Page 15 - VishwaApril2021.html
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घर से िाहर ढके ल वद्ा। रकंरिािूकोपतानहींक्ासझूावकउसनेकु्सोचतेहुएझ्ट
से झलु सी नो्टों की ग्््ी जेि से िाहर वनकाल कर प्ू ा, ‘िैंकिाले इनहेंिदलदगेंेन?’िादमेंउसनेअपनीकहानीआगेिढ़ाई।
रकंरिािूअपनीपा्टतीकेदफतरमेंजाकर‘दीिीक’और ‘स्ंे’केपरुानेअकं पढ़तारहा।सिुहतकसिरांतहोजाएगा, सोचकरघरपहुचँा।
दरिाजाखलुाथिा।माँमरी-सीमहँुढाँपेपड़ीथिी।‘गीताकहाँ ह?ै’इसनेप्ूा।माँसेकोईउत्तरनवमला।इसनेमाँकेमहँु का पललाह्टा्ा।माँकोवहला्ा।उसनेआखँ ेंखोली।इसने्ाँ्टकर प्ूा,‘गीताकहाँह?ै’उसनेतिभीउत्तरनवद्ा।िहवहली-्ुली भीनहीं।अपनेआपआखँ ेंखोलऔरिंदकररहीथिी।‘तमुहेंइस तरह मरने की हालत में ्ोड़ कर िह लोफर, व्नालपना करने कहाँ गईह?ै’कहतेहुएइसनेदीिारसेवसरदेमारा।तिभीमाँनेहोठन खोले।िहिालविखरेमवुनजैसेहोउठीथिी।
रकं र िािू को लगा वक उसका एक चपै ्टर खतम हो ग्ा। उसने वनश्च् वक्ा वक आगे से उस लोफर मत्ं ी से िात नहीं करेंगे और उस िास्ट््श जीजा के पास भी नहीं जाएगा। अि उसके पास एक ही उपा् िचा थिा। ‘मत्ं ी का ‘राइिल’ एक और इनकी ही जावत का ह।ै उसेपो्टेंवर्लराइिलकहनाचावहए।िहग्ेनाइ्टमच्टचें ह।ैं िह तेलगु-ुदरेमकावसपंेथिाइजरभीह।ैिहुतपैसेिालाह।ैउसेमरेेजैसे ्िु कों की सहा्ता चावहए थिी। समझ में नहीं आ रहा थिा वक उसे कै से इप्रं ैस वक्ा जाए। इसीवलए आपसे ्े फो्टो वखचं िाई।’
रकंरिािूकेभविष््कीकहानीसनुनेकाउतसाहमझुमेंिचा नहींथिा।उसकीिताईहरिातएकसेदसूरीगथिु ीहुई-सीलगी।मरेे एकमखु ी होने पर भी, िह अनेक चहे रे वलए मरे े सामने आ्ा।
आगेचलकरिहकुआँखदु िासकताह,ै सावड़्ाँिँ्टिासकता ह,ै मकान िँ्टिा सकता ह,ै पेड़ लगिा सकता ह,ै इवतहास में अपने नामकीएक्ो्टी-सीचपेंीलगिासकताह।ै
अपने क्षेत् को सदृु ढ़ करने के वलए सलम के लोगों का जीना हरामकरसकताह।ै्हीिाल-िचचदेारवकसीदसूरेकीझोंपड़ीमें आगलगासकतेह।ैं उसघासकीझोंपड़ीमेंसो्ािचचाआगमें भनु भीसकताह।ै
कु ् वदन िाद एक ठं्ी सिु ह मफलर-सा लपे्टे िावकं ग जानेिालाएकसदग्हृसथिकहरहाथिा:‘व्,िेचारे!परइतनान होतातोइनकंिखतोंकीअकलवठकानेकैसेलगती!अिदखे ोकैसे ठं्े पड़ गए ह।ैं ’ इवतहास में ्ह सि अवनिा््श ह।ै
समवृतकेसखुदझरोखोंमेंझाँकेंतोवह्टलरअपनीमाँसेिहुत प्ार करता थिा। पतनी के मरते सम् स्टावलन दखु में अके ला पड़ ग्ा थिा। उसने उस मध्रावत् के िहुत िड़े भोज में पैपर के सिादिाली िोदका को ‘थिमसअप’ कह कर ग्टाग्ट पीने के िाद म्ँू ें पों् ली थिीं। उसने ही अच्ी तरह वखला-वपला कर अचार के मत्शिान से दीखनेिाले ख्श्चु ेि को भालू की तरह नचा्ा थिा। िह कभी-कभी अपनेलालसैवनकोंकेसाहसकीिातें्ादआनेपररोदतेाथिा। महान दटिु राजा वचककिीर राजेंद् ने भी िवु ढ़्ा से प्ू ा थिा, ‘दादी,
मनैंेतमुहारेवकसकानमेंिचपनमेंमतूाथिा?’
्ा वफर उतक्ट प्राथि्शना करके जो अपेक्षा होती ह,ै उससे
वमलनेिाला आश्च््श भविष्् के चररत् में वजसे हम घास समझते ह,ैं िहभीदिूा्शिनसकतीह।ै रकंरिािूभीएकसाँझअपनीढलती आ्ु में अके ला िैठ कर जि सोच में ्ूिेगा, ति उसे उसका उिम वदखाई दे पाएगा। ति गीता का नो्टों की ग्््ी को जलते स्टोि पर रखना,औरमाँकाचपुचापउसेवनहारनाऔरसि्ंउसकाहरैान होना,गसुसेकीआगमेंताजेनो्टोंकेझलुसतेसम्विकवसतप्रेम काभीरधिु होजाना,सरोजकामरकरइनसिकोजागतृ करदनेा ्ह सि ्ाद आ सकता ह।ै
अिरकंरिािूजागतृहोिारदारि्तीकीतरहवदखाईदतेा-सा लगा। मझु े दखे कर िह आतमी्ता से हसँ रहा थिा। रीरे के सामने खड़े हो उसने िाल सँिारे। उतसाह का उतस िन िह आध्रं के पक्षों कािलािलऔरअपनेलोगोंकीमखू त्शाकाविश्ेषिकरनेलगा।
‘मझु े एक विद्ारण् वमल जाए तो मैं एक राज् का वनमा्शि कर सकता, हूँ सर। मैं इस तरह हारनेिाला आदमी नहीं हू।ँ ’ कह कर िहब्ीफकेसलेकरउठखड़ाहुआऔरमझु े‘ग्ु लक’कहकर चला ग्ा।
रप्ंतर : बरी. आर. न्र्यण
 प्र्वदेश
नारी : एक व्यककतगत व्व्वदेचन
डाॅ. सुररेन्द्र नरेिरटया
न््ू ॉक्श
कु् सम् से मैं सोच रहा थिा, तमु हारे िारे में
तमु हारे जनम वदन के वलए
चमकीले रबदों को खोज रहा थिा अतंतःपा्ा
तमु भी तो एक कविता हो,
एक गीत हो, रबदों की माला हो तमुनेिड़ेहीअच्ेसे
मोवत्ों को वपरो कर रख रखा ह,ै समदँुरसेवनकालकरआकारमेंिोवद्ाह।ै िरसाततमु करातीरहतीहोख़वुर्ोंकी,
मसु कराह्ट की नवद्ाँ तमु िहाती रहती हो। वजसतरहमोतीउम्रहोनेपरऔरसनुहरेहोजातेह,ै िैसेहीतमुहमरेाखरुरहो,चमकतीरहोऔरहसंतीरहो
  अप्रैल 2021 / विशिवा
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