविकता की तरह मान लेता है ्ा वफर फालतू फं ् कीलफफाजी।ऐसेमेंिहविज्ानकीदृवटिसेवक्ेगएप्रश्नोंसेकतराताहै और कट्रता के खोल में अपने हाथि-पैर ्ु पा लेता है ्ा वफर कविता की
सामनेसेचक्रकेंद्मेंवदखाईदतेाह,ैसां्दावहनीओरऔरघोड़ा भाषामेंवलखेगए,भारती्िांगम्मेंविद्मानअद्ुतमनोिैज्ावनकऔर िा्ींओर।प्रतीककेनीचे‘सत्मिेज्ते’दिेनागरीवलवपमेंअवंकतआवतमकज्ानसेमहँुमोड़लेताह।ैदोनोंवसथिवत्ाँहीदखुदह।ैं
ह।ै ‘सत्मिे ज्ते’ रबद म्ँु कोपवनषद से वलए गए ह,ैं वजसका अथि्श आध्ावतमक रूप से जो ईश्वर है िही भौवतक रूप से सत् ह।ै
ह–ै सचचाई की विज् हो। ्ह 26 जनिरी 1950 को सिीकृ त हमारे अच्ा हो वक हम प्रतीकों पर अिं आसथिा त्ागकर उनमें ्ु पे ज्ान, सवंििानकाध्े्िाक्ह।ै मनोविज्ानऔरिोवितत्िकोपहचानेंऔरउसकेआलोकमेंसत्का
स्ंतिु राज्अमरीकाकेध्े्िाक्(INGODWETRUST) साक्षातकारकरेंवजससेविभदेोंमेंभ्टककरवसरिनुतीसवृटिकोएककरुि कामलूािार‘गॉ्’आसथिापरआिाररतहैऔरतक्श,प्रमाि,न्ा्,आलोकमेंवनमल्शकरसकें।
साि्शकावलक और सि्शमान् नहीं। वजज्ासा और तक्श पर उसे नहीं कसा जा सकता। जिवक उसके िरकस सत् सदिै अपनी जांच परख और प्रमाविकताकेवलएखलुारहताह।ैिहअन्थिावसधिहोनेपरदरुाग्हनहीं करता िवलक सि्ं में सिु ार करने के वलए ततपर रहता ह।ै सत् वनरपेक्ष औरपक्षपातरवहतहोताह।ैउसमेंसिकावनिा्शहहोजाताह।ैइसवलए इसदृवटिसेभारतकासवंििानऔरउसकीचतेनाअविकिैज्ावनक, समािेरी और िैवश्वक ह।ै
तभी हमारे मनीवष्ों ने सच को तप कहा है और झठू को पाप। इसी तरह िही मनीषा कहती ह–ै
द्ा िरम का मलू ह,ै पाप मलू अवभमान द्ामेंसभीिम्शसमावहतह।ैंउसकेविना्हसवृटिनतोका्मरह
सकतीहैऔरनहीसखुी।सत्कोजाननेिालावनरवभमानीहोजाता
सत्कीओरसेपीठफेरकरहमईश्वरके साथिभीन्ा्नहींकर सकते।
इसेसमझनेमेंहमारेसवंििानकीप्रसतािनाकेप्रारंवभकरबदहमारी सहा्ता कर सकते ह–ैं
अयंरनजःपरोिेरतगणनालघुचतेसाम्
उदारचररतानाम्तुिसधुिैकुिुमबकम्
व्वटि और समवटि के सिं ंिों की इससे सपटि और व्ापक व्ाख्ा और क्ा हो सकती ह?ै ्ह विश्व-वचनतन में भारत की के वनद्कता को सपटि करती ह।ै
सत् की ज् में ही सि की ज् ह।ै सत् की ज् हो।
– रिेश िोशरी
 अप्रैल 2021 / विशिवा
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