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का जो वचत् इस उपन्ास का आिार है िह के िल िंगाल का होने परभीउसमेंसमपिू्शभारतकेग्ाम्जीिनकान्नूाविकप्रवतविंि वमलेगा।िंगालकेगांिकाखवेतहर-महाजनश्ीहररघोष,सघंषर्शत आदरि्शादी्िुकदिेूघोषअथििाजीविकाहीन-भवूमहीनअवनरुधि लहुारकेिलिंगालकेहीवनिासीनहींह;ैंइनमेंभारतकेउत्तर, दवक्षि, पिू ्श, पवश्चम-सि वदराओ ं के वभनन-वभनन राज्ों के ग्ामीि मनष्ु्ोंकाचहेराखोजनेपरप्रवतविंवितवमलजाएगा।
िरीिनपररचय–तारारकंरिंद्ोपाध्ा्काजनमिीरभमू वजले के लाभपरु ग्ाम में एक सािारि जमींदार पररिार में हुआ थिा।आठिष्शकीअिसथिामेंवपताकोखोनेकेिादतारारकंरका लालन-पोषिमाताप्रभादिेीऔरिआु रलैदिेीनेवक्ा।राश्वत भारती्आदरयोंकेप्रवतवनठिाकेसाथिनतूनकेप्रवतजागरूकताएिं सभीदृवटिकोिोंकेप्रवतवजज्ासाऔरसवहष्ितुाकाभाितारारकंर िंद्ोपाध्ा्कोमातासेहावसलहुआ।हाईसकूलकीवरक्षागाँिमें परूीकरउचचअध््नकेवलएकोलकातागएपरकु्सम्िादही लौ्टकर जमींदारी की दखे रेख और गाँि के सामावजक का्यों में रुवच लेनेलगेऔरअपनीसिंेदनाओंकोसावहत्-सजृनमेंअवभव्ति करने लगे। समाज-सेिा के साथि राजनीवत में भी सवक्र् हुए। 1930 मेंअसह्ोगआदंोलनमेंभागलेनेकेकारिजेलजानापड़ाऔर इस दौरान उनहें राजनीवतक दलिंदी और पारसपररक सघं षयों को दखे ने समझने का मौका वमला वजससे उनको राजनीवत से वितष्ृ िा हो गई औरजेलसेिाहरआतेहीउनहोंनेघोषिाकरदी–“आदंोलनोंकेपथि सेविदा।मैंअिसावहत्केपथिसेमातभृवूमऔरसिािीनता-्धिु की सेिा करूँ गा।” ्ह सिं ेदनरील व्वतिति का ही समप्शि रहा वक उनहोंनेअपनारषे जीिनअपनीघोषिाकोसमवप्शतकरवद्ाऔर अनेक सावहवत्क रचनाओ ं का प्रि्न वक्ा।
1932म,ें िेपहलीिाररांवतवनकेतनमेंरिींद्नाथि्टैगोरसेवमल।े 1942म,ेंउनहोंनेिीरभमूवजलासावहत्सममलेनकीअध्क्षता की और िंगाल में फावसस्ट-विरोिी लेखक और कलाकार सघं के अध्क्षिने।1944म,ेंउनहोंनेकानपरु िंगालीसावहत्सममलेन की अध्क्षता की, जो िहाँ रहने िाले अप्रिासी िंगावल्ों द्ारा आ्ोवजत वक्ा ग्ा थिा। 1947 म,ें उनहोंने कोलकाता में आ्ोवजत 47िें ‘प्रभास िंग सावहत् सममले न’ का उद्ा्टन वक्ा और कलकत्ता विश्वविद्ाल्सेररतममेोरर्लपदकप्राप्वक्ा।1948म,ेंिह कोलकाता के ताला पाक्श में अपने घर चले गए। 1952 म,ें उनहें वििान सभा का सदस् नावमत वक्ा ग्ा। िह 1952-60 के िीच पवश्चम िंगाल वििान पररषद के सदस् थिे। िह 1960-66 के िीच राज्सभाकेसदस्भीरह।े1966म,ेंससंदसेसेिावनित्तृहुएऔर नागपरुिंगालीसावहत्सममलेनकीअध्क्षताकी।
सावहत्रचनाकेसिंंिमेंउनहोंनेसिीकारवक्ाह–ै“माँ वकससागोई के हुनर ने मझु े िचपन में ही सावहत् के प्रवत आकवषत्श वक्ा। मैं कवि होना चाहता थिा। लेवकन मैं उपन्ासकार िना, हालांवक मरेेअदंरकाकविहमरेाजीवितरहा।तििंगालक्रांवतकारर्ोंका कें द् थिा, लेवकन विद्ोवह्ों के िजा् महातमा गांिी के व्वतिति ने मझु ेज्ादाप्रभावितवक्ा।्हीकारिहैवकमरेेउपन्ासोंकेना्क
अकसरआदर्शपरुुषह।ैंमरेेमनमेंजमींदारोंकेप्रवतहमरेाअनरुाग रहा,हालांवकअपनेलेखनमेंमनैंेजमींदारीव्िसथिाकीिरुाइ्ों कापदा्शफारवक्ा।मैंआजीिनग्ामिांगलाकीवमट्ीसेजड़ुा हुआलेखकरहा,मरेीकहावन्ाँऔरउपन्ासगाँि-गाँिघमूनेऔर ग्ामीि ्थिाथि्श को गहराई से समझने के मरे े अनभु िों से तै्ार हुए ह,ैं इसवलए मैं अपनी रचनाओ ं का महति समझता हू।ँ ”
प्रिुखरचन्ए–ँलंिेसावहवत्कजीिनमेंतारारकंरिंद्ोपाध्ा् ने108ग्थिं ोंकीरचनाकीवजसमेंउपन्ास,कहानी,कविता,ना्टक, जीिनी, ्ात्ा-ित्तृ आवद सभी वििाओ ं में रचनाएं वलखीं ह।ैं कु ् का वििरि इस प्रकार ह–ै
उपनय्स–चतैालीघवूि,्शपाषािपरुी,नीलकंठ,राईकमल, गिदिेता,प्रेमओप्र्ोजन,आगनु,िात्ीदिेता,कावलंदी,मनिनतर, पचंग्ाम,आगनु,कवि,सनदीपनपाठराला,झड़ओझरापाता, अवभ्ान, तामस तपस्ा, पदवचह्न, उत्तरा्ि, हाँसलु ीिांके र उपकथिा, नावगनीकन्ारकावहनीचाँपा्ांगारिऊ,आरोग्वनकेतन,पचंपत्तुली विचारक, रािा, सप्पदी, विपारा, ्ाक हरकारा, महाश्वेता, ्ोगभ्रटि, ना,वनवरपद्म,्वतभगं,कानना,कालिैराखी,ओकालोम्ेे, जगंलगढ,मजंरीऑपेरा,वचनम्ी,सकंेत,भिुनपरुेरहा्ट,िसतंराग, गनना िेगम, आरण्िवह्न, हीरापनना, महानगरी, गरुु दवक्षिा, रकु सारी
कथिा।कि्नरी– ्लनाम्ी, जलसाघर, रसकली, वतनरनू ्, प्रवतधिवन, िेदनेी,वदललीकाला्््ू,जादकूारी,सथिलपद्म,प्रसादमाला,हारानों सरु,इमारत,रामिन,ुताररकंरश्ठिेगलप,वरलासन,कामिने,ु विसफोरि,कालांतर,विर-पाथिर,मानषुरे-मन,वि्शिाररआसर, पौषलक्मी, वचरंतनी, आईना
न्रक– कावलनदी, दइु परुु ष, पथिेर ्ाक, विरं रताबदी, द्ीपांतर, ्गुविपलि,कालरावत्,सघंात,
आतििरीिनरी– आमार कालेर कथिा, आमार सावहत्-जीिन, आमारसावहत्-जीिन-2,कैरोर-समवृतकविता–वत्पत्,
पुरसक्र–1940मेंररतसमवृतपरुसकार
1952-60 प. िंगाल वििान पररषद के सदस्
1955 में रिीनद् परु सकार उपन्ास ‘आरोग् वनके तन’ के वलए 1956मेंसावहत्अकादमीपरुसकार
1959 जगततररिी गोल् म्ै ल, कलकत्ता विश्वविद्ाल् 1962 में पद्म श्ी 1966मेंज्ानपीठपरुसकार'गिदिेता'उपन्ासपर
1969 में पद्म भषू ि अहभभ्षणकेअंश–(परुसकारअप्शिका््शक्रमकेअिसरपर
लेखक द्ारा वदए गए अवभभाषि के महतिपिू ्श अरं ) “मानि-जीिन में ससं कृवत का मलू अथि्श क्ा है ्ह खोजने परप्रत्ेकव्वतिवनजमतानसुारएकउत्तरप्राप्करसकताहैऔर उसउत्तरमेंसेकोईसाि्शजनीनसत्परभीपहुचँाजासकताह।ै मरेेवलएिारािावहकमानि-ससंकृवतएकपेड़कीभांवतह।ै उसका जनमवमट्ीकेगहरेअिंकारमनेव्ाप्पकं-रसमेंहोताह।ैिही उसकाप्रारमभहैपरउसकागतंव्कहींऔरह,ैसभंित्ाविपरीत
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विशिवा / Áअप्रैल 2021

















































































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