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वदखाईदतेाह।ैग़ज़लकीअपनीपरंपराऔरभवंगमाकोउनहोंने समसतविरषेताओंसवहतवहनदीमेंउतारनेकीसपंिू्शकोवररकीह।ै
××× ‘नहींविरामवल्ाह’ैगलुािखण्ेलिालजीकीिष्श1990
से1998केिीचकहीगईग़ज़लोंकाअवंतमग़ज़ल-सग्ंहह।ै‘नई ग़ज़लें’ रीषक्श के अतं ग्शत वजसमें से के िल आठ ग़ज़लों को ही ‘गलुािग्थिंािली(खण्-3)’मेंरावमलवक्ाग्ाह।ै
हलचल
रो् आइलैं् व्वश्वव्वद्ाल्य, अमरीका में गवणत के सदे्वावन्वृत्त प्रो. जी. आर. ्वमामा भारत
  अवंतमग़ज़ल-सग्ंहकीआठ‘नईग़ज़लों’तकआते-आते गलुािजीकीप्रि्-आकुलतामेंथिोड़ाठहराि...थिोड़ीसजंीदगी
के दरन्श होते ह।ैं जैसे- में पुरसककृत
कै से रिर से शरूु करें इसको? रज़न्दगमी ह,ै कोई रकताब नहीं!
××× इसीगभंीरताकेअतंग्शत,गलुािजीसिीकारकरतेहैंवकअि
िे उम्र-रसीदा हो गए ह।ैं अि उनहें अपनी नौजिानी के साथि-साथि औरक्ाकु््ादआताह,ैमलुावहज़ाफ़रमा्ें–
रिर इस रदल के मचलने की कहानमी याद आतमी ह,ै मझु े रिर आज अपनमी नौजिानमी याद आतमी ह।ै
×××
कभमी गाने को कहते हमी, लजाकर रसर झकु ा लेना, ‘गलु ाब’, अब भमी रकसमी की आनाकानमी याद आतमी ह!ै
××× कुलवमलाकर,सकुविगलुािखण्ेलिालदष्ु्ंतपिू्शकेएक
ऐसे ग़ज़लकार थिे जो भावषक रूप से सचमचु वहनदी के रचनाकार थिे। भाषाई सतर पर, उनहें मध्मागती वहनदी का ग़ज़लकार माना जा सकता ह–ै वजनहोंनेग़ज़लकेचररत्औरवमज़ाजकोसमझा।मैंसमझताहूँ वक पहली िार गलु ाि खण्ेलिाल ने वहनदी को िे ग़ज़लें प्रदान कीं, जोवहनदीकीअपनीहैंएिंउसकीअपनीभाि-भवूमपरखड़ीह।ैं गलुािजीकीग़ज़लकाप्रमखु िण््श-विष्प्रेमहैऔरप्रि्की वभनन-वभननभवूमकाओंकाजैसासक्ूमतथिासजीिििन्श उनकेररेों में वमलता ह,ै िह विरल ह।ै
लेवकन,सकुविगलुािखण्ेलिालकेचारोंग़ज़ल-सग्ंहोंकी ग़ज़लोंसेगज़ुरनेकेिाद...उनकेक्थ्परविचारकरतेहुएमझुेएक सप्रंश्नवनरंतरपरेरानकरतारहा।िह्हवकगलुािजीकमोिेर दष्ु ्ंत से थिोड़े पहले के ग़ज़लगो थिे। उनके लगभग सभी ग़ज़ल-सग्ं ह िीती सदी के िष्श 1971 से 1981 के िीच के रचना-काल की ग़ज़लों केदसतािेज़ह।ैं्हिहीकवठनसम्थिाजिदरे में‘आपात-काल’ लगा और अमानिी् प्रवतिंिों के िीच कोव्ट-कोव्ट नागररकों ने अपारकटिसह।े वजसकाल-खण्मेंदष्ु्ंतसवहतसैकड़ोंग़ज़लकारों ने ग़ज़ल-्ंद में भारती् राजनीवत, उसकी कुव्टलता, उसके प्रवत जन-आक्रोरके्ादगारररेकह।ेउसदःुसिपनजैसेकालखण्में भी गलु ाि खण्ेलिाल जैसे प्रवतभाराली ग़ज़लगो का समग् रूप से प्रेम, सौनद््श और मोहक रूप की ग़ज़लें भर कहते रहना, आश्च््शचवकत करता ह!ै
9 जनिरी 2021 को विगत ्ह दरकों से अमरीका में गवित वरक्षि और रोि से जड़ु े ्ॉ. घासीराम िमा्श को चरूू (राजसथिान) म,ें विगत रताबदी के प्रारंभ में दवलतों और वस्त्ों की वरक्षा के क्षेत्मेंउललेखनी्कामकरनेिालेसिामीगोपालदासकीसमवृत में वद्ा जाने िाला, परुसकार प्रदान वक्ा ग्ा। 93 िषती् ्ॉ. िमा्शकेवलए्हपरुसकारमहवष्शद्ानंदविज्ानमहाविद्ाल्, झझंु नु ू के प्राचा््श श्ी जाख् ने ग्हि वक्ा।
राजसथिानकारखेािा्टीक्षेत््ॉ.िमा्शकीजनमभवूमऔर प्रारंवभककमभ्शवूमभीह।ैदोिष्शपहलेतक्ॉ.िमा्शप्रवतिष्श चार-पांच मवहने के वलए ्हाँ आते रहे और अपनी िष्श भर की समसत िचत, वजसका ्ोग अि तक कोई दस करोड़ रुपए िैठता ह,ैिावलकावरक्षाकेवलएखच्शचकुेह।ैंआपकभीपरुसकार औरसममानकीदौड़मेंनहींरह।े चवंूक्हपरुसकारआज़ादीसे पहलेएकवप्ड़ेक्षेत्मेंवरक्षाकीअलखजगानेिालेसतं के नाम पर थिा इसवलए आपने उसे सिीकार वक्ा लेवकन उस रावर में अपनी ओर से एक लाख रुप्ा और वमलाकर सिामी जी के नाम पर सथिावपत ससं थिान को अवप्शत कर वद्ा। –स.ं
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विशिवा / Áअप्रैल 2021















































































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