Accomplishments |
१९८० में स्थापित समिति आज जीवन के कई आरोहों - अवरोहों को पार करती, स्वयंसेवी संस्थाओं से संबंधित कई कठिनाईयों को झेलती - उबरती अपने जीवन की युवावस्था में पहुँच चुकी है। प्रस्तुत है समिति के पिछले वर्षों पर एक विहंगम दृष्टि:
१९८० के दशक में समिति पनपती पलती बढ़ती रही। समिति की पत्रिका विश्वा को कभी हाथ से लिखकर, तो कभी बहुत कम पृष्ठों का निकालकर समिति ने जीवित रखा। कवि सम्मेलन अलग-अलग जगहों पर आयोजित किए जाते रहे, ताकि आम हिन्दी भाषी समिति से जुड़ें। इसी श्रृंखला में महामहिम अटल बिहारी बाजपेयी जी की अध्यक्षता में भी एक कवि सम्मेलन मेरीलैंड में संपन्न हुआ। समिति के तत्कालीन स्वयंसेवको की हिन्दी के प्रति आस्था तथा उनके विश्वास और परिश्रम का ही फल था कि इस नन्हें पौधे की जड़ अमेरिका के कई प्रांतों में फैलने लगी। कई जगहों पर हिन्दी - शिक्षण के जो अलग-अलग प्रयत्न प्रारंभ हुए थे, वे भी समिति से जुड़े। इसी दशक में समिति को मज़बूत करने के लिए एक क़ानूनी ढॉचा भी बना। समिति का संविधान बना, स्वीकृत हुआ। समिति को सरकार द्वारा एक अलाभकारी संस्थान होने की स्वीकृति मिली। समिति के उन्नयन के लिए ये आरिम्भक क़दम बड़े ही आवश्यक थे।
१९९० का दशक समिति के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण था। इस दशक में समिति बृहद कवि-सम्मेलनों, हिन्दी शिक्षण तथा नियमित अधिवेशनों के माध्यम से उत्तरी अमेरिका - वासी हिन्दी प्रेमियों की प्रिय -संस्था के रूप में उभरी। प्राय: हर वर्ष भारत के प्रसिद्व कवियों को आमंत्रित कर अमेरिका के दर्जनों शहरों में एक साथ सफल कवि सम्मेलन संपन्न हुए। किसी किसी साल तो यह कवि सम्मेलन साल में दो बार संपन्न होते रहे। यह काम अभी तक जारी है और दिनानुदिन लोकप्रिय होता जा रहा है। यह समिति की लोकप्रियता, उसकी मौलिक मज़बूती तथा स्वयंसेवकों के अथक परिश्रम का परिणाम है। इस परंपरा में भारत के कई आधुनिक कवियों के अतिरिक्त काका हाथरसी, नीरज, डा० ब्रजेंद्र अवस्थी, सोम ठाकुर, डा० कुँअर बेचैन, हुल्लड मुरादाबादी आदि सुप्रसिद्व कवियों ने भी अमेरिका के हिन्दी भाषियों को अपनी कविताओं से आहलादित उद्बोधित किया है। समिति के अधिवेशन समिति को लोगों तक पहुँचाने में बड़े सफल रहे है। ९० के दशक में अधिवेशन नियमित रूप से संपन्न होते रहे हैं। वाशिंगटन १९९१, रोचेस्टर १९९२, वाशिंगटन १९९३, हयूस्टन १९९४, सिराक्युज १९९५, क्लीवलैन्ड १९९६, न्यूजर्सी १९९७, तथा बौस्टन २०००, व डैलस २००३ आदि अधिवेशनों से समिति से तथा उसके उद्देश्यों से सैकड़ों लोग जुड़े हैं, समिति के उद्देश्य अब कई शहरों में सैकड़ों लोगों द्वारा प्रतिपादित किए जा रहे है। यह समिति का सौभाग्य रहा है कि अधिवेशनों के माध्यम से भारत - अमेरिका के सांसदों मंत्रियों राजनयिकों की शुभकामनाएँ मिली हैं। इनमें अमेरिका के कई राज्यपालों, भारत सरकार तथा भारत की राज्य - सरकारों के प्रतिनिधियों की शुभकामनाएँ तो मिली ही हैं, कई राजनयिकों ने अतिथि के रूप में उपस्थित होकर भी समिति का गौरव बढ़ाया है जैसे रोचेस्टर १९९२ अधिवेशन में दैनिक जागरण के संपादक तथा राज्य सभा सदस्य स्वर्गीय श्री नरेंद्र मोहन तथा न्यू-जर्सी १९९७ में सुप्रसिद्व अभिनेता तथा सम्प्रति भारत के जहाजरानी मंत्रीश्री शत्रुघ्न सिन्हा । बौस्टन- २००० में सुप्रसिद्व अभिनेता श्री विनोद खन्ना, बिहार विधान सभा में विपक्ष के नेता श्री सुशील कुमार मोदी तथा अमेरिका के सांसद श्री मॅकगवर्न ने उपस्थित होकर समिति के प्रयत्नो की बड़ी सराहना की थी। यह पहला अवसर था जब भारत और अमेरिका के सांसदो ने एक मंच से हिन्दी की अभ्यर्थना की थी। सांसद श्री कलराज मिश्रा ने २००३ में डैलस में आयोजित १३वें अधिवेशन की तथा सांसद श्री उदय प्रताप सिंह ने २००५ के कवि सम्मेलन की विशेष अतिथि कवि के रूप में शोभा बढ़ाई।
इस दशक में हिन्दी शिक्षण के मामले में भी कई पहल हुई है। समिति की प्रेरणा से स्थानीय स्वयंसेवकों द्वारा कई शहरों में नए हिन्दी स्कूल खुले हैं, यह प्रयत्न पूर्व में मैसाचुसेट्स से लेकर पश्चिम में ऐरिज़ोना तक फैला है। कुछ प्रान्तों में यह प्रयत्न बड़े ज़ोर-शोर से प्रारम्भ हुआ है, जैसे न्यू-जर्सी, रोड-आएलैंड आदि। समिति की अपनी मज़बूती का एक फल यह हुआ है कि जो हिन्दी - स्कूल मृत-प्राय हो रहे थे उनमे एक नई जागरूकता आई है, नए लोग उनसे जुड़े हैं और एक नए सिरे से वे प्रयत्न पुनर्जीवित हुए हैं। समिति के एक पूर्व - निदेशक ने अपने डैनबरी कनेक्टीकट हिन्दी स्कूल के शिक्षण के आधार पर एक पुस्तक व सीडी तथा एक दूसरे पूर्व - निदेशक ने अपने हयूस्टन के बेलेयर हाईस्कूल के हिन्दी शिक्षण के आधार पर एक सीडी व पुस्तक पाठ्यक्रम विकसित किया है जो स्कूलों तथा सन्डे - स्कूलो में हिन्दी के मानक - पाठ्यक्रम के रूप मे उपयोगी हो सकता है। इसके अतिरिक्त भारत सरकार तथा अन्य संस्थाओ से हिन्दी शिक्षण के विषय में संपर्क स्थापित हुआ है। ज़रूरत है, इस जागरूकता को, इस प्रयत्न को बढ़ाने की ताकि हिन्दी अमेरिका के हाईस्कूलों में द्वितीय भाषा के रूप में स्वीकृत हो सके। हिन्दी प्रसार के इन प्रयत्नों के अतिरिक्त, इसी दशक में समिति ने अपनी वेब-साइट को विकसित किया है, जिसका नाम www.hindi.org है। इस पर समिति के क्रिया - कलापों की झलक देखी जा सकती है। समिति की पत्रिका विश्वा का आकार बढ़ा है, कलेवर विकसित-सुरूचिपूर्ण हुआ है, विश्वा का साहित्य समृद्व हुआ है। विश्वा कई विश्वविद्यालयों द्वारा स्वीकृत हुई है। समिति के तत्वाधान में एक त्रैमासिक इलेक्ट्रॉनिक पत्रिका ई-विश्वा का भी प्रकाशन प्रारंभ हुआ है। ई -विश्वा का वितरण नि:शुल्क ई-मेल के द्वारा विश्व भर में किया जाता है। समिति की सक्रियता से भारत तथा अन्य देशों में समिति की प्रतिष्ठा बढ़ी है, समिति की सदस्य संख्या भी बढ़ी है। यह समिति की मज़बूती और हिन्दी के प्रति समर्पण का ही फल है कि कनाडा की हिन्दी संस्था, हिन्दी साहित्य सभा, टोरांटो, ने भी समिति को अपना साहित्यिक सहयोग दिया है और विश्वा का एक अंश सभा के उद्गार के रूप में कुछ वर्षों नियमित प्रकाशित हुआ। भारत तथा अमेरिका के कई रेडियों तथा टेलीविजन कार्यक्रमों पर समिति का प्रतिनिधित्व हुआ है। समिति के तत्वाधान में एक साप्ताहिक रेडियो पत्रिका कविताजंलि का भी प्रसारण डैल्स से हुआ है जो इंटरनेट के द्वारा विश्व भर में सुनी जाती रही है। इन सकारात्मक क़दमों के साथ समिति एक मज़बूत संस्था के रूप में उभर कर आई है। समिति को अमेरिका और विश्व में हिन्दी-सेवा हित कई पहल करने है। अतीत की सीख और सफलताओं से समिति अपने इस उत्तरदायित्व को अवश्य निभाएगी।